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आज है हथकरघा दिवस, जानें कैसे टाटा ट्रस्ट बुनकरों की जिंदगी को रहा संवार

भारत का हर राज्य अलग-अलग बुनाई के लिए मशहूर है. असम कामरूप कपास और एरी रेशम के लिए फेमस है. वहीं नागालैंड के दीमापुर और फेक टाउन बैकस्ट्रैप-लूम टेक्सटाइल के लिए प्रसिद्ध है.

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nitu pandey
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आज है हैडलूम डे, जानें कैसे टाटा ट्रस्ट बुनकरों की जिंदगी को रहा संवार( Photo Credit : ANI)

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आज 7 अगस्त राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Handloom Day) है.यह तारीख भारत के इतिहास में विशेष अहमियत रखता है. स्वदेशी आंदोलन इसी दिन 1905 में शुरू किया गया था. अब यह तारीख भारत के हथकरघा बुनकरों और कारीगर समुदायों को सम्मान देने का मौका है. भारत का हर राज्य अलग-अलग बुनाई के लिए मशहूर है. असम कामरूप कपास और एरी रेशम के लिए फेमस है. वहीं नागालैंड के दीमापुर और फेक टाउन बैकस्ट्रैप-लूम टेक्सटाइल के लिए प्रसिद्ध है. आंध्र प्रदेश जामदानी और जरी की महीन सूती और रेशमी बुनाई के लिए मशहूर है. जबकि ओडिशा के मनिबंध में कॉटन और तूसर सिल्क का काम होता है. 

भारत के हथकरघा उद्योग पर संकट
कोरोना महामारी की वजह से हथकरघा उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है. उनके उत्पादों की बिक्री पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. युवा बुनकर इस विशेष कौशल से दूर हो रहे हैं. हालांकि कुछ गैर सरकारी संगठन हैं जो पारंपरिक भारतीय हथकरघा उद्योग को जिंदा रखने की दिशा में काम कर रहे हैं. ऐसी ही एक पहल है देश के सबसे पुराने परोपकारी संगठन टाटा ट्रस्ट की ओर से की जा रही है. इसका पहला मकसद डूब रहे हथकरघा उद्योग की मदद करना है और युवाओं को इससे जोड़ना है.  

एक केंद्र पर होगा सबकुछ 

टाटा ट्रस्ट संगठन डिजाइन केंद्र स्थापित कर रही है जो खरीदारों, डिजाइनरों, शोधकर्ताओं और पारंपरिक शिप्प के प्रेमियों के लिए वन-स्टॉप डेस्टिनेशन के रूप में काम कर सकेगी. यह कार्यक्रम, कारीगरों को शिक्षित और कुशल बनाने के साथ-साथ कारीगरों से सीधे थोक मूल्यों पर हाथ से बुने उत्पादों की खरीद को भी बढ़ावा देता है. 

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टाटा ट्र्स्ट ने अंतरण कार्यक्रम किया लॉन्च 

टाटा ट्रस्ट ने भारतीय राज्यों में हथकरघा समूहों को फिर से जीवंत करने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम के रूप में 'अंतरण' को लॉन्च किया है. अंतरण टाटा ट्रस्ट के शिल्प-आधारित आजीविका कार्यक्रम का एक प्रमुख हस्तक्षेप है, जो चार राज्यों में छह अद्वितीय बुनाई समूहों को सीधे प्रभावित करता है. असम (कामरूप और नलबाड़ी), नागालैंड (दीमापुर), ओडिशा (गोपालपुर और मनियाबंधा), और आंध्र प्रदेश (वेंकटगिरी) में हैं. इसका उद्देश्य मूल्य श्रृंखला के प्रत्येक तत्व में कारीगरों के नेतृत्व वाले सूक्ष्म उद्यम बनाकर छह पायलट बुनाई समूहों को बदलना है.

'अंतरण' की जोनल मैनेजर शारदा गौतम ने बताया कि अंतरन की स्थापना के बाद टाटा ट्रस्ट्स के शिल्प-आधारित आजीविका कार्यक्रम ने 143 कारीगर उद्यमियों का पोषण किया है. जिन्होंने अपने ज्ञान को 1,492 सहयोगी कारीगरों के साथ साझा किया है. उन्होंने बताया कि इस मुहिम का मकसद स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों की मदद करना और उनके बेहतरीन उत्पादों को घरेलू और विदेशी बाजारों तक पहुंचाना है. इस मुहिम के तहत कलाकारों की उनका ख़ुद का बिज़नेस शुरू करने में मदद की जाती है.

कलाकार तीन तरह के होते हैं जो एक दूसरे के काम आते हैं

शारदा बताती हैं कि कलाकार तीन तरह के होते हैं. एक तो वे जो बिज़नेस की समझ रखते हैं और उससे जुड़े स्किल्स भी जानते हैं. दूसरे वे जो कारीगर होते हैं. इन्हें उत्पादन की आधुनिक तकनीकों के बारे में बहुत जानकारी नहीं होती, लेकिन ये हथकरघा बुनाई की कला में पारंगत होते हैं. तीसरे वे जो मजदूरी करते हैं. इनके पास कोई ख़ास स्किल नहीं होता लेकिन पहली दो श्रेणियों वाले कलाकारों की मदद करते हैं.

अंतरण मुहिम के अंतर्गत इनक्यूबेशन सेंटर्स भी शामिल हैं, जहां पर पहली दो श्रेणियों के कलाकारों को शिक्षित किया जाना है. ओडिशा, असम और नागालैंड में तीन इनक्यूबेशन सेंटर्स खोले जा रहे हैं.

Source : News Nation Bureau

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