मोदी सरकार (Modi Government) ने केंद्र में दूसरी बार सत्ता संभालते ही जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को 2019 में खत्म कर 'एक देश एक संविधान और एक झंडे' का लक्ष्य हासिल कर लिया. इस मसले पर पर तीन साल पहले शुरू हुई राजनीति अब तक चल रही है. अब इस केंद्र शासित प्रदेश में इसके साथ ही सेब (Apple) पर भी राजनीति शुरू हो गई है. वजह बनी है श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर विगत हफ्ते भर से सेब से लदे ट्रकों की दसियों किमी लंबी लाइन. सेब के स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) के रास्ते रूस, ईरान और तुर्की समेत हिमाचल प्रदेश के सेबों को देश भर की मंडियों में पहले पहुंचाने के लिए ही केंद्र शासित प्रदेशों के सेब उत्पादकों के ट्रक जानबूझ कर हाईवे पर रोक रखे गए हैं. नतीजा यह है कि सेब ट्रकों में ही सड़ने लगा है. सेब उत्पादकों को इस परेशानी को देख समझ पीडीपी और अन्य स्थानीय राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. 'आर्थिक आतंकवाद' का सबसे गंभीर आरोप तो पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने लगाया है. हालांकि स्थानीय प्रशासन का कहना है भूस्खलन और चट्टानों के गिरने की लगातार हो रही घटनाओं से ट्रक और उनके चालकों और माल को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें रोका गया है. इस कड़ी में धीरे-धीरे कर सभी ट्रकों को निकाला जा रहा है.
ट्रक चालकों की मुश्किलें
जम्मू के रास्ते श्रीनगर से 70 किमी पहले काजीगंद में हाईवे पर फंसे ट्रक ड्राइवरों का कहना है कि उन्हें रोकने से ट्रकों पर लदा टनों सेब खराब होना शुरू हो गया है. लेवाडोरा गांव के पास हाईवे पर फंसे पंजाब के ट्रक ड्राइवर रशपाल सिंह बताते हैं, 'बीते छह दिनों में मैं सिर्फ 6 किमी का सफर ही तय कर सका हूं. अब ट्रकों पर लदे सेब सड़ना शुरू हो गए हैं. सेब उत्पादक का कहना है कि अगर सेब सड़ गया तो एक पैसा भी नहीं मिलेगा और ट्रैफिक पुलिस भी हमें कानपुर मंडी जाने के लिए आगे बढ़ने से रोक रही है.' रशपाल तर्क देते हैं, 'जब राज्य के बाहर से आने वाले ट्रकों को जाने दिया जा रहा है और निजी वाहन भी चल रहे हैं, तो सिर्फ हमें ही क्यों रोका जा रहा है.' रशपाल ही नहीं हाईवे पर फंसे कई औऱ ट्रक ड्राइवर भी इसे ट्रैफिक पुलिस की नाकामी बता रहे हैं.
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कश्मीर के सेब की कीमतें गिरी
शोपियां के एक सेब उत्पादक मोहम्मद याकूब गट्टू कहते हैं, 'इस साल सेब की फसल अच्छी होने के बावजूद उसकी कीमतों में भारी गिरावट आई है. 10 किलो की एक सेब की पेटी के महज 600-700 रुपए ही मिल रहे हैं, जबकि पिछले साल इसी मात्रा में सेब की पेटी के 1300 रुपए मिल रहे थे. इस साल की कीमतें तो दो दशक पहले मिला करती थीं. एक तो कीमतें गिरी हैं ऊपर से ट्रकों के रुक जाने से फसल और बर्बाद हो रही है.' मोहम्मद याकूब इसके लिए विदेशों से आयातित सेबों को तरजीह देने की सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हैं. स्थानीय सेब उत्पादकों में रूस समेत तुर्की और ईरान के सेब का आयात ट्रकों के मीलों लगे जाम का मुख्य कारण है. अधिकतर सेब उत्पादक किसान इसे जानबूझ कर पैदा की गई समस्या मानते हैं.
