प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने मंगलवार, 16 फरवरी को राजा सुहेलदेव की जयंती (Maharaja Suheldev Birth Anniversary) के मौके पर उनके भव्य स्मारक का बहराइच में वर्चुअल शिलान्यास किया, वहां एक संग्रहालय भी बनेगा, जिसमें महाराजा सुहेलदेव से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियां दर्ज होंगी. इसके अलावा इनकी जयंती के मौके पर सारे प्रदेश में कार्यक्रम आयोजित होंगे. उत्तरप्रदेश की राजनीति में इस कदम का दीर्घकालिक असर पड़ेगा. योगी सरकार (Yogi Government) महाराजा सुहेलदेव का भव्य स्मारक बनाने जा रही है. सीएम योगी (CM Yogi) के इस फैसले से कई राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ गई है.
कौन थे लोक कथाओं के नायक सुहेलदेव
बीबीसी हिंदी के अनुसार राजा सुहेलदेव के बारे में ऐतिहासिक जानकारी न के बराबर है. माना जाता है कि 11 वीं सदी में महमूद ग़ज़नवी के भारत पर आक्रमण के वक़्त सालार मसूद ग़ाज़ी ने बहराइच पर आक्रमण किया लेकिन वहां के राजा सुहेलदेव से बुरी तरह पराजित हुआ और मारा गया. सालार मसूद ग़ाज़ी की यह कहानी चौदहवीं सदी में अमीर खुसरो की क़िताब एजाज़-ए-खुसरवी और उसके बाद 17वीं सदी में लिखी गई क़िताब मिरात-ए-मसूदी में मिलता है. लेकिन महमूद ग़ज़नवी के समकालीन इतिहासकारों ने न तो सालार मसूद ग़ाज़ी का ज़िक्र किया है, न तो राजा सुहेलदेव का ज़िक्र किया है और न ही बहराइच का ज़िक्र किया है. "मिरात-ए-मसूदी में ज़िक्र ज़रूर मिलता है लेकिन उसे ऐतिहासिक स्रोत नहीं माना जा सकता है. इसकी वजह यह है कि इस तथ्य की कहीं से कोई पुष्टि नहीं हुई है."
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बीबीसी हिंदी के अनुसार "सुहेलदेव के नाम के न तो कहीं कोई सिक्के मिले हैं, न तो कोई अभिलेख मिला है, न किसी भूमि अनुदान का ज़िक्र है और न ही किसी अन्य स्रोत का. यदि सालार मसूद ग़ाज़ी का यह अभियान इतना अहम और बड़ा होता तो महमूद ग़ज़नवी के समकालीन इतिहासकारों- उतबी और अलबरूनी ने इसका ज़िक्र ज़रूर किया होता."
इतिहास के पन्नों में राजा सुहेलदेव का इतिहास भले ही न दर्ज हो लेकिन लोक कथाओं में राजा सुहेलदेव का ज़िक्र होता रहा है और ऐसा हुआ है कि इतिहास के दस्तावेज़ों की तरह लोक के मन में उनकी वीर पुरुष के तौर पर छवि बनी हुई है. लेकिन 11वीं सदी के किसी राजा के बारे में चार-पांच शताब्दियों के बाद हुए उल्लेख को इतिहासकार ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं मानते. यही नहीं, जिन दस्तावेज़ों में उनका ज़िक्र हुआ भी है, उनमें भी स्पष्टता की कमी है जो संदेह को और पुख़्ता करती है.
लेकिन कई राष्ट्रवादी इतिहास के जानकारों ने बताया कि वाकया करीब 1000 साल पुराना है. इतिहास को यू टर्न देने वाली यह घटना बहराइच में हुई थी. महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के शासक थे. सुहेलदेव ने महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद को मारा था. राजभर और पासी जाति के लोग उन्हें अपना वंशज मानते हैं. जिनका पूर्वांचल के कई जिलों में खासा प्रभाव है. 15 जून 1033 को श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद के बीच बहराइच के चित्तौरा झील के तट पर युद्ध हुआ था. इस युद्ध में महाराजा सुहेलदेव की सेना ने सालार मसूद की सेना को गाजर-मूली की तरह काट डाला. राजा सुहेलदेव की तलवार के एक ही वार ने मसूद का काम भी तमाम कर दिया. युद्ध की भयंकरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसमें मसूद की पूरी सेना का सफाया हो गया. एक पराक्रमी राजा होने के साथ सुहेलदेव संतों को बेहद सम्मान देते थे. वह गोरक्षक और हिंदुत्व के भी रक्षक थे.
