जिस तरह से नाटकीय तरीके से विकास दुबे (Vikas Dubey) की गिरफ्तारी हुई ठीक उसी तरह इसका एनकाउंटर (Encounter) भी हो गया. विकास दुबे 2 जुलाई को बिकरू गांव में सीओ सहित आठ पुलिसकर्मियों की मौत के मामले का मुख्य आरोपी थी. करीब एक सप्ताह तक फरार रहने के बाद गुरुवार को उसे उज्जैन के महाकाल मंदिर से गिरफ्तार किया गया. गिरफ्तारी के बाद वह खुद ही चिल्ला चिल्ला कर 'मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला...' कह अपनी पहचान उजागर कर रहा था. उसे डर था कि पुलिस ने जिस तरह उसके पांच साथियों का एनकाउंटर किया है उसी तरह पुलिस उसका भी एनकाउंटर न कर दे. यूपी एसटीएफ के दो दर्जन से अधिक जवान और अधिकारियों के बीच विकास दुबे के पुलिस से हथियार छीनने और भागने की कोशिश में मुढभेड़ में मारे जाने की कहानी पर कई सवाल उठ रहे हैं. इससे पहले भी देशभर में कई एनकाउंटर ऐसे हुए हैं जिन न सिर्फ सवाल उठा बल्कि उनसे देश की सियासत भी गर्मा गई.
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हैदराबाद एनकाउंटर
वेटनरी डॉक्टर दिशा के साथ गैंगरेप और हत्या मामले के चारों आरोपियों का पिछले साल 6 दिसंबर को एनकाउंटर किया गया. पुलिस उन्हें सीन रीक्रिएट करने मौके पर ले गई थी. सुबह करीब 6 बजे के आसपास एनकाउंटर में मार गिराया था. पुलिस मामले में सबूत इकट्ठा करने के लिए सभी आरोपियों को उसी जगह लेकर गई थी, जहां उन्होंने महिला डॉक्टर के साथ गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया था. पुलिस का कहना था कि आरोपी पुलिस की पिस्टल छीनकर भाग रहे थे. आरोपियों ने पुलिस पर फायरिंग भी की जिसके बाद पुलिस ने उन्हें ढेर कर दिया. इस एनकाउंटर पर सवाल भी उठे. अब यह मामला कोर्ट में है.
बटला हाउस एनकाउंटर
19 सितंबर 2008 को दिल्ली के बटला हाउस में गोलियों की तड़तड़ाहट सुनी गई. इंडियन मुजाहीदीन के संदिग्ध आतंकियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई. इस एनकाउंटर में 2 संदिग्धों की मौत हो गई थी. मरने वालों की पहचान मोहम्मद आतिफ अमीन और साजिद के रूप में हुई थी. वहीं मौके से दो युवकों को गिरफ्तार किया गया था जबकि एक वहां से भाग निकला था. इस एनकाउंटर में टीम का नेतृत्व कर रहे मोहन चंद्र शर्मा को भी गोली लग गई थी. इलाज के दौरान मोहन चंद्र शर्मा की अस्पताल में मौत हो गई थी. बटला हाउस एनकाउंटर भी काफी चर्चा में रही. इसे लेकर खूब सियासत भी हुई.
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इशरत जहां एनकाउंटर ने खींचा लोगों का ध्यान
15 जून 2004 में खालसा कॉलेज मुंबई की इशरत जहां और उनके तीन साथियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया था. गुजरात पुलिस ने दावा किया कि इनका संबंध लश्कर-ए-तैयबा से था और ये लोग गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना बना रहे थे. इस टीम की अगुवाई अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के उपायुक्त डीजी वंजारा कर रहे थे. इस मुठभेड़ को फर्जी बताया गया. इस एनकाउंटर की सीबीआई जांच हुई. सीबीआई ने जांच के बाद इस मुठभेड़ को इंटेलिजेंस ब्यूरो और गुजरात पुलिस के आला अफ़सरों की मिली भगत बताया था. हालांकि इस मामले में अभी कोर्ट का फैसला आना बाकी है.
सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर मामला
साल 2005 जब सोहराबुद्दीन शेख अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद से महाराष्ट्र जा रहे थे तब गुजरात पुलिस की एटीएस शाखा ने बस को बीच में रोक कर अपने साथ उन्हें ले गई. इसके घटना के तीन दिन बाद पुलिस ने मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन को मार दिया. पुलिस ने सोहराबुद्दीन शेख को अंडरवर्ल्ड का अपराधी बताया था. लेकिन इस मामले में काफी हंगामा होने के बाद सीबीआई ने इसकी जांच की. जांच के बाद कई पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था. सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में गुजरात सरकार ने मना था कि ये फर्जी मुठभेड़ थी. मुठभेड़ का सिलसिला यहीं नहीं थमा था. पुलिस ने सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसी प्रजापति को हिरासत में लेकर मार दिया था. घटना 2006 की है. इस एनकाउंटर को भी फर्जी कहा गया. जिसे गुजरात पुलिस ने अंजाम दिया था.
लखन भैया का एनकाउंटर भी निकला था फर्जी
एनकाउंटर को लेकर महाराष्ट्र भी हमेशा चर्चा में रहा. यहां पर कई अंडरवर्ल्ड अपराधियों को एनकाउंटर में मारा गया. जिसमें एक नाम लखन भैया का था. लखन भैया को गैंगस्टर छोटा राजन का सहयोगी कहा जाता था. 11 नंवबर 2006 में मुंबई पुलिस ने उसे एनकाउंटर में मार दिया. लेकिन पुलिस उस वक्त घेरे में आ गई जब मारे गए लखन भैया का भाई राम प्रसाद मीडिया के सामने आकर कहा कि पुलिस उसके भाई को उठा कर ले गई थी. इसके बाद उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जांच के बाद यह एनकाउंटर भी फेक पाया गया. साल 2013 में मामले में मुंबई की सेशन कोर्ट ने 21 लोगों को दोषी पाया और उम्र क़ैद की सजा सुनाई, जिनमें कई पुलिस वाले भी थे.
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जब कनॉट प्लेस गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था
31 मार्च 1997 को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने कनॉट प्लेस इलाके में एक एनकाउंटर को अंजाम दिया था. इस एनकाउंटर में हरियाणा के कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह को गैंगस्टर समझकर पुलिस ने गोली मार दी थी. एसीपी एसएस राठी के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच ने इस एनकाउंटर को अंजाम दिया था. यह एनकाउंटर भी फर्जी निकला. फर्जी एनकाउंटर के इस मामले में 16 वर्ष तक सुनवाई चली. जिसके बाद अदालत ने आरोपी पुलिस और अन्य अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे.
मध्य प्रदेश में 8 सिमी सदस्यों का एनकाउंटर
अक्टूबर 2016 में पूरे देश में 8 सिमी के सदस्यों की मुठभेड़ में मारे जाने को लेकर चर्चा रहा. पुलिस ने सिमी से जुड़े 8 कैदियों को मार गिराय था. कहा जा रहा था कि सभी कैदी जेल से भाग रहे थे. इन कैदियों ने एक सुरक्षा गार्ड की गला रेत कर हत्या की थी. फिर चादरों की रस्सी बनाकर जेल से भाग निकले थे. पुलिस ने इन्हें ईंटखेड़ी के पास घेर कर एनकाउंटर में मार गिराया था.
एनकाउंटर में मारा गया था दारासिंह
23 अक्टूबर 2006 को राजस्थान के जयपुर में दारा सिंह का एनकाउंटर हुआ था. दारा सिंह की पत्नी सुशीला देवी ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताया था. दारा सिंह की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को यह केस सौंपा था. 23 अप्रैल 2010 को सीबीआई ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी. इस मामले में मंत्री राजेन्द्र राठौड़, तत्कालीन एडीजी एके जैन सहित 17 लोगों को आरोपी बनाया था. इसके बाद सीबीआई ने जांच के बाद अदालत में चार्जशीट पेश की.
यूपी में एप्पल के एरिया मैनेजर की पुलिस की गोली से मौत
पुलिस जो कानून का रक्षक होता है वहीं जोश में आकर उसका उल्लंघन कर बैठता है. लखनऊ में एप्पल के एरिया मैनेजर की मौत उसकी बानगी है. विवेक तिवारी की 28 सितंबर 2018 को पुलिस की गोली से मौत हो गई थी. रात के करीब डेढ़ बजे विवेक अपनी दोस्त सना के साथ गाड़ी से जा रहे थे. दो पुलिसकर्मियों प्रशांत चौधरी और संदीप कुमार ने उन्हें रुकने का इशारा किया था. जब ने नहीं रुके तो सिपाही प्रशांत चौधरी ने विवेक निशाना बनाकर गोली चला दी थी. जिसमें विवेक की मौत हो गई थी. यह मामला भी कोर्ट में चल रहा है.
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आंध्र प्रदेश 'स्मगलर' एनकाउंटर
7 अप्रैल 2015 को आंध्र प्रदेश की पुलिस ने राज्य के चित्तूर जंगल में 20 कथित चंदन तस्करों को गोली मार दी. इस मामले में पुलिस ने कहा था कि अपराधियों ने उनपर हमला किया था. बार-बार चेतावनी देने के बाद भी वो नहीं रुके जिसकी वजह से गोली चलानी पड़ी थी. इस एनकाउंटर के भी चर्चे खूब हुए थे. इसकी सीबीआई जांच की मांग की गई थी.
यूपी के पीलीभीत में 10 सिख तीर्थ यात्रियों का हुआ था एनकाउंटर
पीलीभीत में 10 सिख तीर्थ यात्रियों का हुआ था एनकाउंटर
यूपी के पीलीभीत जिले में जून 1991 में 10 सिख तीर्थ यात्रियों को आतंकवादी बता कर एनकाउंटर किया गया था. सीबीआई की अदालत में इस एनकाउंटर को फर्जी पाया गया. लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने 47 पुलिसकर्मियों को उम्रकैदकी सजा सुनाई. सिख तीर्थ यात्री बिहार में पटना साहिब और महाराष्ट्र में हुजूर साहिब के दर्शन कर वापस लौट रहे थे, तभी पीलीभीत के पास उन्हें पुलिस ने बस से उतारा और तीन अलग-अलग जंगलों में ले जाकर गोली मार दी.
Source : News Nation Bureau