राष्ट्रपति भारत राज्य का प्रमुख और भारतीय सशस्त्र बलों का कमांडर-इन-चीफ होता है। भारत के संविधान में राष्ट्रपति को सर्वोच्च पद माना जाता है और इस नाते इन्हें कई अधिकार भी दिए गए हैं।
बावजूद इसके कि भारत के राष्ट्रपति के पास अनेक शक्तियां होते हुए भी उनके इस्तेमाल करने के सीमित अधिकार है। लेकिन फिर भी राष्ट्रपति के सहमति के बिना कोई क़ानून पास नहीं हो सकता।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद सहित उच्च संवैधानिक अधिकारियों की नियुक्ती और हटाने संबंधी अधिकार होते हैं। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्य के गवर्नरों, अटॉर्नी जनरल, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी), मुख्य आयुक्त और चुनाव आयोग के सदस्यों को नियुक्त करने का भी अधिकार राष्ट्रपति के पास ही होता है।
जब लोकसभा में किसी भी दल या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो तो राष्ट्रपति की भूमिका अहम हो जाती है क्योंकि संविधान इस बारे में साफ-साफ कुछ नहीं कहता। लिहाजा यहां राष्ट्रपति अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए किसी ऐसे शख्स को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है जिसके बारे में उसे यकीन हो कि वो बहुमत साबित कर सकता है।
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ये तो हुआ कार्यकारी शक्तियों की बात, अब एक नज़र डालते हैं राष्ट्रपति के पास मौजूद विधायी शक्तियों के बारे में।
बजट सत्र के दौरान सबसे पहले राष्ट्रपति ही संसद को संबोधित करता है। वहीं संसद के दोनों सदनों के बीच अगर क़ानूनी प्रक्रिया में गतिरोध हुआ तो राष्ट्रपति ही स्पेशल सेशन बुलाकर इसे तोड़ने की पहल करते हैं।
किसी नए राज्य का निर्माण, राज्यों की सीमा में परिवर्तन और किसी राज्य के नाम में बदलाव जैसे कानून के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी अनिवार्य होती है। संविधान के तहत मूलभूत अधिकारों से निपटने वाले कानून में भी राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक होती है।
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लोकसभा में मनी बिल पेश करना हो या फिर संसद में पारित बिल को क़ानून बनाना हो राष्ट्रपति की सहमति के बिना नहीं हो सकती। वहीं अगर संसद के अवकाश के दौरान केंद्र सरकार को कोई अध्यादेश या क़ानून लागू करना हो तो राष्ट्रपति ही मंजूरी देता है।
विधेयक को कानून में बदलने के लिए आखिरी मुहर राष्ट्रपति की लगती है। संसद में पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति या तो उस पर अपनी अनुमति देता है या विधेयक पर पुन: विचार करने के लिए संसद को वापस भेजता है। अगर संसद उसे फिर से पारित करती है तो राष्ट्रपति को उसे मंजूर करना ही पड़ता है।
आइए एक नज़र डालते हैं राष्ट्रपति को दिए गए सैन्य शक्तियों के बारे में।
राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च सेनापति होते हैं। सभी तरह की अधिकारिक नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं, जिसमें तीनों सेना प्रमुखों की नियुक्तियां भी शामिल होती है। और अगर किसी देश के साथ युद्ध शुरु होता है तो उसकी अधिकारिक घोषणा राष्ट्रपति करते हैं।
दुनिया के अन्य देशों के साथ राजनयिक और सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने में भारत के राष्ट्रपति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विदेशों में देश के राजदूत और उच्च आयुक्त राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियों का विशेषाधिकार प्राप्त होता है। वह न्यायिक त्रुटियों में सुधार कर सकता है। किसी आरोपी को सज़ा से मुक्त करने और क्षमा देने की अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है।
ज़रूरत पड़ने पर राष्ट्रपति कानूनी और संवैधानिक मामलों में राष्ट्र और लोगों के हित के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की राय भी ले सकता है।
वहीं अगर देश में कोई आपदा आ जाती है या कोई ज़रूरी काम निकल आता है तो आकस्मिक फंड देने को लेकर अधिकार राष्ट्रपति के नियंत्रण में ही होता है।
भारतीय संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति के पास तीन प्रकार की आपातकालीन शक्तियां शामिल हैं।
पहला, राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, बाहरी आक्रमण या भीतरी सशस्त्र विद्रोह की स्थिती में राष्ट्रपति के पास ही आपातकाल घोषित करने की शक्ति होती है।
दूसरा, संविधान या कानून व्यवस्था टूटने के कारण राष्ट्रपति राजनीतिक आपातकाल पर आधारित राज्य आपातकाल यानी राष्ट्रपति शासन घोषित कर सकता है। इस स्थित में राज्य में राज्यपाल का शासन स्थापित किया जाता है।
तीसरा, जब देश की आर्थिक स्थिरता या कोई भी राज्य इसकी गंभीरता से प्रभावित हो तब राष्ट्रपति के पास हस्तक्षेप करने की शक्ति होती है। इसके अलावा राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर वीटो का भी अधिकार है।
इसमें एक अहम वीटो होता है पॉकेट वीटो यानि राष्ट्रपति के पास ये अधिकार है कि वो संसद में पारित किसी विधेयक को अनिश्चित काल के लिए अपने पास रखे। 1986 में ज्ञानी जैल सिंह संसद द्वारा पारित भारतीय डाक अधिनियम में संशोधन वाले विधेयक को लेकर इस शक्ति का इस्तेमाल कर चुके हैं।
राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 लागू करने जैसे मामलों में मंत्री परिषद की सिफारिश कर सकता है। यदि बिल को वापस भेज दिया गया है, तो राष्ट्रपति को इसे स्वीकार करना होगा।
राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1962 में हुए चीन-भारत युद्ध के दौरान पहली बार राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी।
Source : Deepak Singh Svaroci