Advertisment

ममता बनर्जी के लिए आगे की राह और बीजेपी को चुनौती देने की बाधाएं

ममता बनर्जी का बंगाल के गलियारों से परे पार्टी के क्षितिज का विस्तार करना वाम और कांग्रेस के पारंपरिक वोट आधार को खतरा है.

author-image
Nihar Saxena
New Update
Mamata Banerjee

ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस और वाममोर्चे के वोट खींचे.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

Advertisment

पश्चिम बंगाल में 2 मई 2021 को मतदान के नतीजे न केवल राज्य में बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. बंगाल में भाजपा की हार निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ा सबक है. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की बड़ी उपस्थिति के बावजूद ममता बनर्जी ने मोदी-शाह की जोड़ी की नाक के नीचे से अकेले दम पर ही पार्टी को बड़ी जीत दिला दी. राज्य की 294 सदस्यीय विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस को 215 सीटें मिली और सरकार बनाने का सपना देख रही बीजेपी को सिर्फ 77 सीटें ही मिलीं. विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का भारी बहुमत और देश के उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और पश्चिमी छोर में अपने आधार का विस्तार करने की उसकी योजना न केवल सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चेतावनी की घंटी है, बल्कि यह कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक के लिहाज से भी निकट भविष्य में देश में राजनीतिक समीकरणों को नया रूप दे सकता है. 

बंगाल में टीएमसी ने वाम-कांग्रेस के खींचे वोट
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 दिनों में 23 रैलियां कीं और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 20 दिनों में 79 रैलियां, रोड शो और टाउन हॉल आयोजित किए. केंद्र में सत्तारूढ़ दल ने बंगाल में प्रचार करने के लिए भाजपा शासित राज्यों के 52 से अधिक केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों और कैबिनेट मंत्रियों को तैनात किया था. लगभग 15 से 17 वरिष्ठ भाजपा और आरएसएस के नेता बंगाल में तीन महीने से अधिक समय से डेरा डाले हुए थे. जब से पीएम नरेंद्र मोदी ने देश और पार्टी की बागडोर संभाली है, शायद पहली बार दिल्ली को छोड़कर मोदी-अमित शाह का संयोजन पश्चिम बंगाल में लोगों की भावनाओं को पढ़ने में विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप भगवा ब्रिगेड को एक ठोस नुकसान हुआ. इसने न केवल भाजपा की नैतिक रीढ़ को नष्ट कर दिया, जिससे पार्टी अभी तक उबर नहीं पाई है, बल्कि साथ ही राज्य में दो पारंपरिक मुख्य समूहों कांग्रेस और वाम मोर्चा को भी नष्ट कर दिया है. कांग्रेस और वाम मोर्चा दोनों ही राज्य में एक नया राजनीतिक समीकरण बनाने को लेकर एक भी सीट हासिल करने में विफल रहे.

यह भी पढ़ेंः Omicron पर डबल डोज का भी असर नहीं, 10 में से 9 लोग हुए संक्रमित

त्रिपुरा में टीएमसी की बढ़ रही धमक
राज्य में पार्टी की सफलता से उत्साहित मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बंगाल के गलियारों से परे पार्टी के क्षितिज का विस्तार करना वाम और कांग्रेस के पारंपरिक वोट आधार को खतरा है. त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस ने इस साल जून में कोशिश करने और पैठ बनाने का फैसला किया. तीन महीने के भीतर पार्टी ने न केवल कांग्रेस को पछाड़ दिया, बल्कि 25 साल तक राज्य पर शासन करने वाले वाम मोर्चे को भी बैकफुट पर धकेल दिया. हालांकि तृणमूल कांग्रेस त्रिपुरा में 14 नगर निकायों में 334 सीटों में से केवल एक पर जीत हासिल करने में सफल रही, लेकिन पार्टी के वोट शेयर में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है. टीएमसी ने 2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में मिले वोटों की तुलना में वोट शेयर में कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया. तृणमूल का वोट शेयर 2018 में 0.3 प्रतिशत और 2019 के चुनावों में 0.4 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 16.39 प्रतिशत हो गया.

