Inheritance tax: राजनीतिक हल्कों में इन्हेरिटेंस टैक्स यानि विरासत कर काफी चर्चाओं में हैं. इसकी वजह है इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने एक इंटरव्यू में इस टैक्स की वकालत की है. लोकसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे को उछाला गया है. इसे लेकर भाजपा ने कांग्रेस पर हमला बोला है. वहीं सैम पित्रोदा ने अपने बयान के संदर्भ में सफाई पेश की है. हालांकि आम जनता के बीच इस टैक्स को लेकर भ्रम है. आखिरकार यह टैक्स है क्या? आइए इसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं.
यह टैक्स दरअसल एक ऐसा टैक्स है जो संपत्ति पर लगाया जाता है. हालांकि यह संपत्ति कर नहीं है. मुख्य तौर पर अमेरिका में इन्हेरिटेंस टैक्स लगाया जाता है. इसके तहत यह टैक्स किसी शख्स की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर लगाया जाता है. यह संपत्ति उत्तराधिकारियों को मिलने वाली होती है. यह टैक्स उत्तराधिकारी को मिलने वाली संपत्ति के ट्रांसफर होने के बाद लगाया जाता है.
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यह टैक्स अमेरिका में 40 प्रतिशत के रेट से लगाया जाता है. इसका मतलब है कि शख्स ने जीवनभर जो कमाई की है, वह पूरा का पूरा उत्तराधिकारियों को मिलने के बजाय कुछ कर सरकार को देना होगा. एक उदाहरण के तौर पर अगर एक करोड़ की संपत्ति है तो आपको 40 लाख का टैक्स देना होगा. इसका अर्थ है कि मात्र 60 लाख ही संपत्ति के उत्तराधिकारी के पास जाएगी. अगर कई उत्तराधिकारी हैं तो सबके खाते में जितनी संपत्ति आने वाली है, उसके हिसाब से टैक्स लगेगा.
इन देशों में लगता है विरासत टैक्स
जापान में इन्हेरिटेंस टैक्स 55 प्रतिशत लगता है. साउथ कोरिया में ये टैक्स 50 प्रतिशत तक है. इसके अलावा जर्मनी में 50, फ्रांस में 45, इंग्लैंड में 40, अमेरिका में 40, स्पेन में 34 और आयरलैंड में ये 33 प्रतिशत है.
इस टैक्स को लगाने का मकसद क्या है
आखिरकार इस हैवी टैक्स को लगाया ही क्यों जाता है. इसकी मुख्य वजह रेवेन्यू कमाना बताया गया है. इससे सरकार के पास जो पैसे आएंगे वे विकास कार्यों में लगाए जाएंगे. जब सरकार के पास पैसा होगा, तो इस पैसे से देश की तरक्की हो सकेगी. वहीं सरकार का दूसरा मकसद ज्यादा पूंजी को समाज में वितरित करना है. कई देशों में सरकार का मानना है कि सारी पूंजी केवल कुछ ही हाथों में सीमित न हो जाए. कुछ देशों में इसका नाम वेल्थ री-डिस्ट्रिब्यूशन (Wealth Redistribution) दिया गया है. भारत में विनोबा भावे की अगुवाई में भूदान अंदोलन चलाया गया था. यह 1948 से 1952 तक चला. इस दौरान कई लोगों ने स्वेच्छा से अपनी भूमि को दान में दे दिया था.
इसलिए देश से हटाया गया ये टैक्स
यह टैक्स पहले भारत में था. 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने इसे हटा दिया था. तत्कालीन वित्त मंत्री वी.पी. सिंह का सुझाव था कि यह समाज में संतुलन लाने और धन के अंतर को कम करने में विफल साबित हुआ है. हालांकि इसका उद्देश्य अच्छा था.
Source : News Nation Bureau