इस बात की संभावना सामरिक और कूटनीतिक विशेषज्ञ पहले से ही जता रहे हैं कि रूस-यूक्रेन (Ukraine) युद्ध के बाद वैश्विक समीकरण तेजी से बदलेंगे. यह अलग बात है कि उनकी संभावना समय से पहले ही आकार लेने लगी है. गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में बीते हफ्ते रूस (Russia) के खिलाफ लाए गए निंदा प्रस्ताव पर वोट नहीं करने वालों में भारत-चीन के अलावा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) भी था. यह तब है जब यूएई को अमेरिका (America) समेत पश्चिमी देशों के काफी नजदीकी माना जाता है. इसे मध्य पूर्व देशों में ध्रुवीकरण की प्रक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है. वोटिंग से परहेज करने को वाजिब ठहराते हुए यूएई के राष्ट्रपति के सलाहकार ने तर्क दिया कि किसी एक का पक्ष लेने से केवल और ज्यादा हिंसा होगी. इसे समझ उनके देश की प्राथमिकता सभी पक्षों को राजनीतिक समाधान खोजने के लिए बातचीत के लिए प्रोत्साहित करना है.
खाड़ी देशों में बदल रहे समीकरण
अचरज करने वाली बात यह है कि संयुक्त अरब अमीरात ने कुछ ही दिन पहले यूएनएससी के अध्यक्ष पद को एक महीने के लिए संभाला है. इसके बाद ही उसके समक्ष यूक्रेन युद्ध में पक्ष-विपक्ष में लामबंद होने की चुनौती आ खड़ी हुई. अब यूएई का रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपनाया गया रूख यही दर्शाता है खाड़ी देश अपने पारंपरिक सहयोगियों और नए साझेदारों के बीच परस्पर संबंधों को संतुलित करने के पक्षधर हैं, बजाय किसी खेमेबंदी का सक्रिय हिस्सा बनने के. इससे यह भी पता चला है कि अमेरिका को अपने सहयोगियों से रूस के हमले की निंदा कराने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
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रूस-यूक्रेन संकट के बीच क्रॉउन प्रिंस ने की पुतिन से बात
इस बीच क्रॉउन प्रिंस ने इसी मंगलवार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ फोन पर कहा कि यूएई ने यूक्रेन संकट के लिए एक शांतिपूर्ण समाधान की अपील की है, जो सभी पक्षों के हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी देता है. उन्होंने पुतिन के साथ ऊर्जा सहयोग पर भी चर्चा की. सिर्फ यूएई ही नहीं, बल्कि दूसरे अरब राज्यों ने भी रूस के यूक्रेन पर हमले की निंदा करने से परहेज किया है. अगर समीकरणों की बात करें तो सऊदी अरब भी तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस गठबंधन में रूस को मुख्य भागीदार मानता है. अरब लीग ने बजाय रूस की निंदा करने के संयुक्त विज्ञप्ति में तनाव कम करने और संयम बरतने की अपील की थी.
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यूएई से जो बाइडन संबंधों में खटास के लिए जिम्मेदार
मध्य पूर्व और अमेरिका पर गहराई से नजर रखने वाले विशेषज्ञों की मानें तो यूएई ने इस कदम से अमेरिका की कठपुतली बतौर अपनी छवि को खुद खंडित कर दिया है. इन विशेषज्ञों के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात की अमेरिका से संबंधों में खटास जो बाइडन के आने के बाद पैदा हुई. यूएई के विरोध के बावजूद अमेरिका ने यमन के ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों को अमेरिका की आतंकवादी संगठनों की सूची से हटा दिया. इसके बाद हूतियों ने अबू धाबी पर घातक आतंकी हमले शुरू कर दिए. यही नहीं यूएई ने एफ-35 लड़ाकू जेट खरीदने के लिए अमेरिका के साथ 23 अरब डॉलर के सौदे पर हो रही बातचीत भी रोक दी है. यही नहीं, उसने संकेत दिए कि वह पहली बार चीन से लड़ाकू जेट खरीदने की प्रक्रिया में है. यहां यह भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यूएई और रूस के बीच व्यापार 1997 के बाद से यह दस गुना बढ़ गया है. जाहिर है ये सभी घटनाएं साफतौर पर इशारा कर रही है कि मध्य पूर्व के देशों में अमेरिका का कद घट रहा है. बदलते वैश्विक समीकरणों के लिहाज से यह एक बड़ा संकेत है.
HIGHLIGHTS
- अमेरिका का नजदीकी रहा यूएई भी पहचान रहा बदलता वक्त
- यूएनएससी में वोटिंग से परहेज कर पुतिन से की फोन पर बात
- बीते कुछ दशकों में रूस से व्यापार में 10 गुना तक हुई वृद्धि