Republic Day 2019: आर्टिकल 370 को लेकर क्या पंडित नेहरू और पटेल थे आमने-सामने?

धारा 370 पास कराने की जिम्मेदारी नेहरू जी ने अपने विश्वासपात्र गोपालस्वामी आयंगर दी तो वो इसमें नाकामयाब हो गए. जिसके बाद जवाहर लाल नेहरू ने पटेल को इसे पास कराने के लिए दबाव बनाया.

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nitu pandey
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Republic Day 2019: आर्टिकल 370 को लेकर क्या पंडित नेहरू और पटेल थे आमने-सामने?

जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल (सोशल मीडिया)

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26 जनवरी (26 January) को भारत अपना 70वां गणतंत्रता दिवस (Republic Day) मना रहा है. 26 जनवरी 1950 को ही ब्रिटिश सरकार के भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया. भारत का संविधान बनाने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी का गठन हुआ था. डॉ भीम राव अंबेडकर की अध्यक्षता में बनी कमेटी में एन गोपाल स्वामी अयंगर, ए कृष्णास्वामी अय्यर, सैयद मोहम्मद साहदुल्ला, केएम मुंशी, बीएल मित्तर, डीपी खैतान थे. कई बैठकों और संविधान सभाओं के बाद भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ. 

कहा जाता है कि संविधान में दर्ज कुछ आर्टिकल को लेकर तत्कालीन देश के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल सहमत नहीं थी. आर्टिकल 370 को लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू और लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की दोस्ती में दरार की खबर भी आई. लेकिन यह कितना सच है आगे पढ़कर आप समझ सकते हैं. ये सच है कि आर्टिकल 370 के जरिए जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ सरदार पटेल थे. इतना ही नहीं संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर भी इस आर्टिकल को संविधान में नहीं चाहते थे. 

इसके बावजूद जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल पर ही इसे पास करवाने का दबाव बनाया गया. धारा 370 पास कराने की जिम्मेदारी नेहरू जी ने अपने विश्वासपात्र गोपालस्वामी आयंगर दी तो वो इसमें नाकामयाब हो गए. जिसके बाद जवाहर लाल नेहरू ने पटेल को इसे पास कराने के लिए दबाव बनाया. नेहरू और अयंगर के कहने पर सरदार पटेल ने इसे संविधान में जुड़वाया. पटेल ने ऐसा उस वक्त किया जब जवाहर लाल नेहरू विदेश दौरे पर गए हुए थे.

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धारा 370 को लेकर सरदार नहीं चाहते थे कि नेहरू की अनुपस्थिति में कुछ ऐसा हो कि नेहरू को नीचा देखना पड़े. इसलिए उन्होंने इस धारा के विरोध के बावजूद अपने आपको बदला और लोगों को इस धारा के लिए समझाया. यह कार्य उन्होंने इतनी सफलता से किया कि संविधान-सभा में इस अनुच्छेद की बहुत चर्चा नहीं हुई और न इसका विरोध हुआ.

धारा 370 को संविधान में जुड़वाने के बाद सरदार ने नेहरू को 3 नवंबर 1949 को पत्र लिखकर इसके बारे में सूचित किया- ‘काफी लंबी चर्चा के बाद में पार्टी (कांग्रेस) को सारे परिवर्तन स्वीकार करने के लिए समझा सका.’

धारा 370 को लेकर यह भी कहा जाता है कि तत्कालीन कश्मीर के शासक शेख अब्दुल्ला इस अनुच्छेद को लेकर डॉ अंबेडकर के पास पहुंचे तो उन्होंने इसे मंजूरी देने से साफ इंकार कर दिया था. उन्‍होंने कहा था कि यह नियम भारत की स्थिरता के लिए खतरनाक होगा. इसलिए मैं कभी भी इसकी मंजूरी नहीं दूंगा.

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नेहरू के साथ तो नहीं लेकिन संविधान में आरक्षण को लेकर पटेल और अंबेडकर के बीच मतभेद थे. जाति और आरक्षण को लेकर सरदार पटेल और डॉक्टर अंबेडकर की सोच बिलकुल अलग थी. संविधान सभाओं में इसे लेकर दोनों के बीच अच्छी खासी बहस होती थी. पटेल को आरक्षण राष्ट्र-विरोधी लगता था. उनका मानना था कि जो लोग अब अछूत नहीं है उन्हें भूल जाना चाहिए कि कभी वो अछूत. सबको एक अधिकार मिलेगा. एक साथ खड़े होने का.

लेकिन डॉ भीम राव अंबेडकर शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मदद से अंबेडकर दलित अधिकारों को सुरक्षित करना चाहते थे.

Source : Nitu Kumari

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