राजनीति में न तो कोई स्थायी मित्र होता है और ना ही स्थायी शत्रु. काल-खंड-परिवेश के मुताबिक राजनीतिक रिश्ते बदलते रहते हैं. इसकी बानगी महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का शिवसेना (Shivsena) संग पुराना रिश्ता है. गठबंधन के जरिये दशकों तक साथ रहने वाली शिवसेना ने बीजेपी संग रिश्ता तोड़ एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन के साथ सूबे में सरकार बनाई. यह अलग बात है कि इसके बाद बीजेपी और शिवसेना के बीच तमाम मसलों पर सियासी तीर चले. बीच में उद्धव ठाकरे सरकार के गिरने तक की नौबत आ गई थी. अब मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से महज 10 मिनट की सीएम उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की निजी मुलाकात के बाद भी समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं. कम से कम शिवसेना के मुखपत्र सामना के तेवरों से तो यही लग रहा है.
सत्ता में साथ नहीं, लेकिन रिश्ता नहीं टूटा
वैसे भी मंगलवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे की मुलाकात के बाद कयास लगने शुरू हो गए थे. इसके बाद उद्धव ठाकरे ने एक बयान भी दिया था कि पीएम से उनके निजी रिश्ते भी हैं. हालांकि आज का सामना देख समझ पाना मुश्किल है कि पीएम-सीएम के बीच दस मिनट की मुलाकात में ऐसा क्या हुआ कि शिवसेना के सुर बदल गए हैं. पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में इसके साफ संकेत मिले हैं. सामना ने लिखा है कि सत्ता में एक साथ नहीं हैं इसका मतलब रिश्ता टूट गया ऐसा नहीं होता है.
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राजनीतिक मतभेद से रिश्ते कमजोर नहीं होते
सामना ने आगे लिखा है कि राजनीतिक मतभेद होने का मतलब व्यक्तिगत रिश्ते कमजोर हो गए, ऐसा नहीं होता है तथा व्यक्तिगत रिश्ते-नातों में सिर्फ सत्ता ही रिश्ते की डोर नहीं होती है. शिवसेना ने हमेशा इन रिश्तों को संभाला है. नरेंद्र मोदी-उद्धव ठाकरे की मुलाकात जिस तरह से राज्य शिष्टाचार का हिस्सा थी, उसी तरह व्यक्तिगत रिश्तों की भी थी. इसलिए दिल्ली की इस भेंट पर इसके आगे लंबे समय तक चर्चा की धूल उड़ती रहेगी. मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा राजनीति के लिए नहीं था, जिन्हें इस मुलाकात में राजनीति दिखती है, वे धन्य होंगे. प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री की मुलाकात से केंद्र से जुड़ीं महाराष्ट्र की समस्याएं हल हों!
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पीएम मोदी को सराहा
सामना ने यह भी लिखा है कि मराठा आरक्षण पर सकारात्मक फैसला हो यह कहने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे मंगलवार को अचानक दिल्ली पहुंचे. अजीत पवार व अशोक चव्हाण को साथ ले गए. महाराष्ट्र के इन प्रमुख नेताओं व प्रधानमंत्री मोदी के बीच सवा घंटे तक सकारात्मक बातचीत हुई. सामना आगे लिखता है कि मराठा आरक्षण के मुद्दे पर संभाजी राजे ने आंदोलन किया तो उस आंदोलन में हम हिस्सा लेंगे ही, बीजेपी के कुछ नेताओं ने ऐसी घोषणा कर दी. इसलिए इस प्रकरण से राजनीति गर्म हो गई. सच्चाई ये है कि आरक्षण के संदर्भ में निर्णय लेने का अधिकार केंद्र को ही है. इसलिए आगे की लड़ाई दिल्ली में ही लड़नी होगी.
HIGHLIGHTS
- महज 10 मिनट की निजी मुलाकात के बाद बदले समीकरण
- सामना ने निजी रिश्तों का हवाला देकर लिखी कई बातें
- पुरजोर तरीके से कहा सत्ता में साथ नहीं, पर रिश्ते बरकरार