क्या है काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी से जुड़ा विवाद, इन पॉइंट्स में जानें

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इन दिनों वाराणसी जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में विचाराधीन इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट भी मामले से जुड़ी से 6 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, हाईकोर्ट इन सभी...

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Shravan Shukla
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Gyanvapi( Photo Credit : फाइल)

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काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इन दिनों वाराणसी जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में विचाराधीन इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट भी मामले से जुड़ी से 6 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, हाईकोर्ट इन सभी छह याचिकाओं को एक साथ सुन रहा है. जिसमें हाईकोर्ट को यह तय करना है कि 31 साल पहले 1991 में वाराणसी जिला न्यायालय में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर (मंदिर पक्ष) की तरफ से दाखिल वाद की सुनवाई हो सकती है या नहीं. यानी वाराणसी ज़िला अदालत हिन्दू पक्ष की तरफ से दाखिल याचिका मैन्टेनेबेल है या नहीं. हाईकोर्ट में दाखिल 6 याचिकाओं में से 3 याचिकाएं सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड और 3 याचिकाएं मस्जिद की इंतजामिया कमेटी को तरफ से दाखिल हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट में ये विवाद कब कब और कैसे पहुंचा, जानते हैं इन तथ्यों के जरिए...

  • हिन्दू पक्ष की तरफ से अक्टूबर 1991 में पहली बार वाराणसी ज़िला न्यायालय में एक वाद दाखिल कर ज्ञानवापी मस्जिद सहित पूरे काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर पर दावा किया गया और कहा गया कि पूरा परिसर हमारा है. मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई थी.
  • अक्टूबर 1991 में वाराणसी में हिन्दू पक्ष की तरफ से वाद दाखिल होने से पहले जुलाई 1991 में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पारित हो चुका था, जो ये कहता है कि 15 अगस्त 1947 के पहले के धार्मिक स्थलों के स्टेटस में कोई बदलाव संभव नहीं है.
  • वाद के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की तरफ से लोवर कोर्ट में ऑब्जेक्शन फाइल किया गया और कहा गया हिन्दू पक्ष का दावा 1991 के एक्ट की वजह से कोर्ट पहुंच ही नहीं सकता. अत: उक्त याचिका सुनवाई के ही योग्य नहीं है.
  • लोवर कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद हिन्दू पक्ष की प्रार्थना को आंशिक तौर अलाउड कर दिया, यानी कोर्ट ने माना कि मामले से जुड़े कुछ मुद्दों पर सुनवाई हो सकती है, कुछ पर नहीं.
  • अब मस्जिद पक्ष ने लोवर कोर्ट के आदेश के खिलाफ वाराणसी ज़िला न्यायालय में ही रिवीजन यानी संशोधन याचिका दाखिल की. जिसे एक बार फिर वाराणसी कोर्ट ने पार्टली अलाउड कर दिया और कहा कि हिन्दू पक्ष की याचिका को इस इश्यू पर सुना जा सकता है कि वहां मंदिर था या नहीं.
  • साल 1997 में वाराणसी जिला अदालत के इस निर्णय के खिलाफ मुस्लिम पक्ष इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा, जहां उसने लोवर कोर्ट के आदेश को चुनौती दी.
  • मुस्लिम पक्ष को याचिका पर सुनवाई करते हुए 1997 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी में मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी.
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट में वाराणसी जिला अदालत के फैसले के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की. हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं को जोड़कर दोनों की एक साथ सुनवाई की.
  • हाई कोर्ट के आदेश के बाद एक दशक से अधिक समय पर वाराणसी की अदालत में मामले की सुनवाई पर रोक जारी रही, लेकिन इस बीच 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि जिन मामलों पर बहुत लंबे समय तक स्टे लागू है, वो अपने आप खत्म माना जायेगा. अगर कोर्ट ने खुद स्टे को आगे नहीं बढ़ाया है तो.
  • सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के आधार पर हिन्दू पक्ष ने वाराणसी की अदालत में फिर अर्जी दाखिल की, जिसपर कोर्ट ने कहा कि स्टे खत्म हो चुका है, हम मामले की सुनवाई करेंगे.
  • वाराणसी कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ फरवरी 2020 में मुस्लिम पक्ष दोबारा हाईकोर्ट पहुंचा और वाराणसी कोर्ट में मामले की सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की.
  • हाईकोर्ट इस बार सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और मस्जिद कमेटी को याचिका पर सुनवाई के बाद फरवरी 2020 में वाराणसी की कोर्ट में मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी.
  • हाई कोर्ट ने मस्जिद पक्ष को फौरी राहत देते हुए वाराणसी कोर्ट में प्रोसीडिंग पर रोक भले की लगा दी लेकिन फरवरी 2021 से हाई कोर्ट में मामले की बहस शुरू हुई और 15 मार्च 2021 को जजमेंट रिजर्व कर लिया. हाईकोर्ट को ये तय करना था कि क्या वाराणसी ज़िला न्यायालय मामले की सुनवाई कर सकता है या नहीं.
  • इस बीच वाराणसी की अदालत में एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए 8 अप्रैल 2021 को ज्ञानवापी परिसर का एएसआई से सर्वे कराने का आदेश दे दिया. इस बार भी सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और मस्जिद कमेटी ने वाराणसी कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसपर सुनवाई के बाद जस्टिस प्रकाश पाड़िया की बेंच ने वाराणसी कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी.
  • हाई कोर्ट अब लगातार इन मामलों की सुनवाई कर रहा है. मामले में मुस्लिम पक्ष की तरफ से 6 याचिकाएं दाखिल हुईं, जिनको जोड़कर हाईकोर्ट मामले में सुनवाई कर रहा है.
  • मुस्लिम पक्ष हर याचिका में 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्कशिप एक्ट के हवाला देकर ये तर्क देता रहा कि 15 अगस्त 1947 के बाद से धार्मिक स्थल से जुड़े किसी भी विवाद की सुनवाई नहीं हो सकती, क्योंकि एक्ट कहता है कि 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल के स्टेटस में कोई बदलाव संभव नहीं है.
  • मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि हिन्दू पक्ष ने 1991 में दाखिल वाद में खुद दावा किया है कि 1669 में औरंगज़ेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई और चूंकि ये घटना 15 अगस्त 1947 से सैकड़ों साल पहले हुई. लिहाजा इस मामले में हिन्दू पक्ष का कोई भी दावा एक्ट से बार्ड है, बाधित है और उनकी याचिका पोषणीय (मैन्टेनेबेल) नहीं है.

20 मई को इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई है, जिसमें हिन्दू पक्ष यानी स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से एक बार फिर बहस होगी, क्योंकि पिछली तारीख पर उनकी बहस पूरी नहीं हो पाई थी. हिन्दू पक्ष के बाद मुस्लिम पक्ष भी कोर्ट के सामने अपने दलीलें रखेगा.

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इन मामलों के अलावा 5 महिलाओं ने मां श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना की मांग को लेकर वाराणसी में जो वाद दाखिल किया था, उस पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने परिसर के सर्वे का आदेश दिया था. जिसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष इस बार सीधे सुप्रीम कोर्ट की शरण में है, जहां मामले की सुनवाई जारी है.

HIGHLIGHTS

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट में 6 याचिकाएं
  • दोनों पक्षों के विवाद का हर पहलू समझिए
  • सेसन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक सुनवाई
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