Operation Blue Star Anniversary: आज से 40 साल पहले 6 जून 1984 को अमृतसर के हरिमंदिर साहिब परिसर को मुक्त कराने के लिए भारतीय सेना ने एक ऑपरेशन चलाया था. जिसे ऑपरेशन ब्लू स्टार नाम दिया था. इस ऑपरेशन में कई लोगों की जान गई थी. भारतीय सेना के जवानों ने हरिमंदिर साहिब परिसर को दमदमी टकसाल के नेता जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके अनुयायियों से मुक्त कराने के लिए चलाया था. क्योंकि उस जमाने में पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें बढ़ रही थीं. वह अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपकर देश विरोधी घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश कर रहे थे. भारतीय सेना का ये ऑपरेशन सफल रहा. और जरनैल सिंह भिंडरावाले के साथ उसके कई समर्थक भी इस ऑपरेशन के दौरान मारे गए. लेकिन इस ऑपरेशन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. जिससे देश में हाहाकार मच गया.
जानें कौन थे ऑपरेशन ब्लू स्टार के अहम किरदार
दरअसल, साल 1984 में जून की शुरुआत में अमृतसर में तीन दिनों तक ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया. जिसमें कम से कम 300 लोग मारे गए थे. इस ऑपरेशन के दौरान 90 से अधिक सैनिक भी हताहत हुए थे. इस ऑपरेशन में अकाल तख्त को भारी नुकसान हुआ. इस ऑपरेशन में सात लोगों का अहम योगदान था. जिन्होंने पंजाब के इतिहास में विनाशकारी अध्याय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
1. इंदिरा गांधी
इस ऑपरेशन का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिया गांधी को जाता है. उन्ही के आदेश पर ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था. दरअसल, स्वर्ण मंदिर पर कब्जे कर बैठे उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए उन्होंने ही आदेश दिया था. दरअसल, पीएम इंदिरा गांधी को खुफिया इनपुट मिला था कि अगर जल्द ही कुछ न किया गया तो पंजाब हाथ से निकल जाएगा. इसके बाद उन्होंने इस ऑपरेशन को मंजूरी दे दी. लेकिन इसके ठीक चार महीने बाद यानी 31 अक्टूबर 1984 को उनके सिख अंगरक्षक बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी.
2. जरनैल सिंह भिंडरावाले
जरनैल सिंह भिंडरवाला तब 37 साल का था. उसने ही स्वर्ण मंदिर की किलेबंदी की और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. उसका जिन्म फरीदकोट जिले के रोड़े गांव के एक किसान परिवार में हुआ था. वह सात भाइयों में सबसे छोटा था. परिवार ने उसे भिंडरावाले को सिख मदरसा दमदमी टकसाल भेजा. उनके उग्र भाषणों और अमृत प्रचार आंदोलन से ग्रामीण इलाकों में उसके तमाम अनुयायी बन गए. ब्लू ऑपरेशन के दौरान सेना के जवानों ने उसे मार गिराया.
3. अमरीक सिंह
अमरीक सिंह को जनरैल भिंडरावाले का काफी करीबी माना जाता था. उसका जन्म भारत-पाकिस्तान सीमा के पास भूरा कोहना गांव में हुआ था. ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के अध्यक्ष के रूप में वह भिंडरावाले का दाहिना हाथ बन गया. ऑपरेशन ब्लू स्टार में सेना ने अमरीक सिंह को भी मार गिराया था.
4. मेजर जनरल शाबेग सिंह
मेजर जनरल शाबेग सिंह जरनैल भिंडरावाले का गुरु था. जो अमृतसर के गांव खियाला का रहने वाला था. वह एक सैन्य अधिकारी था, जिसे गुरिल्ला युद्ध में महारथ हासिल थी. साल 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ एक गुप्त मिलिशिया समूह में उसने मुक्ति वाहिनी को प्रशिक्षित किया था. सेवानिवृत्ति के एक दिन पहले उसे सेना में वित्तीय गड़बड़ी के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया. जिससे उसके मन में सेना के प्रति नफरत पैदा हो गई. इसके बाद वो भिंडरावाले के साथ जुड़ गया. ऑपरेशन ब्लू स्टार में उसकी भी मौत हो गई.
5. जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी
जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी सेना की पश्चिमी कमान के प्रमुख थे और वह ब्लू स्टार के मास्टरमाइंड थे. ऐसा कहा जाता है कि वह एक दिन में उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए आश्वस्त थे. लेकिन उनका अनुमान गलत निकला और इससे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुए हमले के विनाशकारी परिणाम निकले. इस ऑपरेशन के बाद जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी सेना प्रमुख बने थे.
6. मेजर जनरल कुलदीप सिंह बराड़
मेजर जनरल कुलदीप सिंह बराड़ ने दून स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी. जब ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया उस वक्त वे मेरठ स्थित 9 डिवीजन की कमान संभाल रहे थे. ऑपरेशन ब्लू स्टार के लीड हीरो कुलदीप सिंह बराड़ ही थे. उन्हें दो दिन पहले इस ऑपरेशन को लीड करने के लिए कॉल किया गया था. सेवानिवृत्ति के बाद एक किताब 'ऑपरेशन ब्लूस्टार: द ट्रू स्टोरी' में मेजर जनरल कुलदीप सिंह बराड़ ने लिखा कि ऑपरेशन सबसे दर्दनाक था. हालांकि उन्होंने जोर देकर कहा कि यह आवश्यक था, इसलिए अंजाम दिया गया.
7. जनरल ए एस वैद्य
जनरल ए एस वैद्य ने ही ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना बनाई थी. इसके बाद वह सेना प्रमुख भी बने. उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर रहे करने वाले उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूरी निगरानी की. उन्होंने दावा किया था कि इस ऑपरेशन में एक भी मौत नहीं होगी, लेकिन उनका दावा गलत साबित हुआ. सेवानिवृत्ति के महीनों बाद अगस्त 1986 में पुणे के एक बाजार से घर जाते समय दो सिख उग्रवादियों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी.
Source :News Nation Bureau