अब कोई शक-ओ-शुबहा नहीं रह गया है कि पश्चिम बंगाल (West Bengal) में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार लगातार तीसरी बार बनने जा रही है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) का अबकी बार 200 पार का नारा बेअसर रहा है और वह तिहाई अंकों में भी सीटें लाती नहीं दिख रही. बीजेपी का दावे के अनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाना और ममता बनर्जी (mamata Banerjee) का तीसरी बार सरकार बनाना कांग्रेस खासकर सोनिया-राहुल गांधी पर बेहद भारी पड़ने वाला है. बंगाल चुनाव नतीजों का राष्ट्रीय परिदृश्य पर पड़ने वाला यह असर कांग्रेस (Congress) के लिए सबसे घातक साबित हो सकता है. सबसे बड़ी बात तो यही है कि बीजेपी की विशालकाय मशीनरी के असर को बेअसर कर तीसरी बार सत्ता पर काबिज होकर ममता बनर्जी ने विपक्षी नेता बतौर अपना कद कई गुना बढ़ा लिया है. यही कद अब कांग्रेस खासकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भविष्य को बौना साबित कर सकता है.
विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बनीं ममता बनर्जी
कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर जब सरकार बनाई थी, तो उस वक्त विपक्ष के सारे प्रमुख नेताओं ने एक मंच पर जुटकर बीजेपी के सामने चुनौती पेश करने की कोशिश की थी. यह अळग बात है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सारे विपक्षी नेता बिखर गए. इसके बाद से लगातार विपक्ष में नेतृत्व और सर्वमान्य चेहरे की कमी खलती रही है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की हैट्रिक होने पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बन जाएंगी.
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विपक्ष में कोई नहीं ममता के टक्कर का
विपक्ष के नेतृत्व में चेहरे की तलाश करें तो पहला नाम राहुल गांधी का आता है. राहुल गांधी के नाम कोई ऐसी उपलब्धि नहीं है. लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई है. इसके अलावा राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने किसी विधानसभा चुनाव में भी प्रचंड जीत नहीं दर्ज की है. राहुल गांधी की उपलब्धि के नाम पर केवल छत्तीसगढ़ चुनाव में अच्छी जीत दर्ज है. इसके अलावा राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी जैसे तैसे सरकार बनाने में सफल रही थी. इसमें से मध्य प्रदेश और कर्नाटक में कुछ ही महीने बाद बीजेपी सत्ता में आ गई है. इसके अलावा राजस्थान में भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खींचतान के हालात बने हुए हैं. अब केरल में भी कांग्रेस का प्रदर्शन खासा निराशाजनक रहा है. इससे जनता में साफ संकेत गया है कि राहुल गांधी सत्ता में रहने के बावजूद अपने विधायकों को एकजुट रख पाने में सक्षम नहीं हैं.
क्षेत्रीय क्षत्रपों में ममता का कद बढ़ा
राहुल के अलावा अगर बाकी चेहरों पर गौर करें तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बीएसपी प्रमुख मायावती, जेडीएस के अगुवा एचडी कुमारस्वामी, वामदल के सीताराम येचुरी समेत तमाम नेताओं में से कोई भी क्षत्रप नहीं है जो बीजेपी के सामने अपनी ताकत दिखा पाया हो. केवल ममता बनर्जी ही हैं जो सीधे मुकाबले में बीजेपी को परास्त करती दिख रही हैं. हां. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद जेकरीवाल ने भी दिल्ली विधानसभा मजबूत बीजेपी के सापेक्ष जीता था, लेकिन उनमें सर्वमान्य नेता बनने के गुण कतई नहीं हैं.
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पीएम मोदी की ललकार का जबाब हैं ममता
पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव प्रचार हो या फिर कोई राष्ट्रीय मुद्दे. तमाम मसलों पर ममता बनर्जी विपक्ष की एक मात्र नेता हैं जो सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देती रही हैं. पीएम मोदी जिस तरह से भाषण के जरिए विरोधियों पर तीखे वार करते हैं, ठीक उसी अंदाज में ममता बनर्जी भी बीजेपी नेताओं पर प्रहार करती देखी जाती हैं. धारा 370 से लेकर एनआरसी, सीबीआई की राज्यों में कार्रवाई, मां दुर्गा मूर्ति विसर्जन, जय श्री राम का नारा आदि तमाम मसलों पर ममता मजबूती के साथ बीजेपी को निशाने पर लेती रही हैं.
हिंदू-मुस्लिम राजनिति पर भी टक्कर में
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से टीएमसी पर आरोप लगाए गए कि यह पार्टी मुस्लिम तुष्टीकरण करती है. इसके जवाब में ममता ने चुनावी मंच से खुद को शांडिल्य ब्राह्मण बताया और मां दुर्गा का पाठ करके दिखाया. इतना ही नहीं ममता ने मुस्लिम वोटरों को भी खुलकर सपोर्ट किया. यानी ममता ने बीजेपी को संदेश देने में सफल होती दिख रही हैं कि उनकी पहुंच ना केवल मुस्लिमों में बल्कि हिंदुओं में भी बराबर है.
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विपक्ष का चेहरा बनने से चूके थे नीतीश
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने हाथ मिलाकर जबरदस्त जीत दर्ज की थी. उस दौरान चर्चा थी कि नीतीश कुमार केंद्र में विपक्ष का बन सकते हैं, लेकिन करीब एक साल बाद ही वह दोबारा से एनडीए में चले गए, जिसके चलते विपक्ष लगातार सर्वमान्य चेहरे की तलाश में जुटा हुआ है. ऐसे में जो काम नीतीश नहीं कर सके, वह काम ममता बनर्जी कहीं आसानी से कर सकती हैं. यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बंगाल के चुनाव में लगभग सभी क्षत्रप टीएमसी के समर्थन में प्रचार करने पहुंचे. आज भी विभिन्न क्षत्रपों ने ममता बनर्जी को बधाई देने में देर नहीं लगाई.
राहुल को लेकर सोनिया के प्लान ध्वस्त
ममता बनर्जी की यही सफलता कांग्रेस के लिए खासी मुसीबत बन कर सामने आ रही है. गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लगातार कोशिश में हैं कि वह किसी भी तरह राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बना लें, लेकिन ममता की हैट्रिक के बाद ऐसा होने की कम ही संभावना है. पश्चिम बंगाल के साथ असम, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव हुए हैं. इन राज्यों के आए रुझानों में असम, पुडुचेरी और केरल में भी कांग्रेस हारती दिख रही है. अगर तमिलनाडु की बात करें तो वहीं भी कांग्रेस को डीएमके की ताकत से जीत मिलती दिख रही है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि 2014 से लगभग हर चुनाव में लगातार हार झेल रही कांग्रेस और सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल गांधी को कैसे विपक्ष का सर्वमान्य चेहरा स्थापित करती हैं.
HIGHLIGHTS
- बंगाल में बीजेपी के अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सकने से बदले सियासी समीकरण
- अब ममता बनर्जी विपक्ष की मजबूत सर्वमान्य नेता बनने की ओर अग्रसर
- कांग्रेस खासकर राहुल गांधी के लिए इस जीत से खड़ा हुआ गंभीर संकट