अगर बीजेपी सत्ता में वापसी करना चाहती है तो चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के बिना नहीं कर सकती है. ऐसे में ये दोनों नेता अब एनडीए में अहम साझेदार बन चुके हैं. 2014 और 2019 में अपने दम पर सरकार बनाने वाली बीजेपी इस बार बहुमत तक भी नहीं पहुंच पाई है. बीजेपी ने 543 में से 240 सीटें जीती हैं. अगर बीजेपी के सहयोगियों की सीटें मिला दें तो 292 सीटें होंगी और एनडीए की सरकार बन जाएगी. एनडीए में सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी के पास हैं, इसलिए इस लिहाज से वह गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है.
पीएम मोदी से नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की कैसी रही दोस्ती?
इसके बाद चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के पास 28 सांसद हैं, चंद्रबाबू दूसरे और नीतीश कुमार तीसरे नंबर पर अहम भूमिका में हैं. ऐसे में फिर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की शपथ लेनी है तो चंद्रबाबू नायडू और नीतीश ही ये सपना पूरा कर सकते हैं. बता दें कि एन चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के नरेंद्र मोदी के बीच रिश्ते काफी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. ये दोनों एनडीए छोड़ चुके हैं. हालांकि, बाद में लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही वह बीजेपी में शामिल हो गए. ऐसे में सवाल ये है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के रिश्ते मोदी के साथ कैसे रहे हैं? सबसे पहले शुरुआत नीतीश कुमार से करते हैं.
नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की कुछ ऐसी रही कहानी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक बात का डर हमेशा सताता रहता है कि कहीं नरेंद्र मोदी उनका वोट बैंक न बिगाड़ दें, इसीलिए 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने मोदी को बिहार में प्रचार करने की इजाजत नहीं दी यानी बिहार में ही आने ही नहीं दिया. 2010 के विधानसभा चुनाव में भी यही दोहराया गया और मोदी को प्रचार के लिए बिहार आने से रोक लगा दी. यह सिलसिला जारी रहा और जून 2010 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में होनी थी.
इससे पहले पटना के अखबारों में विज्ञापन छपे थे, जिसमें नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार हाथ मिलाते हुए दिखाया गया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इससे इतनी नाराजगी जताई कि उन्होंने बीजेपी नेताओं के साथ होने वाला डिनर को कैसिंल कर दिया.
गुजरात की मदद को दिया था ठुकरा
जब बिहार कोसी के कहर से जूझ रहा था, तब गुजरात सरकार ने बिहार सरकार को 5 करोड़ रुपये का चेक दिया था, जिसे नीतीश कुमार ने लौटा दिया. अभी तक ये नाराजगी कैमरे के पीछे चल रही थी और कभी-कभार सामने आ जाती थी, लेकिन साल 2013 में जब नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाया गया तो नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के रिश्ते की खटास सबके सामने आ गई और नीतीश कुमार खुलकर सामने आए और अपनी नाराजगी जाहिर की.
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17 साल के गठबंधन को दिया खत्म
नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो गए और 17 साल का गठबंधन खत्म कर दिया. गठबंधन खत्म करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हम अपने बुनियादी सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि इस गठबंधन को खत्म करने के लिए मजबूर किया गया. जेडीयू ने बीजेपी से अलग होकर लोकसभा चुनावी मैदान मे खूदा लेकिन जेडीयू यहां फेल साबित हुआ, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और 2 सीटें ही मिली, जो जेडीयू के लिए अच्छा नहीं था.
इस नुकसान की भरपाई के लिए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद साल 2015 में नीतीश कुमार ने लालू यादव से हाथ मिलाया और साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा और यह जोड़ी हिट हो गई, जिसके चलते बिहार में जेडीयू और राजद की सरकार बन गई.
कभी बीजेपी तो कभी आरजेडी का खेल
नीतीश कुमार सिर्फ दो साल तक राजद के साथ रहे और फिर राजद से अलग हो गये. जुलाई 2017 में नीतीश कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो गए. इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव और 2020 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा. बिहार में एनडीए की सरकार बनी लेकिन फिर अगस्त 2022 में नीतीश कुमार पलट गए और लालू की गोद में बैठ गए. लेकिन यहां भी ज्यादा दिन नहीं रहे और फिर साल 2024 यानी इस साल बीजेपी के साथ आ गए.
नरेंद्र मोदी और चंद्रबाबू नायडू की दोस्ती की कहानी
अब बात करते हैं कि चंद्रबाबू नायडू और नरेंद्र मोदी के रिश्ते कैसे रहे हैं. जैसे नीतीश कुमार के मोदी से रिश्ते थे, वैसे ही टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू के मोदी के साथ रिश्ते रहे हैं. टीडीपी और एनडीए साल 2018 तक साथ रहे लेकिन टीडीपी बीजेपी से अलग हो गई. टीडीपी ने अलग होते ही 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया लेकिन प्रस्ताव गिर गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और चंद्रबाबू आमने-सामने थे, जिसके चलते चुनाव के दौरान खूब बयानबाजी हुई थी. चंद्रबाबू नायडू के गठबंधन से अलग होने पर पीएम मोदी ने तंज कसते हुए नायडू को 'यूटर्न बाबू' कहा था.
मोदी से सबसे पहले मांगा था इस्तीफा
चंद्रबाबू वहीं शख्स हैं, जिन्होंने साल 2002 के गुजरात दंगो को लेकर नरेंद्र मोदी से सबसे पहले इस्तीफा मांगा था. तब पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और इसके बाद उनके ऊपर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया था. उन्होंने इसका जिक्र साल 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी रैलिया में बोला था कि मैं पहला व्यक्ति था, जिसने उनका इस्तीफा मांगा था. इसके बाद कई देशों ने उन्हें बैन कर दिया था. प्रधानमंत्री बनने के बाद वो एक बार फिर से अल्पसंख्यकों पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में टीडीपी का लोकसभा में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और वह आंध्र प्रदेश विधानसभा का चुनाव हार गई.
पवन कल्याण बने सूत्रधार
उस वक्त खबर सामने आई थी कि चंद्रबाबू नायडू फिर से बीजेपी से हाथ मिलाना चाहते हैं लेकिन मोदी उनकी एंट्री में रोड़े अटका रहे हैं. हालांकि कहा जाता है कि बीजेपी और टीडीपी को करीब लाने वाले नेता और अभिनेता पवन कल्याण ही हैं, जिन्होंने मोदी और नायडू के बीच दोबारा दोस्ती कराई है. इसके बाद चुनाव से पहले टीडीपी ने बीजेपी से हाथ मिला लिया.
Source :News Nation Bureau