सन् 1921 में पूरा देश महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के असहयोग आंदोलन के पीछे एकजुट था. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (Dr. Keshav Baliram Hedgewar) कांग्रेस (Congress) के उन नेताओं में थे, जो जनता में देशभक्ति की भावनाएं जगाने के लिए उग्र भाषणों के लिए लोकप्रिय थे. इस आंदोलन में अंग्रेजों ने उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. जेल में रहने के दौरान आए विचारों ने उन्हें स्वयंसेवकों की एक मजबूत संस्था के गठन को लेकर उनके पुराने संकल्प को और मजबूत कर दिया था. संघ विचारक दिलीप देवधर कहते हैं कि कलकत्ता में डॉक्टरी की पढ़ाई और बाद में कांग्रेस में काम करने के दौरान ही डॉ. हेडगेवार ने समर्पित स्वयंसेवकों की संस्था बनाने का विचार शुरू कर दिया था. विजयादशमी के दिन वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना से पहले ही डाक्टर साहब इस तरह के संगठन बनाने का 5 प्रयोग कर चुके थे.
डॉ हेडगवार की सोच
जेल में रहने के दौरान इस बात ने उन्हें परेशान कर रख दिया कि हिंदुओं की संख्या बड़ी है, फिर भी वह मुट्ठी भर अंग्रेजों के गुलाम क्यों हैं? हम हिंदू ही स्वार्थी, असंगठित और अनुशासनहीन बन गए हैं. वह मानते थे कि शत्रुओं ने हिंदुओं के दुगुर्णों का लाभ उठाया. यह दुर्गुण दूर करने होंगे. इस सोच के बाद उन्होंने तय किया कि अब सारे कार्य छोड़कर सबको संगठित करना है. डॉ. हेडगेवार की जीवनी के मुताबिक लनागपुर में कांग्रेस संगठन काम करने के दौरान ही उन्होंने 1919 में नागपुर में विद्यार्थियों का राष्ट्रीय उत्सव मंडल नामक संगठन बनाया था. 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन को सफल बनाने के लिए भी उन्होंने स्वयंसेवकों की 'भारत सेवक मंडल' नामक संगठन की स्थापना की थी. कांग्रेस के मित्रों के साथ वह 'नागपुर नेशनल यूनियन' जैसी संस्था बनाकर भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रचार-प्रसार का काम शुरू कर चुके थे.
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कई संगठनों के बाद बनाया आरएसएस
डॉ. हेडगेवार ने आजादी की अलख जगाने के लिए हिंदी साप्ताहिक पत्र 'संकल्प', मराठी दैनिक 'स्वातांय' का संचालन भी शुरू किया था. असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के दौरान गांधी की गिफ्तारी पर कहा था, गांधी की जय कहना और उधर चैन की बंसी बजाना हमें शोभा नहीं देता. शांति की भाषा बोलकर हम दुर्बलता ढकने का प्रयास न करे. उग्र भाषण देने के कारण हेडगेवार पर मुकदमा चला और बाद में उन्हें एक साल का सश्रम कारावास भी हुआ. 12 जुलाई 1922 को डॉ. हेडगेवार कारागार से छूटे थे. कारागार से छूटने के बाद वह बरसों से दिलोदिमाग में पनप रहे एक नए संगठन के विचार को धरातल पर उतारने के लिए जुट गए.
संघ के लिए प्रस्तावित तीन नाम
1925 में विजयादशमी के शुभ मुहुर्त पर उन्होंने घर पर कुछ साथियों को बुलाया और एक नए संगठन की रूपरेखा बनाई. संगठन बन गया मगर अभी नाम रखना बाकी थी. 17 अप्रैल 1926 को उन्होंने संघ का नाम रखने के लिए अपने घर पर फिर बैठक बुलाई. तत्कालीन नागपुर के कार्यवाह की ओर से लिखे एक नोट के मुताबिक, उस बैठक में 26 लोगों ने मिलकर कुल तीन नाम बताए थे. ये तीन नाम थे 1- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, 2- जरिपटका मण्डल 3- भारतोद्धारक मण्डल. इनमें से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम चुना गया. संघ नामकरण के समय वहां पर 26 सदस्य मौजूद थे. इसके बाद विचार-विमर्श किया गया और वहां मौजूद लोगों से वोटिंग कराई गयी थी, जिसमें से 26 सदस्यों में 20 वोट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पक्ष में थे और 6 वोट अन्य दोनों नाम के लिए किये गए थे. इस प्रकार से संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ रख दिया गया था. आरएसएस की स्थापना के पीछे हेडगेवार का मानना था कि हिंदुस्थान में हिंदू समाज की हर बात, हर संस्था तथा आन्दोलन राष्ट्रीय है. कांग्रेस की कथित तुष्टीकरण की नीतियों के कारण भी उनके मन में इस नए संगठन का ख्याल आता था, जिसे उन्होंने बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में साकार कर दिखाया.
