आज 2 अक्टूबर को समग्र राष्ट्र महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की जयंती मना रहा है. आजाद भारत के इतिहास में शास्त्रीजी की मौत भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की मौत की तरह ही रहस्यमयी मानी जाती है. हालांकि नब्बे के दशक में बापू की अस्थियों (Ashes) को लेकर देश भर में एक तूफान सा आ गया था. उस वक्त मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक महात्मा गांधी की कुछ अस्थियां (Urn) ओड़िशा के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक शाखा में रखे होने की बात सामने आई थीं.
लॉकर में अस्थियां रखने का मकसद क्या
सबसे बड़ा सवाल यही खड़ी हुआ कि आखिर बैंक के लॉकर में बापू की अस्थियां किसके कहने पर और क्यों रखी गईं? 40 साल से एक लकड़ी के बॉक्स में अस्थियों को रखने के पीछे मकसद क्या था? राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली इस रिपोर्ट ने इतना राजनीतिक हंगामा बरपाया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही मसला सुलझ सका. बापू के पड़पोते तुषार गांधी की याचिका पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एमएच अहमदी को इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश देने पड़े थे.
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बापू के पड़पोते ने उठाया मसला
मशहूर लेखक पीटर फ्रैंच ने अपनी किताब 'लिबर्टी ऑर डेथ' में भी इस मसले का जिक्र किया है. गांधीजी के पड़पोते तुषार अरुण गांधी ने 1996 में ओडिशा के मुख्यमंत्री, गवर्नर और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन को एक पत्र लिखा था. उन्होंने बापू की अस्थियों के लॉकर में रखने संबंधी मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से लिखा, 'अगर वाकई ये खबर सही है कि गांधीजी की अस्थियां कटक के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के लॉकर में रखी हैं तो यह बहुत दुखद है. इसकी वजह यह है कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार मृत व्यक्ति की आत्मा को तब तक शांति नहीं मिलती, जब तक कि उसकी अस्थियां नदियों में प्रवाहित नहीं की जातीं.'
सिर्फ बैंक ने दिया जवाब
तुषार गांधी के इस पत्र का जवाब ना तो ओडिशा के राज्यपाल ने दिया और ना ही मुख्यमंत्री ने. हालांकि कुछ दिनों बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन ने जरूर पत्र का जवाब दिया कि वह इसकी जांच जरूर करेंगे. इस जवाब के कुछ समय बाद उन्होंने तुषार गांधी को फोन पर बताया, ये खबर सही है कि गांधीजी की अस्थियां स्टेट बैंक के लॉकर में हैं. ये कटक में बैंक के लॉकर में एक लकड़ी के बॉक्स में हैं. इस बॉक्स पर लिखा है- अस्थीज ऑफ महात्मा गांधी.
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फिर लिखे गए सीएम औऱ गवर्नर को पत्र
महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने स्टेट बैंक में छिपाकर रखी अस्थियों को लेकर ओडिशा के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को दो पत्र लिखे लेकिन किसी का जवाब नहीं मिला. इससे पहले दिसंबर 1994 में बैंक ने एक पत्र ओडिशा के मुख्यमंत्री को भी लिखकर कहा था कि वह इस सेफ डिपाजिट को निकाल लें, लेकिन इस पर कोई जवाब उन्हें नहीं मिला था. चूंकि ये बॉक्स ओडिशा सरकार द्वारा जमा किया गया था लिहाजा ये फैसला भी उन्हें करना था कि इस लकड़ी के बॉक्स का क्या करना है.
