भारतीय थल सेना, वायु सेना और नौसेना ( Army, Airforce and Navy ) यानी तीनों सेना जल्द ही पूरी तरह देश में बने हथियारों और तमाम रक्षा उपकरणों से लैस होगी. भारत सरकार ने इन्हें विदेश में बने हथियारों समेत तमाम साजो-सामान से मुक्ति दिलाने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाने की तैयारी कर ली है. भारत सरकार ने फैसला किया है कि अब सेना को जिन रक्षा उपकरणों की जरूरत होगी, उनकी निर्माता कंपनियों को भारत में ही निर्माण ( Make in India ) करना होगा. हालांकि, भारत में बनाए गए रक्षा उत्पादों को दूसरे देशों को निर्यात कर सकने की छूट होगी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि रक्षा खरीद नीति (Defence deal policy ) में बदलाव करते हुए ‘बाय-ग्लोबल’ की श्रेणी समाप्त की जाएगी. इसी श्रेणी के तहत विदेश में बने रक्षा से जुड़े साजो-सामान का आयात होता है. सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि भारत में रक्षा उपकरणों का 68 फीसदी तक स्वदेशीकरण हो चुका है. वहीं नौसेना अपनी 95 फीसदी जरूरतें देश में ही पूरी कर रही है. भारतीय वायुसेना भी लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टर, परिवहन विमान और ड्रोन का देश में ही उत्पादन किए जाने के पक्ष में है.
विदेशी सौदों पर पर भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान सख्त
भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान विदेश से सीधे होने वाले रक्षा सौदों की समीक्षा कर रहा है. इनमें से 65 हजार करोड़ रुपए की रक्षा खरीदारी के संभावित प्रस्ताव रोक लिए गए हैं. 30 हजार करोड़ रुपए के कुछ अन्य रक्षा सौदों को भी फिलहाल होल्ड कर दिया गया है. रक्षा मंत्रालय की ओर से इस बड़े कदम उठाए जाने से अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भी फायदा होगा. जानकारी के मुताबिक उन्हें बड़े रक्षा सौदों के लिए 30 फीसदी की ऑफसेट की शर्त में नहीं बंधना होगा.
सैन्य उपकरणों में आत्मनिर्भरता की ओर भारत
रक्षा सौदों के लिए नियमों में नए और ऐतिहासिक बदलाव के बाद रक्षा बजट का पूरा कैपिटल आवंटन भारत में ही खर्च होगा. भारत में रक्षा सुविधाएं स्थापित करने की इच्छुक विदेशी कंपनियों और उनसे साझेदारी करने वाली भारतीय कंपनियों के लिए ‘लेवल प्लेइंग फील्ड’ की व्यवस्था होगी. इसके साथ ही भारतीय कंपनियों की साझेदारी में बने रक्षा से जुड़े साजो-सामान के दूसरे देशों को निर्यात की शर्तों में उदारता लाई जाएगी. हालांकि, कुछ ऐसे देशों की निगेटिव लिस्ट रखी जाएगी, जिनको देश में बना रक्षा उत्पाद निर्यात नहीं किया जा सकता. इसेक अलावा उत्पादों की टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन के लिए स्वतंत्र निकाय की व्यवस्था होगी.
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रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद नए अंतरराष्ट्रीय समीकरण
बताया जा रहा है कि दो महीने से ज्यादा समय से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत सरकार ने अपने इस फैसले को लिए जाने में तेजी दिखाई है. क्योंकि रूस से रक्षा सौदे को लेकर कई बड़े देश लगातार भारत से रिश्ते को लेकर अपनी मंशा जाहिर करते रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विदेशी धरती पर बने सैन्य उपकरणों पर निर्भरता के कारण देश के कूटनीतिक विकल्प सीमित होने का अंदेशा रहता है. दूसरी ओर दुनिया की बड़ी सामरिक ताकतें अपने यहां बने हथियारों का ही इस्तेमाल करती हैं. रूस में भी बाहरी देश में बने हथियारों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक है. इसलिए भारत-रूस के संयुक्त उपक्रम के तहत बनी ब्रह्मोस मिसाइल को रूस की सेना में शामिल नहीं किया गया है.
HIGHLIGHTS
- रक्षा खरीद नीति में बदलाव कर ‘बाय-ग्लोबल’ की श्रेणी समाप्त की जाएगी
- भारत में सैन्य उपकरणों का 68 फीसदी तक स्वदेशीकरण हो चुका है
- भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान विदेश से सीधे होने वाले रक्षा सौदों की समीक्षा कर रहा