भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। राष्ट्रपति होते हुए भी उनकी ज़िदगी काफी सादगी भरा था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आम तौर पर किसी भी तरह के विवादों से दूर रहे। इसलिए लोग उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारते थे।
ऐसा कहा जाता है कि नेहरू सी राजगोपालाचारी को देश का पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे, लेकिन सरदार पटेल और कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं की राय डॉ राजेंद्र प्रसाद के हक में थी। आखिर नेहरू को कांग्रेस की बात माननी पड़ी और राष्ट्रपति के तौर पर प्रसाद को ही अपना समर्थन देना पड़ा।
अक्तूबर सन् 1934 में बम्बई में इंडियन नेशनल कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता राजेन्द्र प्रसाद ने की थी। उन्होंने गांधी जी की सलाह से अपने अध्यक्षीय भाषण को अन्तिम रूप दिया। जब गांधीजी ने उनसे पूछा कि उन्होंने पंडित मदनमोहन मालवीय जैसे गणमान्य नेता को दूसरी बार बोलने से कैसे मना कर दिया तो उन्होंने उत्तर में कहा कि ऐसा निर्णय उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते लिया था न कि राजेन्द्र प्रसाद के रूप में।
सुभाषचंद्र बोस के अप्रैल सन् 1939 में कांग्रेस अध्यक्षता (त्रिपुरी) से त्यागपत्र देने के बाद राजेन्द्र प्रसाद फिर अध्यक्ष चुने गये। वह अपना बहुत सारा समय कांग्रेस के भीतरी झगड़ों को निबटाने में लगाते। कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें लिखा, 'अपने मन में मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम्हारा व्यक्तित्व घायल आत्माओं पर मरहम का काम करेगा और अविश्वास और गड़बड़ के वातावरण को शान्ति और एकता के वातावरण में बदल देगा।'
राजेन्द्र प्रसाद के बारे में भारत डिसकवरी साइट ने एक बहुत ही मार्मिक घटना के बारे में उल्लेख किया है। राजेन्द्र प्रसाद बारह वर्षों तक राष्ट्रपति भवन में थे इसलिए वो इसे अपना घर मानते थे। राष्ट्रपति भवन की राजसी भव्यता और शान सुरुचिपूर्ण सादगी में बदल गई थी।
राष्ट्रपति का एक पुराना नौकर था, तुलसी। एक दिन सुबह कमरे की झाड़पोंछ करते हुए उससे राजेन्द्र प्रसाद जी के डेस्क से एक हाथी दांत का पेन नीचे ज़मीन पर गिर गया। पेन टूट गया और स्याही कालीन पर फैल गई।
राजेन्द्र प्रसाद बहुत गुस्सा हुए। यह पेन किसी की भेंट थी और उन्हें बहुत ही पसन्द थी। तुलसी पहले भी कई बार लापरवाही कर चुका था। उन्होंने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुरन्त तुलसी को अपनी निजी सेवा से हटा दिया।
राष्ट्रपति चुनाव 2017: चुनाव आयोग ने की घोषणा, 17 जुलाई को चुने जाएंगे 14वें राष्ट्रपति
उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे। कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और विदेशी पदाधिकारी उनसे मिलने आये। मगर सारा दिन काम करते हुए उनके दिल में एक कांटा सा चुभता रहा था। उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है। जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया।
पुराना सेवक अपनी ग़लती पर डरता हुआ कमरे के भीतर आया। उसने देखा कि राष्ट्रपति सिर झुकाये और हाथ जोड़े उसके सामने खड़े हैं।
उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "तुलसी मुझे माफ कर दो।"
तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया। राष्ट्रपति ने फिर नम्र स्वर में दोहराया, "तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?" इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आंखों में आंसू आ गये।
राष्ट्रपति चुनाव 2017: कैसे चुना जाता है भारत का राष्ट्रपति, जाने पूरी प्रक्रिया?
Source : News Nation Bureau