Advertisment

राष्ट्रपति चुनाव 2017: इन फैसलों की वजह से प्रणब मुखर्जी किए जाएंगे याद

प्रणब मुखर्जी ने नरेंद्र मोदी को 2014 में जब प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई तो कई राजनीतिक जानकारों का ये विचार था कि दोनों के बीच तालमेल नहीं होगा।

author-image
Deepak Kumar
एडिट
New Update
राष्ट्रपति चुनाव 2017: इन फैसलों की वजह से प्रणब मुखर्जी किए जाएंगे याद

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (पीटीआई)

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा हो जाएगा। प्रणब मुखर्जी 22 जुलाई 2012 को राष्ट्रपति बने थे। प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के लिए हमेशा ही संकट मोचक की भूमिका में रहे। फिर चाहे वो सरकार में हो या फिर विपक्ष की भूमिका को।

Advertisment

प्रणब मुखर्जी ने नरेंद्र मोदी को 2014 में जब प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई तो कई राजनीतिक जानकारों का ये विचार था कि दोनों के बीच तालमेल नहीं होगा।

हालांकि हुआ इसका उल्टा। अपने कार्यकाल के दौरान प्रणब मुखर्जी ने सरकार के साथ बेहतरीन तालमेल दिखाई। इतना ही नहीं कांग्रेस भले ही मोदी सरकार का विरोध करती रही हो, लेकिन प्रणब मुखर्जी गाहे-बगाहे मंच से भी मोदी की तारीफ़ करते रहे हैं।

इसी साल मार्च में प्रणब मुखर्जी ने एक मीडिया हाउस के कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा था, 'आप चुनाव में बहुमत हासिल कर सकते हैं लेकिन शासन करने के लिए आपको आम सहमति की जरूरत होती है। मोदी इस मामले में काफी अच्छे हैं।'

Advertisment

प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान कभी भी पीएम और उनके बीच कोई मतभेद नहीं दिखा। प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल बेहतर सामंजस्य के लिए ही नहीं बल्कि तेज़ी से लिए गए फ़ैसले के लिए भी जाना जाएगा।

कोविंद या मीरा, राष्ट्रपति बनेंगे तो मिलेंगे महामहिम के यह अधिकार

प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान कसाब-अफजल जैसे आतंकियों पर रहम नहीं दिखाई और उनकी दया याचिका ख़ारिज़ कर दी। बतौर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तीन बड़े आतंकी अजमल, अफजल और याकूब को फांसी दिलाने में अहम रोल निभाया। कसाब को 2012, अफजल गुरु को 2013 और याकूब मेनन को 2015 में फांसी हुई थी।

Advertisment

बता दें कि अजमल कसाब मुंबई 26/11 हमले में दोषी था जबकि अफजल गुरु 13 दिसम्बर 2001 में हुए संसद भवन पर हमले का दोषी था। वहीं याकूब मेनन को 1993 मुंबई बम धमाके का दोषी पाया गया था।

अपने कार्यकाल के दौरान प्रणब मुखर्जी के पास करीब 37 क्षमायाचिका आए, जिसमें ज्यादातर मामलों में उन्होंने कोर्ट की सजा को बरकरार रखा।

राष्ट्रपति ने 28 अपराधियों को रेयरेस्ट ऑफ रेयर अपराध के लिए दी गई फांसी की सजा को भी बरकरार रखा। इसी साल मई महीने में प्रणब मुखर्जी ने इंदौर और पुणे रेप के दो मामलों में दोषियों को क्षमा देने से मना कर दिया।

Advertisment

राष्ट्रपति चुनावः UPA की मीरा को हरा, NDA के रामनाथ कोविंद होंगे देश के अगले राष्ट्रपति, जानें उनकी दस खास बातें

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान किसी को भी जीवनदान नहीं दिया। प्रणब मुखर्जी ने 1992 में बिहार में हुए नरसंहार मामले में चार दोषियों की फांसी की सज़ा को उम्रक़ैद में बदल दिया था। इन सभी लोगों पर अगड़ी जाति के 34 लोगों की हत्या का दोष साबित हुआ था।

वहीं 2017 में नए साल के मौक़े पर राष्ट्रपति ने कृष्णा मोची, नन्हे लाल मोची, वीर कुंवर पासवान और धर्मेन्द्र सिंह उर्फ धारू सिंह की फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया।

Advertisment

राष्ट्रपति भवन में है 340 कमरे, जानें और क्या है खास

HIGHLIGHTS

  • प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल बेहतर सामंजस्य के लिए ही नहीं बल्कि तेज़ी से लिए गए फ़ैसले के लिए भी जाना जाएगा
  • प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान कसाब-अफजल जैसे आतंकियों पर रहम नहीं दिखाई

Source : Deepak Singh Svaroci

Narendra Modi Pranab Mukherjee President Election 2017
Advertisment
Advertisment