सोशल मीडिया विवाद में भारतीयों को अब हल्के में नहीं लिया जा सकता

फेक सूचना पर एक समर्पित कानून की अनुपस्थिति के बीच भारत में वर्तमान में सोशल नेटवर्क को विनियमित करने के लिए अपर्याप्त आईटी नियम हैं.

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Nihar Saxena
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फिलहाल तो आईटी कानून को ही सख्ती से लागू करने की है जरूरत.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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नए आईटी नियमों (IT Rules) को लेकर सोशल मीडिया दिग्गजों और भारत सरकार/कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच रस्साकशी के बाद लाखों भारतीयों के पास ज्वलंत सवाल यही है कि आखिरकार इसका हल कैसे निकलेगा? इसकी वजह ये है कि तमाम हो-हल्ला के बावजूद फेक न्यूज का प्रसार ज्यों का त्यों जारी है. फेक सूचना पर एक समर्पित कानून की अनुपस्थिति के बीच भारत में वर्तमान में सोशल नेटवर्क को विनियमित करने के लिए अपर्याप्त आईटी नियम हैं. अब पंख फैला चुके सोशल मीडिया साइट्स पर नकेल कसने के लिए केवल नोटिस देने से काम नहीं चलने वाला है. इस बहस के बीच, भारत में उपयोगकर्ताओं को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने बारे में नकली समाचार / गलत सूचना के प्रसार को हटाने या अक्षम करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

कड़ा संदेश देने की जरूरत
अग्रणी साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को सोशल मीडिया कंपनियों को एक कड़ा संदेश देने की जरूरत है. तात्पर्य ये है कि नकली समाचार/गलत सूचना के प्रकाशन और प्रसारण के मामले में उपयोगकर्ताओं को हल्के में नहीं लिया जा सकता. प्रमुख साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने बताया, 'भारत फेक न्यूज के प्रसार को नियंत्रित करने में विफल रहा है, क्योंकि गलत सूचना को नियंत्रित करना कभी भी एक राजनीतिक प्राथमिकता नहीं रही है. भारत ने इस संबंध में राष्ट्रों की दौड़ में खुद को पीछे रहने दिया है, जबकि मलेशिया, सिंगापुर और फ्रांस जैसे छोटे देश गलत सूचना से निपटने के लिए समर्पित कानूनी ढांचे के साथ आ गए हैं.'

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फेक न्यूज पर कोई कानून ही नहीं
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 फेक न्यूज पर कानून नहीं है. नतीजतन, आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 के आधार पर आईटी अधिनियम, 2000 में संशोधन भी धारा 66 ए को छोड़कर, फर्जी खबरों से निपट नहीं पाया. धारा 66 ए ने इसे अपराध बना दिया जब कोई ऐसी जानकारी भेजता है जिसे वह जानता है कि वह झूठी है, लेकिन ये झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, चोट, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना पैदा करने के उद्देश्य से भेजी जाती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2015 में श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में धारा 66 ए को असंवैधानिक निर्णय के रूप में खारिज कर दिया.

राजनीतिक दृढ़ता का अभाव
सुप्रीम कोर्ट के एक अनुभवी वकील दुग्गल ने कहा, 'तब से, भारत में आगे बढ़ने और फर्जी खबरों / गलत सूचनाओं से लड़ने के लिए राजनीतिक दृष्टि और दृढ़ संकल्प नहीं है. 15 मई से अपनी उपयोगकर्ता गोपनीयता नीति को लागू करने और चैट 'ट्रेसेबिलिटी' की मांग पर केंद्र पर मुकदमा करने के साथ आगे बढ़ते हुए, व्हाट्सएप ने स्पष्ट किया कि वह कम से कम आगामी पीडीपी (व्यक्तिगत डेटा संरक्षण) कानून लागू होने तक इस दृष्टिकोण को बनाए रखेगा. तस्वीर पारदर्शी है. वे जानते हैं कि भारत में यूरोपीय संघ (ईयू) में जीडीपीआर (जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) जैसे मजबूत डेटा सुरक्षा कानून का अभाव है. भारत नए आईटी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 द्वारा नकली समाचार/गलत सूचना के कुछ हिस्से को नियंत्रित करने का एक कमजोर प्रयास कर रहा है.

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ट्विटर पर लगाम कसने के लिए करें ये काम
दुग्गल ने बताया, 'हालांकि, यह गलत सूचना से लड़ने के लिए लिप-सर्विस प्रदान करने के समान है. आईटी नियम, 2021 के तहत उपयोगकर्ताओं के लिए गैर-अनुपालन के लिए कोई परिणाम निर्धारित नहीं किया गया है. दरअसल, देश में किसी भी कानूनी प्रावधान के तहत गलत सूचनाओं को सीधे तौर पर विस्तृत नहीं किया गया है. वोयाजर इन्फोसेक के निदेशक और एक प्रमुख साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ जितेन जैन के अनुसार, सोशल मीडिया फर्म डिजिटल ईस्ट इंडिया कंपनियों के नए अवतार हैं. जैन ने बताया, 'वे हमारे मौजूदा कानूनों की अवहेलना कर रहे हैं और हमारी नीति-निर्माण प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रहे हैं जो सरकार का कार्य है. ट्विटर को भारत को अपनी नीतियों को प्रभावित करने, एक निजी कंपनी की तरह काम करने, देश के कानून का पालन करने और करों का भुगतान करने के लिए धमकाना नहीं चाहिए और टेक्स देना चाहिए, जिस भारतीय डेटा पर वे पैसा कमाते हैं.'

सोशल मीडिय फर्म भारत में करें शिकायत ना कि विदेशों में 
सोशल मीडिया फर्मों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की अनुपस्थिति ने उन्हें अक्सर एकतरफा और मनमाने उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है. दिल्ली एचसी के समक्ष सोशल मीडिया नामित अधिकारियों के मामले पर बहस कर रहे आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य के वकील विराग गुप्ता ने कहा कि नए आईटी नियमों के अनुसार, सोशल मीडिया फर्मों के भारत में शिकायत अधिकारी होने चाहिए, न कि विदेशों में. गुप्ता ने कहा, 'ये कंपनियां मध्यस्थ नियमों में हितधारक हैं और उन्हें नए नियमों का पालन करना चाहिए. नियमों के सीमित पहलू को न्यायिक चुनौती के बावजूद, व्हाट्सएप और अन्य महत्वपूर्ण सोशल मीडिया फर्म निर्धारित समय अवधि के भीतर आईटी नियमों का पालन करने के लिए बाध्य हैं.'

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भारत के लिए क्या विकल्प हैं?
गलत सूचना पर एक समर्पित कानून के अलावा, पहला विकल्प नए आईटी नियमों के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करना है जिनका सोशल मीडिया बिचौलियों द्वारा पालन करने की आवश्यकता है, और फिर व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून को लागू करना है. देश को प्रभावी कानूनी प्रावधानों के साथ आने की भी आवश्यकता है जो सामाजिक रूप से सामना करने वाले परिणामों को निर्धारित करते हैं.

HIGHLIGHTS

  • हो-हल्ला के बावजूद फेक न्यूज का प्रसार ज्यों का त्यों जारी
  • गलत सूचना पर एक समर्पित कानून का होना है बेहद जरूरी
  • नए आईटी नियमों के प्रावधान प्रभावी ढंग से किए जाएं लागू
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