किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने के अधिकार को संरक्षित करने के लिए मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया है।
मानव अधिकार ये सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव या अमानवीय कृत्य नहीं हो।
इन अधिकारों में प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार, पुलिस कस्टडी में यातनापूर्ण और अपमानजनक व्यवहार न होने संबंधी अधिकार, महिलाओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार और रंग, जाति, राष्ट्रीयता या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करने का अधिकार भी शामिल है।
यह सभी अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में मूलभूत अधिकारों के नाम से बताए गए हैं और इसका उल्लंघन करने वालों को अदालत सजा भी देती है।
आइए अब जानते हैं कि मौलिक अधिकार क्या है।
मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहते हैं जो देश के संविधान द्वारा नागरिकों को दिए जाते हैं और इसमें राज्य हस्तक्षेप नही कर सकती।
मौलिक अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता।
मूलत: मानव अधिकार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दी गई है जो विश्व के सभी हिस्सों में लागू होता है। वहीं मौलिक अधिकार किसी भी देश द्वारा तय की जाती है और वो देश के अंदर ही लागू होती है।
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संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को मानवाधिकार घोषणा पत्र को मान्यता दिया और तभी से 10 दिसंबर का दिन मानवाधिकार दिवस के लिए तय किया गया।
हलांकि भारत में 28 सितंबर, 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया और 12 अक्टूबर, 1993 में 'राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग' का गठन किया गया था।
मानवाधिकार आयोग किसी भी तरह के भेदभाव और यौन-उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए एक नि:शुल्क, अनौपचारिक पूछताछ और शिकायत सेवा उपलब्ध कराता है।
अगर आपके साथ भेदभाव-पूर्ण व्यवहार किया गया है, तो आप इसके बारे में मानवाधिकार आयोग से शिकायत कर सकते हैं।
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सभी राज्यों में मानावाधिकार आयोग के कार्यालय होते हैं, शिकायतकर्ता वहां जाकर अधिकारी से मिल कर अपनी शिकायत दर्ज़ करा सकते हैं।
इसके अलावा आयोग को तार, फैक्स, डाक और ऑनलाइन (http://nhrc.nic.in/nhrc.htm) आवेदन भी भेजा जा सकता है।
शिकायत हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू अथवा संविधान की आठवी सूची में सम्मिलित भाषाओं में से किसी भी भाषा में भेजी जा सकती है।
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Source : Deepak Singh Svaroci