रविवार को उत्तराखंड के चमोली में हुए हादसे में 15 से अधिक लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है जबकि 200 से अधिक लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं. हादसे में एनटीपीसी की एक प्रोजेक्ट पूरी तरह बर्बाद हो गया है. ग्लेशियर टूटने कारण यह हादसा बताया जा रहा है. केदारनाथ त्रासदी के बाद यह सबसे बड़ा हादसा है. पिछले कुछ सालों में राज्य सरकार ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जिस पर अब सवाल उठ रहे हैं. इसमें सबसे बड़ा फैसला है कि उत्तराखंड में नदियों के किनारे से एक किमी तक किसी भी प्रकार के खनन पर रोक थी जिसे बाद में हटा दिया गया.
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नियमों में दी गई छूट
'साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डेम रिवर एंड पीपल' नाम की संस्था के मुताबिक अक्टूबर 2016 में नैनीताल हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि नदियों में जहां पुल बने हुए हैं, वहां से एक किमी ऊपर और एक किमी नीचे तक किसी भी प्रकार का खनन नहीं किया जा सकता है. इसके बाद आशीष सहगल नाम के याचिकाकर्ता की ओर से इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. मामले की सुनवाई करते जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाते हुए उत्तराखंड सरकार ने अक्टूबर 2019 में उत्तराखंड में नदियों के किनारे बने पुल के नजदीक तक खनन करने की अनुमति दे दी.
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इसके बाद जनवरी 2020 में भोगपुर से रैवाला स्ट्रेच के बीच गंगा किनारे चलाए जा रहे प्रोजेक्ट को लेकर राज्य सरकार ने आईआईटी कानपुर और फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ पूरे इलाके में ड्रोन सर्वे कराया. नेशनल मिशल ऑफ क्लीन गंगा प्रोजेक्ट की बैठक में यह मुद्दा उठाया गया. इसके बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट के बाद सरकार को यह कदम उठाना पड़ा. सरकार ने फरवरी 2020 में जिला प्रशासन को इस बात के लिए अधिकृत कर दिया कि वह निजी जमीन पर व्यावसायिक खनन की अनुमति के सकती है. इसके बाद चार धाम हाईवे प्रोजेक्ट और ऋषिकेश-श्रीनगर रेलवे लाइन वर्क के लिए मोबाइल क्रशर यूनिट लगाने की भी अनुमति दे दी गई.
Source : News Nation Bureau