राज्य सरकार ने फिर नहीं दिया जवाब
बैंक से पत्र मिलने के बाद तुषार गांधी ने फिर ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक और गर्वनर जी. रामानुजम को एक दूसरा पत्र भेजा. साथ ही राज्य के चीफ सेक्रेटरी को भी उन्होंने पत्र भेजा कि गांधीजी की अस्थियां प्राप्त करने में उनकी मदद की जाए ताकि हिंदू धर्म के अनुसार उनके आखिरी रीति-रिवाज पूरे किए जा सकें. अबकी बार भी उन्हें अपने पत्र का कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद 21 मार्च 1996 में तुषार खुद ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक से मिलने भुवनेश्वर गए. मुख्यमंत्री ने कहा कि ये बात केवल अफवाह है. इस पर उन्हें विश्वास नहीं करना चाहिए. क्योंकि 1950 में ओडिशा के मुख्यमंत्री नव कृष्ण चौधरी थे. उनके पास कोई सेक्रेटरी नहीं था. फिर सरकार के पास इसका कोई रिकॉर्ड भी नहीं है. पटनायक ने कहा कि वह इस अफवाह से निपटने के लिए एक सीबीआई जांच कराने जा रहे हैं, जिसमें अस्थियों की रासायनिक जांच की जाएगी और पता लग जाएगा कि ये अस्थियां गांधीजी की हैं या नहीं.
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सीएम का रुख हैरान करने वाला
मुख्यमंत्री ने इस मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को गलत बताते हुए कहा कि बैंक खुद गलतबयानी कर रहा है, इसलिए सीबीआई जांच पूरे मामले की होनी ही चाहिए. हालांकि सीएम के इस जवाब पर तुषार हैरान हुए कि स्टेट बैंक का कोई जिम्मेदार अधिकारी क्यों ऐसा करेगा. इसके बाद ओडिशा सरकार के सचिव ने 23 मार्च 1996 को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, भुवनेश्वर के जनरल मैनेजर (ऑपरेशंस) को पत्र लिखकर कहा, राज्य सरकार इस लॉकर में पड़े बॉक्स की जिम्मेदारी नहीं लेती, जिसमें महात्मा गांधी की अस्थियां बताई जाती हैं, लिहाजा बैंक इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह इस बॉक्स का कुछ भी करे.
कई संगठन इस मामले में कूदे
तब तक इस मामले में कई और संगठन कूद पड़े थे. यह मामला पेचीदा हो गया. इस बीच तुषार भी जब भूख हड़ताल पर बैठ गए तो राज्य सरकार को अपना कदम पीछे खींचना पड़ा. राज्य सरकार को कहना पड़ा बैंक चाहे तो ये बॉक्स तुषार को दे सकता है लेकिन इस मामले में चूंकि कई संगठन कूद गए थे लिहाजा बैंक ने महात्मा गांधी के पड़पोते को सूचित किया कि अब कोर्ट ही इस मामले में कुछ कर सकता है. अगर वह कोर्ट का आदेश ले आएं तो वो गांधीजी की अस्थियां उन्हें दे सकते हैं. ऐसी हालत में तुषार गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अज़ीज मुसब्बर अहमदी को 26 मई 1996 में एक पत्र भेजकर अपील की. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल मानकर सुनवाई की. कई हफ्तों बाद फैसला आया कि ओडिशा के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के लॉकर में मौजूद महात्मा गांधी की अस्थियों का बॉक्स गांधीजी के पड़पोते को दे दिया जाए.
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क्यों छिपाया गया इन अस्थियों को
1996 के अंत तक या फिर अगले साल जनवरी में तुषार को लकड़ी के डिब्बे में रखी अस्थियां मिल गईं. तब वो 30 जनवरी 1997 में इलाहाबाद गए, जहां संगम में उन्होंने इसे प्रवाहित किया. लेकिन ये आज तक पता नहीं चल पाया कि आखिर क्यों गांधीजी की अस्थियों को छिपाया गया था. अगर ओडिशा की सरकार ने 1950 में ऐसा किया था तो उसका मकसद क्या था. हालांकि एक थ्योरी उस वक्त यह भी चली कि यह अस्थियां गांधीजी की नहीं होकर नेताजी की हैं. उनकी मौत को छिपाने के लिए राज्य सरकार ने इस तरह का मकड़जाल तैयार किया था.
Source : News Nation Bureau