इतिहासकारों ने की राजा सुहैलदेव की अनदेखी
इतिहासकारों ने भले ही सुहेलदेव के पराक्रम और उनकी अन्य खूबियों की अनदेखी की हो, पर स्थानीय लोकगीतों की परंपरा में महाराज सुहेलदेव की वीरगाथा लोगों को रोमांचित करती रही. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर पहली बार सुहेलदेव की जयंती पर उनके पराक्रम और राष्ट्रसेवा भाव को असली सम्मान मिलने जा रहा है.
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राजा सुहैल देव की जाति का सही प्रमाण नहीं
बीबीसी के मुताबिक राजा सुहेलदेव को भाजपा सरकार राजभर के तौर पर प्रचारित कर रही है जबकि इससे पहले उन्हें राजा सुहेलदेव पासी के तौर पर भी ख़ूब प्रचारित किया गया जबकि ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो राजा सुहेलदेव को राजपूत समाज का मानते हैं. शायद इसी वजह से राजपूत समुदाय के लोगों ने राज्य सरकार की इन कोशिशों पर आपत्ति जताई है कि राजा सुहेलदेव को राजपूत की बजाय राजभर क्यों बताया जा रहा है. ट्विटर पर इसके ख़िलाफ़ बाक़ायदा अभियान छेड़ा गया
मिरात-ए-मसूदी के बाद के लेखकों ने सुहेलदेव को भर, राजभर, बैस राजपूत, भारशिव या फिर नागवंशी क्षत्रिय तक बताया है. इसी आधार पर क्षत्रिय समाज इस बात पर आपत्ति जता रहा है कि सुहेलदेव को उनकी जाति के नायक की बजाय किसी और जाति को नायक के रूप में क्यों सौंपा जा रहा है. दरअसल, पूर्वी उत्तर प्रदेश में क़रीब 18 फ़ीसद राजभर हैं और बहराइच से लेकर वाराणसी तक के 15 ज़िलों की 60 विधानसभा सीटों पर इस समुदाय का काफ़ी प्रभाव है. राजभर उत्तर प्रदेश की उन अति पिछड़ी जातियों में से हैं जो लंबे समय से अनुसूचित जाति में शामिल होने की मांग कर रहे हैं.
ज्ञात हो कि बहराइच और उसके आसपास के क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से काफी महत्वपूर्ण रहे हैं. पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक बहराइच को ब्रह्मा ने बसाया था. यहां सप्त ऋषि मंडल का सम्मेलन भी कराया गया था. चित्तौरा झील के तट पर त्रेता युग के मिथिला नरेश महाराजा जनक के गुरु अष्टावक्र ने तपस्या की थी.
सुहैल देव की जाति को लेकर जानकारी प्रमाणिक नहीं है. सुहेलदेव किस जाति के थे, इसकी प्रमाणिक और पुष्ट जानकारी इतिहासकारों के पास नहीं है. सियासी लोग राजा सुहेलदेव को अपनी अपनी जाति के हिसाब प्रयोग करते हैं. कुछ लोग उन्हें राजभर तो कुछ लोग उन्हें पासी बताते हैं.
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सुहेलदेव के नाम पर होती है पूर्वांचल में राजनीति
भाजपा समेत कई हिंदूवादी संगठन सुहेलदेव को हिंदू राजा के तौर पर चित्रित करते हैं. प्रदेश सरकार में भाजपा की पूर्व सहयोगी पार्टी रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (भासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर महाराजा सुहेलदेव को राजभर बताते हैं. पूर्वांचल में भाजपा और ओमप्रकाश राजभर में सुहेलदेव के नाम पर खींचतान होती रहती है.
HIGHLIGHTS
- सुहेलदेव के नाम के न तो कहीं कोई सिक्के मिले हैं, न तो कोई अभिलेख मिला है,
- बहराइच को ब्रह्मा ने बसाया था.
- 15 जून 1033 को श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद के बीच बहराइच के चित्तौरा झील के तट पर युद्ध हुआ था.
Source : News Nation Bureau