Karnataka Election: कनार्टक चुनाव में भाजपा ने इस बार बड़े फेरबदल किए हैं. कई दिग्गजों को सूची से हटा दिया गया है. बुधवार को 23 उम्मीदवारों की दूसरी सूची भी जारी कर दी गई. इससे पहले मंगलवार को 189 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट निकाली गई थी. अब तक 212 सीटों पर भाजपा ने उम्मीरवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. भाजपा को इन नामों पर पूरा भरोसा है. हालांकि हर सीट पर उम्मीदवार की अपनी और एक्स फैक्टर काम आता है. हालांकि एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर भी चुनाव में जीत हार को तय करता है. ज्यादातर मामलों में बैठे उम्मीदवार एक बार फिर से चुनाव लड़ने के टिकट दिया जाता है. यह परिदृश्य कर्नाटक में भी जारी है.
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2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. मगर संख्या में कमी आई थी. सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और जनता दल के बीच गठबंधन हुआ. मगर लेकिन अगले वर्ष, 17 विधायकों के पार्टी छोड़ देने के साथ भाजपा को अपना समर्थन देने से गठबंधन सरकार गिर गई. उसमें से अधिकांश को भाजपा द्वारा उन सीटों के लिए उपचुनाव के लिए टिकट दिया गया था जो उन्होंने खाली छोड़ दी थीं.
उनमें से अधिकतर सीटों पर उन्हें जीत मिली थी. इससे 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को पर्याप्त बहुमत प्राप्त हुआ था. इस जीत का अर्थ था कि जिन मतदाताओं ने बीते वर्ष ही कांग्रेस या जनता दल के उम्मीदवार को चुना था, उन्होंने इस बार कमल के साथ जाने का निर्णय लिया.
कर्नाटक की राजनीति में जाति भी बड़ा कारक माना जाता है. चुनाव में उम्मीदवारों का निर्णय लेने में सावधानी देखी जाती है. जीतने वाले उम्मीदवार को अर्थ है कि सभी संभावनाओं में उन्हें उसी जाति के सदस्य के साथ बदलना होगा. यहां पर स्थानीय समुदाय में की एक ऐसा नेता खोजना तो अपील करता है, यह चुनौतीपूर्ण है. ऐसे उम्मीदवार को एक पारंपरिक वोट बैंक के रूप में माना गया है. येदियुरप्पा को राजनीति में एक बड़ी शख्सियत के रूप में जाना जाता है. वे व्यक्तित्व पंथ का बड़ा उदाहरण हैं. वहीं बीएसवाई ने जब 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा छोड़ी और अपनी खुद की पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष बनाई तो भाजपा पर प्रभाव चुनाव परिणामों में महसूस किया गया.
Source : News Nation Bureau