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आरएसएस क्या है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रमुख उद्देश्य लोगों को सनातन धर्म के बारे में पूरी जानकारी देना और उन्हें जागरूक करके धर्म के साथ जोड़ने का होता हैं. इसके साथ ही यह संघ देश में सामाजिक, आर्थिक, नागरिक, पर्यावरण और अन्य सभी चुनौतियों का सामना करते हुए उनका समाधान करने का काम करता है. जब आरएसएस का संगठित किया गया था, तो उस समय इसमें केवल 17 लोग ही शामिल हुए थे, परंतु वर्तमान समय में इस संघ के साथ संपूर्ण भारत के लाखों लोग हैं. उस समय संघ में शामिल होने वाले सदस्यों में हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अन्ना साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी सरीखे लोग मौजूद थे. आज यह संपूर्ण विश्व के 50 से अधिक देशों में सक्रिय है. इस समय संघ की 56 हजार 569 दैनिक शाखाएं हैं इसके साथ ही करीब 13 हजार 847 साप्ताहिक मंडली और 9 हजार मासिक शाखाएं भी हैं. औसतन 50 लाख से अधिक स्वयंसेवक नियमित रूप से शाखाओं में आते हैं. इसकी शाखा प्रत्येक तहसील और लगभग 55 हजार गांवों में हैं. संघ परिवार में 80 से अधिक समविचारी या आनुषांगिक संगठन हैं.
संघ का उद्देश्य
आज आरएसएस भारत का प्रमुख स्वयंसेवी संगठन कहा जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य भारत को खुशहाल रखना, समृद्धशाली, सनातन संस्कृति के मूल्यों को बनाये रखने का होता है. इसके साथ ही संगठन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य राष्ट्रवादी व्यक्तित्व का निर्माण करना है. यह ऐसा संगठन है, जिसने हमेशा समाज में वर्ग भेद, जाति भेद व ऊंच-नीच का भेदभाव को खत्म करने का प्रयास किया. इसके साथ ही इस संगठन में रक्षक समता, मण्डल समता, गण समता, दण्ड प्रदर्शन, योगासन, नियुद्ध व घोष का प्रदर्शन भी होता है. यह संगठन हमेशा देश में आने वाली सभी आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार रहता है. आरएसएस का मकसद सनातन समाज को संगठित करके भारत को उन्नति के शिखर पर ले जाना है और देश को प्रगति के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के कार्य में जुटना है. देश में कोई आपदा या समस्या आ जाने पर संघ, लोगों को आर्थिक और शारारिक रूप से मदद प्रदान करता है.
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'भूतबाड़े' से हुआ शाखा का संचालन
सुरुचि प्रकाशन की ओर से डॉ. हेडगेवार पर प्रकाशित किताब के अनुसार, शुरूआत में सप्ताह मे एक दिन लोग चर्चा-भाषण के लिए जुटते थे. लेकिन, स्वयंसेवक बढ़ने लगे तो फिर 'मोहिते के बाड़े' में संघ की शाखा लगने लगी. खंडहर होने के कारण मोहिते के बाड़े को स्थानीय लोग भूतबाड़ा के नाम से जानते थे. शाखा लगने पर यहां रौनक बढ़ने लगी. वर्ष 1930 में देश भर में अंग्रेजों के दमनकारी नमक कानून तोड़ने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन चला. एक बार फिर महात्मा गांधी के नेतत्व में हुए इस आंदोलन में डॉ. हेडगेवार ने हिस्सा लिया. 22 जुलाई 1930 को यवतमाल सत्याग्रह करने के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर नौ महीने के लिए जेल भेजा था.
संघ की शाखा में पहुंचे थे महात्मा गांधी
आर्थिक मुश्किलें भी डॉ. हेडगेवार की राह में रोड़े नहीं डाल सकीं. एक बार उन्हें मदन मोहन मालवीय ने आर्थिक सहायता का आग्रह किया तो उन्होंने कहा, मुझे धन नहीं मनुष्य चाहिए.' डॉ. हेडगेवार के प्रयासों से संघ की संरचना और ताकत बढ़ती रही. वर्ष 1934 के दिसबर में वर्धा में जमनालाल बजाज के बगीचे में सघ का शिविर लगा था. तब महात्मा गांधी भी उसे देखने आए. इस दौरान संघ के शिविर में व्यवस्था, अनुशासन, परिश्रम और अपने खर्च से स्वयंसेवकों के आने और रहने तथा भेदभाव रहित वातावरण देखकर वह हैरान रह गए थे. तब महात्मा गांधी ने भी संघ की प्रशंसा की थी.
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- संघ के प्रमुख कार्य
- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सदैव देश के हित के बारे में सोचते हुए काम करता है. संघ ने सभी लोगों को सनातन धर्म के प्रति जागरूक किया और साथ ही लोगों को हिंदुओं के साथ जोड़ने का मुख्य काम किया है.
- 1963 स्वामी विवेकानंद ने जन्मशताब्दी के अवसर पर विवेकानंद शिला स्मारक निर्मित का संकल्प लिया और इसके बाद संपूर्ण देश के जन मानस को जागरूक करते हुए विवेकानंद स्मारक का निर्माण कराया गया.
- 1964 विश्व हिंदू परिषद् की स्थापना की गई थी.
- 1969 उड्डपी में आयोजित धर्म सभा में अस्पृश्यता अमान्य कर दिया गया तथा धर्म के किसी भी स्थान पर छुआछूत की कोई जगह न होने का ऐलान किया गया.
1986 श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन द्वारा हिंदू समाज का स्वाभिमान जाग्रत किया गया.