राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के साथ-साथ आज देश के देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shashtri) की भी जयंती है. लाल बहादुर शास्त्री का जन्म एक बेहद ही साधारण परिवार में हुआ था. शास्त्री ने अपने जीवन में कई मिसालें पेश कीं. लाल बदादुर शास्त्री देश के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने एक रेल हादसे की जिम्मेदारी खुद लेते हुए रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. शास्त्री के पास ना तो कोई बंगला था, ना गाड़ी और ना ही कोई बैंक बैलेंस. कहा जाता है कि जब बच्चों ने कार खरीदने की जिद की तो उन्होंने लोन ले लिया. शास्त्री की 10 जनवरी 1966 में ताशकंद समझौते के अगले दिन असामयिक मृत्यु हो गई.
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समझौते के 12 घंटे बाद मौत
भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 में अप्रैल से 23 सितंबर के बीच 6 महीने तक युद्ध चला. युद्ध खत्म होने के 4 महीने बाद जनवरी, 1966 में दोनों देशों के शीर्ष नेता तब के रूसी क्षेत्र में आने वाले ताशकंद में शांति समझौते के लिए रवाना हुए. पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान वहां गए. भारत और पाकिस्तान के बीच 10 जनवरी को शांति समझौता भी हो गया. समझौते के 12 घंटे के बाद 11 जनवरी को उनकी रहस्यमय मौत हो गई. आधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई. शास्त्री को ह्दय संबंधी बीमारी पहले से थी और 1959 में उन्हें एक हार्ट अटैक आया भी था. कहा जाता है कि ताशकंद में भारत-पाकिस्तान समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद शास्त्री बहुत दबाव में थे. पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस कर देने के कारण उनकी भारत में काफी आलोचना हो रही थी. यहां तक कि उनकी पत्नी भी शास्त्री के समझौते के फैसले को लेकर नाराज थीं.
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फैसले से पत्नी भी थीं नाराज
कहा जाता है कि ताशकंद समझौते से लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी भी नाराज थी. इस बात का जिक्र शास्त्री के साथ ताशकंद गए उनके सूचना अधिकारी कुलदीप नैय्यर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में किया था. कुलदीप नैय्यर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि "उस रात लाल बहादुर शास्त्री ने घर पर फोन मिलाया था. जैसे ही फोन उठा, उन्होंने कहा अम्मा को फोन दो. उनकी बड़ी बेटी फोन पर आई और बोलीं अम्मा फोन पर नहीं आएंगी. उन्होंने पूछा क्यों? जवाब आया इसलिए क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया. वो बहुत नाराज हैं. शास्त्री को इससे बहुत धक्का लगा. कहते हैं इसके बाद वो कमरे का चक्कर लगाते रहे. फिर उन्होंने अपने सचिव वैंकटरमन को फोन कर भारत से आ रही प्रतिक्रियाएं जाननी चाहीं. वैंकटरमन ने उन्हें बताया कि तब तक दो बयान आए थे, एक अटल बिहारी वाजपेई का था और दूसरा कृष्ण मेनन का और दोनों ने ही उनके इस फैसले की आलोचना की थी."
कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में 'बियोंड द लाइन' में लिखा है, "उस रात मैं सो रहा था, अचानक एक रूसी महिला ने दरवाजा खटखटाया. उसने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं. मैं जल्दी से उनके कमरे में पहुंचा. मैंने देखा कि रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोस्गेन बरामदा में खड़े हैं, उन्होंने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे. कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में लिखा कि जब वह शास्त्री के कमरे की तरफ गए तो देखा कि उनका चप्पल कॉरपेट पर रखा हुआ है और उसका प्रयोग उन्होंने नहीं किया था. पास में ही एक ड्रेसिंग टेबल था जिस पर थर्मस फ्लास्क गिरा हुआ था जिससे लग रहा था कि उन्होंने इसे खोलने की कोशिश की थी. कमरे में कोई घंटी भी नहीं थी.
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खाने में जहर की आशंका
शास्त्री की मौत को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं. कहा जाता है कि जिस रात शास्त्री की मौत हुई, उस रात खाना उनके निजी सहायक रामनाथ ने नहीं, बल्कि सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने पकाया था. खाना खाकर शास्त्री सोने चले गए थे. वहीं शास्त्री की मौत के बाद उनके शरीर के नीला पड़ने पर लोगों ने आशंका जताई थी कि शायद उनके खाने में जहर मिला दिया गया था. उनकी मौत 10-11 जनवरी की आधी रात को हुई थी. शास्त्री के पार्थिव शरीर को जब भारत भेजा गया तो शव देखने के बाद पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा कि उनकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है. अगर दिल का दौरा पड़ा तो उनका शरीर नीला क्यों पड़ गया था और सफेद चकत्ते कैसे पड़ गए.
शव क नहीं कराया गया पोस्टमार्टम
लाल बहादुर शास्त्री का शव जब भारत लौटा तो कई लोगों ने शक जताया था लेकिन इसके बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया. शास्त्री का परिवार उनके असायमिक निधन पर लगातार सवाल खड़ा करता रहा. 2 अक्टूबर, 1970 को शास्त्री के जन्मदिन के अवसर पर ललिता शास्त्री उनके निधन पर जांच की मांग की. परिवार का कहना था कि अगर उस समय पोस्टमार्टम कराया जाता तो उनके निधन का असली कारण पता चल जाता. एक पीएम के अचानक निधन के बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया जाना संदेह की ओर इशारा करता है. बेहद चौंकाने वाली बात यह रही कि सरकार ने शास्त्री की मौत पर जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करने के बाद उनके निजी डॉक्टर आरएन सिंह और निजी सहायक रामनाथ की मौत अलग-अलग हादसों में हो गई. ये दोनों लोग शास्त्री के साथ ताशकंद के दौरे पर गए थे. उस समय माना गया था कि इन दोनों की हादसों में मौत से केस बेहद कमजोर हो गया.
Source : News Nation Bureau