दो दिन बंद रखी सेब मंडियां
श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर ट्रकों के फंसे होने पर कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स यूनियन में भी भारी गुस्सा है. इस कारण संगठन के आह्वान पर बीते दो दिन सेब मंडियां बंद रखी गई. संगठन का आरोप है कि इस तरह कश्मीर की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा केंद्र सरकार अपने मित्र देशों को फायदा पहुंचा रही है. यूनियन के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर रोष भरे स्वर में कहते हैं, 'बीते दो सप्ताह से सेब लदे कम से कम 8 हजार ट्रक श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर फंसे हुए हैं, जिन पर लगभग एक अरब रुपये के सेब लदे हैं.' स्थानीय लोगों के मुताबिक श्रीनगर-जम्मू हाईवे ही देश के अन्य हिस्सों से उन्हें जोड़ता है. बीते कई हफ्तों से काजीगंद और बनिहाल के बीच हजारों ट्रक फंसे हुए हैं. बताते हैं कि सोपोर की मंडी से हर रोज ढाई सौ से 300 ट्रक सेब की लदान कर निकलते हैं और चंद किमी का फासला तय करने के बाद ही मीलों लगे जाम में शामिल हो उसे और बढ़ा देते हैं.
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देश भर के 28 लाख मीट्रिक टन में 18 लाख मीट्रिक टन जम्मू-कश्मीर से
जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में हॉर्टीकल्चर का जबर्दस्त योगदान है. कश्मीर से 10 हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है और तकरीबन 35 लाख लोग इस क्षेत्र से सीधे जुड़े हुए हैं. इस पर देश भर में जम्मू-कश्मीर सबसे बड़ा सेब उत्पादक राज्य है. यहां हर साल लगभग 18 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा होता है. इस साल तो सेब की फसल और भी बंपर हुई है. आंकड़ों की भाषा में बात करें तो पिछले सालों की तुलना में 2 से 3 लाख मीट्रिक टन अधिक. गौरतलब है कि भारत में हर साल करीब 28 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा होता है. अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि जेएंडके का सेब उत्पादन में क्या हिस्सा है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2001 में सेब कुल 2021 लाख हेक्टेयर में पैदा होता था. बीते दो दशकों में सेब की फसल के क्षेत्रफल में 1.22 लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ है. इसी कारण सेब की बंपर फसल हर साल बढ़ रही है.
सेब संकट पर राजनीतिक दल मोदी सरकार पर हमलावर
सेब व्यापारियों की इस त्रासदी को अब राजनीतिक रंग मिलना शुरू हो गया है. पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती न सिर्फ सीधे सेब उत्पादों से मिलीं बल्कि केंद्र सरकार पर 'आर्थिक आतंकवाद' का आरोप मढ़ने से भी नहीं चूकीं. उनका आरोप है कि सूबे की आर्थिक रीढ़ की हड्डी तोड़ने के लिए जानबूझ कर सेब से लदे ट्रकों को रोका जा रहा है. उनका आरोप है कि इस कारण सेब उद्योग को एक हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है, जिससे इस क्षेत्र से जुड़े लाखों परिवारों के समक्ष आजीविका का गंभीर संकट खड़ा हो गया है. कुछ ऐसे ही आरोप कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी लगा रही है. इन सभी का कहना है कि स्थानीय प्रशासन हाईवे पर फंसे हजारों ट्रकों के लिए रास्ता साफ करने को लेकर गंभीर नहीं है. इन राजनीतिक दलों का खुलेआम चेतावनी है कि अगर जल्द इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो स्थिति गंभीर रूप अख्तियार कर सकती है.
HIGHLIGHTS
- श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर कई दिनों से लगी है सेब लदे ट्रकों की मीलों लंबी लाइन
- स्थानीय सेब उत्पादकों का कहना जानबूझ कर सेब लदे ट्रकों को रोका गया है
- पीडीपी समेत कांग्रेस, आप और अन्य पार्टियों ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप