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कृषि कानून निरस्त होने से कृषि सुधार प्रक्रिया पर उठने लगे सवाल

ये बहुत आवश्यक सुधार थे. इन कानूनों को निरस्त करना राजनीतिक रूप से एक बुरा कदम है. इन कानूनों को निरस्त करने की तुलना न केवल एक मिसाल बनने से की जा सकती है, बल्कि इसके व्यापक प्रभाव पड़ेंगे.

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Nihar Saxena
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Farm Laws

शिक्षाविद और बुद्धिजीवी कृषि कानून वापसी पर उठा रहे सवाल.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा शुक्रवार को अचानक तीन कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की घोषणा ने शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा का एक मुद्दा उछाल दिया है. वे कृषि में सुधारों के भाग्य पर सवाल उठा रहे हैं और भाजपा इस बात से इनकार कर रही है कि यह कोई मिसाल बनने जा रहा है. प्रधानमंत्री की घोषणा के कुछ घंटों बाद भारत भर में हुए आईएएनएस-सीवोटर स्नैप ओपिनियन पोल में कहा गया है कि इससे मोदी की छवि और राजनीतिक पूंजी को कोई नुकसान नहीं हुआ है. 52 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि मोदी ने सही निर्णय लिया है.

श्रम कानूनों में बदलाव का होगा विरोध
एक अन्य राय के जवाब में कि क्या कृषि कानूनों को निरस्त करने से ट्रेड यूनियनों और उनके नेताओं को श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, लगभग 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सहमति व्यक्त की. हालांकि 25 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाता सहमत नहीं हो सके. कई लोग श्रम सुधारों के बारे में अनिश्चित हैं. मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (एमआईडीएस) के किसान और प्रोफेसर प्रो. एस. जनकराजन ने इसे किसानों की बड़ी जीत करार दिया और कहा, सरकार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि जल्द ही उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव हैं. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां सत्ताधारी पार्टी कमजोर है, इसलिए यह घोषणा की गई.

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कानून निरस्त करना राजनीतिक रूप से बुरा कदम
यह याद दिलाते हुए कि किसानों का आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है, वे अभी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए आंदोलन कर रहे हैं, सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. किसान समुदाय बहुत दर्द में है. लगभग 80-85 प्रतिशत किसान छोटे हैं. भूमि धारक किसान. यदि उन्हें एमएसपी का आश्वासन नहीं दिया जाता है, तो वे संकट में बिक्री का सहारा लेंगे. सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के डॉ. जीवी रामंजनेयुलु ने कहा, ये बहुत आवश्यक सुधार थे. इन कानूनों को निरस्त करना राजनीतिक रूप से एक बुरा कदम है. इन कानूनों को निरस्त करने की तुलना न केवल एक मिसाल बनने से की जा सकती है, बल्कि इसके व्यापक प्रभाव पड़ेंगे. इसका असर अन्य सुधारों पर पड़ेगा. ऐसे में संभवत: सुधारों के लिए लाए जाने वाले अन्य कानून भी ठप हो जाएंगे. किसानों के लिए बिजली, बीज बिल संबंधित आदि.

पीएम मोदी की मंशा को समझें
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, वे इसे एक मिसाल कायम करने वाला फैसला नहीं कह सकते. हम जरूरत पड़ने पर ही ऐसा करते हैं. क्या हमने भूमि अधिग्रहण बिल को लैप्स नहीं होने दिया? हालांकि भाजपा नेता नलिन कोहली ने ऐसी किसी भी बात से इनकार किया है. उन्होंने कहा, यह (तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा) गुरु पर्व के शुभ अवसर पर की गई एक राजनेता जैसी घोषणा है. यह एक मिसाल क्यों होगी? इसे उस दृष्टिकोण से देखने की कोई गुंजाइश नहीं है. यह होगा पीएम के राजनेता जैसे दृष्टिकोण को गलत तरीके से पढ़ना.

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कृषि के अन्य सुधारों पर पड़ेगा असर
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में सरकार अराजकता में शासन करने के लिए तत्पर हो सकती है. उदाहरण के लिए, रामंजनेयुलु ने चेतावनी दी कि जब तक केंद्र फसल पैटर्न में कठोर बदलाव का सहारा नहीं लेता है, तब तक बहुत से राज्यों को गंभीर समस्याएं होंगी. उन्होंने पंजाब और हरियाणा के हालात की ओर इशारा करते हुए कहा, अगर सुधार नहीं लाए गए तो कुछ इक्विटी मुद्दे अनसुलझे रहेंगे. कुछ राज्य ऐसे हैं जो बड़ी सब्सिडी प्राप्त करते हैं और बड़े पैमाने पर खरीद भी करते हैं. विनाशकारी कृषि पद्धतियां हैं - जैसे भूजल की अत्यधिक निकासी, जो कभी ठीक नहीं होगी. जनकराजन ने सुधार लाने के लिए कड़े कदमों में भूजल पुनर्भरण को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा, भारत की लगभग 70 प्रतिशत सिंचाई भूजल पर निर्भर है. यदि जलभृतों का पर्याप्त पुनर्भरण नहीं हुआ, तो कृषि अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी. यदि खेती अव्यवहार्य हो जाती है, तो किसान इसे छोड़ देंगे (और फिर) आप 130 करोड़ भारतीयों को कैसे खिलाएंगे?

HIGHLIGHTS

  • कृषि कानूनों की वापसी से एक खेमा है असंतुष्ट
  • आगे के सुधारों के भविष्य पर उठा रहे सवाल
  • छोटे किसानों के लिए अच्छे थे कृषि कानून
farm-laws farmers-agitation किसान आंदोलन कृषि कानून Agriculture Reforms Speed Bracker Reforms कृषि सुधार स्पीड ब्रेकर सुधार
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