देश के प्रमुख दलित नेताओं में से एक और बिहार की सियासत के बेताज बादशाह कहे जाने वाले रामविलास पासवान का गुरुवार को निधन हो गया. पासवान अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर राजनीति में ऊपर आए. आधी सदी से अधिक समय के राजनीतिक सफर के बाद दुनिया को अलविदा कह गए पासवान की पहचान सामाजिक न्याय की लड़ाई के एक महायोद्धा के रूप में रही है. रामविलास पासवान को गठबंधन की राजनीति में महारत हासिल थी और यही कारण है कि बीते ढाई दशक से वह हमेशा सत्ता के केंद्र में रहे और सरकार चाहे किसी की भी हो, वह हर सरकार में मंत्री रहे.
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पुलिस सेवा छोड़ चुना था राजनीति सफर
बिहार के रामविलास पासवान एकलौते ऐसे नेता रहे, जो 9 बार सांसद और 7 बार केंद्र में मंत्री बने. पासवान की चुनावी राजनीति के सफर का आरंभ 1969 में हुआ, जब वह बिहार विधानसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुने गए थे. खगड़िया में 1946 में जन्मे पासवान का चयन पुलिस सेवा में हो गया था. लेकिन उन्होंने अपने मन की सुनी और राजनीति में चले आए. आपातकाल विरोधी आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण जैसे दिग्गजों से लोकसेवा की सीख लेने वाले पासवान फायरब्रांड समाजवादी के रूप मे उभरे. समाजवादी आंदोलन के स्तंभों में से एक पासवान बाद के दिनों में बिहार के प्रमुख दलित नेता के रूप में उभरे और जल्दी ही राष्ट्रीय राजनीति में अपनी विशेष जगह बना ली.
1977 में पासवान पहली बार लोकसभा पहुंचे
देश में आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में पासवान पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए. उस वक्त पासवान हाजीपुर सीट से रिकॉर्ड मतों के अंतर से जीते थे, जिसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था. इसके बाद पासवान ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा. वह 1980, 1989, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 के आम चुनाव में जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे. समाज के वंचित तबके से जुड़े लोगों के मुद्दे उठाने में सबसे आगे रहने वाले पासवान जीमीनी स्तर के मंझे हुए नेता थे, जिनके संबंध सभी राजनीतिक दलों और गठबंधनों के साथ हमेशा मधुर बने रहे.
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देश के 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया
अपने राज्य के प्रति उनके समर्थन के कारण पांच दशक लंबे राजनीतिक करियर में वह हमेशा केंद्र की सभी सरकारों में शामिल रहे. वह 1989 से अपने अंतिम समय तक जनता दल से लेकर, कांग्रेस और भाजपा नीत राजग जैसी भिन्न और विपरीत विचाराधाओं वाली सरकारों का हिस्सा रहे हैं. पासवान का गठबंधन सहयोग चाहे कोई भी रहा हो, उन्होंने हमेशा गर्व के साथ स्वयं को समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष बताया, वह वीपी सिंह, एचडी देवे गौड़ा, इन्द्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और वर्तमान में नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे.
मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं
रामविलास पासवान जब-जब केंद्र में मंत्री बने, उन्होंने जरूर कोई ना कोई ऐसा काम किया जो देशव्यापी चर्चा में रहा. वह सबसे पहले 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुवाई वाली सरकार में श्रम एवं कल्याण मंत्री बने थे. उस दौरान अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण से जुड़े मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने में रामविलास पासवान की भूमिका महत्वपूर्ण रही. मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू होने पर ओबीसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिला, जिससे देश की राजनीति बदल गई.
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कोरोना काल में गरीबों तक पहुंचाया फ्री राशन
राजग में शामिल होकर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री बने और मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भी वह इस पद पर बने रहे. तौर उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री वह कोरोना काल में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई मुफ्त अनाज वितरण योजना का प्रमुखता से संचालन करने के साथ-साथ मंत्रालय की अन्य महत्वकांक्षी योजनाओं को अमल में लाने को लेकर हमेशा सक्रिय रहे.
HIGHLIGHTS
- 9 बार लोकसभा और 2 बार राज्यसभा सदस्य चुने गए
- पहली बार में ही आम चुनाव में रिकॉर्ड मतों से जीते थे
- सरकार किसी की रही, मगर वो 7 बार केंद्र में मंत्री बने
- पुलिस सेवा छोड़ चुना था राजनीति सफर