टीएमसी का वोट शेयर भी बढ़ा
दिलचस्प बात यह है कि जहां तक वोट शेयर का सवाल है टीएमसी वाम मोर्चे के करीब है. 2018 में बीजेपी की पहली सरकार बनने से पहले 25 साल तक राज्य पर शासन करने वाली सीपीआई (एम) को 2018 में 44.35 प्रतिशत के मुकाबले 18.13 प्रतिशत वोट मिले. 2019 में पार्टी का वोट शेयर 17.31 प्रतिशत था. सत्तारूढ़ भाजपा जिसने सभी 14 नगर निकायों में जीत हासिल कर नगर निकाय चुनावों में जीत हासिल की, ने अपना वोट शेयर 2018 में 43.59 प्रतिशत और 2019 में 49.03 प्रतिशत से बढ़ाकर 59.01 प्रतिशत कर दिया. अब जो सवाल मंडरा रहा है वह है ममता का गेम प्लान. सवाल यह नहीं है कि बीजेपी केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाएगी या नहीं, बल्कि सवाल यह है कि विपक्ष का गेम प्लान (अगर उसके पास है) क्या है?

यह भी पढ़ेंः  योगी सरकार का युवाओं को तोहफा, जानें किसे मिलेगा फ्री स्मार्टफोन-टैबलेट

कांग्रेस को भारी पड़ेगी अंदरूनी कलह और पूर्ण अध्यक्ष की कमी
अगर कांग्रेस की बात करें तो पूर्णकालिक अध्यक्ष के बिना पार्टी नेतृत्वहीन है. सोनिया गांधी यह आभास देती हैं कि वह अनिच्छुक अंतरिम अध्यक्ष हैं. उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी राहुल गांधी बिना किसी ठोस आधार के अपनी स्थिति को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं. 23 असंतुष्टों का समूह एक उपयुक्त समय का इंतजार कर रहा है, ताकि नेतृत्व को लेकर आलाकमान को एक कड़ा संदेश दिया जा सके. मुट्ठी भर राज्य जहां कांग्रेस सत्ता में है पार्टी के भीतर संघर्ष के कारण कलह बना हुआ है. कांग्रेस के लिए अभी घेराबंदी करने के लिए कोई नया क्षेत्र नहीं दिख रहा है. ममता बनर्जी इस राजनीतिक शून्य का उपयोग करने और एनडीए गठबंधन के खिलाफ मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए विपक्ष के प्रमुख चेहरे के रूप में आने की कोशिश कर रही हैं.

टीएमसी खुद को खड़ा कर रही मजबूत विपक्षी चेहरा
असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में टीएमसी को मजबूत करने के लिए वह पहले ही कांग्रेस की पूर्व सांसद और राहुल की करीबी सहयोगी सुष्मिता देव को शामिल कर चुकी हैं. जहां तक गोवा का संबंध है, टीएमसी इसे राष्ट्रीय राजनीति में एक लॉन्चिंग पैड के रूप में इस्तेमाल कर सकती है और खुद को भाजपा के खिलाफ एक जीवंत विपक्ष के रूप में ब्रांड कर सकती है, जिससे पूरे देश में एक जबरदस्त राजनीतिक होड़ देखने को मिल सकती है.

HIGHLIGHTS

  • त्रिपुरा में टीएमसी के वोट शेयर में आश्चर्यजनक वृद्धि
  • टीएमसी कांग्रेस और वाम दलों को काट बटोर रही वोट
  • बीजेपी के लिए मजबूत विपक्षी चेहरा बनने की चाह
PM Narendra Modi BJP congress INDIA Mamata Banerjee बीजेपी भारत tmc elections कांग्रेस चुनाव टीएमसी ममता बनर्जी Left वाममोर्चा
Advertisment
Advertisment