स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने वाली राजधानी के काकाेरी कांड (Kakori Kand) की घटना स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. काकोरी कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ भयंकर युद्ध छेड़ने की ईच्छा से हथियार खरीदने के लिए ब्रिटिश सरकार का खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी. आज काकोरी कांड की 95वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. 1995 में क्रांतिकारियों ने पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ इस घटना को अंजाम देकर नई क्रांति का आगाज किया था. काकोरी कांड से अंग्रेजी हुकूमत बुरी तरह से हिल गई थी.
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क्रांतिकारियों को देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए पैरों में जरूरत पड़ी थी. पास में धन ना होने की वजह से क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने की योजना बनाई थी. क्रांतिकारियों द्वारा चलाए जा गए स्वतंत्रता के आंदोलन को गति देने के लिए धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के लिए शाहजहांपुर में बैठक थी. इस दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने का प्लान तैयार किया था.
योजना के अनुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1995 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 8' डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका. इसके बाद क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खान चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों की सहायता से समूची लौह पथ गामिनी पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया गया था.
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देश के क्रांतिकारियों इस जज्बे को देख और
इस घटना से अंग्रेजी सरकार बौखला उठी थी और क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. अंग्रेजी सरकार ने क्रांतिकारियों पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और हत्या का केस चलाया. कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के खजाने से महज 4600 रुपये लूटने वाले इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए करीब 10 लाख रुपये खर्च कर दिए गए थे. 26 सितंबर को पूरे प्रांत में क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियों और तलाशियों का दौर चल पड़ा था.
आखिर में अंग्रेजों ने कई क्रांतिकारियों को पकड़ लिया था. इन क्रांतिकारियों पर करीब 10 महीने तक मुकदमा चलता रहा है और बाद में फिर क्रांतिकारियों को सजा सुनाई गई थी. जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला ख़ां तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फांसी की सजा) सुनायी गयी थी. इस प्रकरण में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम 4 वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था.