उत्तर प्रदेश के गोरखपुर (Gorakhpur) यानी सीएम योगी आदित्यनाथ (CM City) का शहर. यहीं से करीब 30 किलोमीटर दूर है एक कस्बा चौरीचौरा (Chauri-chaura). वही चौरीचौरा जो इतिहास के पन्नों में अमर हो गया है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चौरीचौरा कांड (Chauri-Chaura Kand) ने अंग्रेजों की चूलें हिला दी. हिंसा का ऐसा तांडव हुआ कि गांधी जी (Mahatma Gandhi) को अपना असहयोग आंदोलन (Asahyog Andolan) वापस लेना पड़ा. आज चौरीचौरा का जिक्र उस कांड के लिए नहीं बल्कि यहां से कुछ किलोमीटर दूर बसे मीठाबेल गांव के कैंप्टन (Captain) आद्या प्रसाद दूबे (Adya Prasad Dubey को लेकर हो रहा है. चलिए बताते हैं है कि भारतीय गणतंत्र दिवस के दिन कैप्टन की चर्चा क्यों...
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जब सुबह की कड़काड़ाती ठंड में हम और आप रजाई में दुबके रहते हैं तो गोरखपुर जिले के मीठाबेल गांव की सुबह होती है जय हिंद से. जी हां यहां केवल 26 जनवरी या 15 अगस्त को ही नहीं बल्कि हर सुबह 71 साल के रिटायर्ड कैप्टन की दमदार आवाज गूंजती है. यहां रोजाना लगता है कैप्टन का कैंप और इसमें पसीना बहाते नजर आते हैं सैकड़ों युवा. लंबी कूद हो या ऊंची, ड्रिल हो या फिर 100 मीटर दौड़, लड़कों के साथ लड़कियां भी कदमताल करती नजर आती हैं.
बैच बदल जाता है, लेकिन सिलसिला नहीं. पिछले 23 साल से चल रहे कैप्टन के इस कैंप से नि:शुल्क ट्रेनिंग ले चुके करीब 3500 युवाओं का भविष्य संवर गया. कोई सेना तो कोई बीएसएफ को अपनी सेवा दे रहा है. दो दर्जन लड़कियां भी सीआरपीएफ और पुलिस में सेवारत हैं.
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71 साल के आद्या प्रसाद दुबे 1964 में टेक्नीशियन के रूप में भारतीय सेना में भर्ती हुए. 1992 में बतौर कैप्टन रिटायर हुए. ऐतिहासिक चौरीचौरा से करीब 30 किलोमीटर दूर मीठाबेल के रहने वाले कैप्टन आद्या प्रसाद की तैनाती जबलपुर, गोवा, बारामुला, लेह में रही. रिटायरमेंट के बाद गांव में खेती-बाड़ी संभाली. एक दिन सुबह सैर करने निकले तो गांव के पास बाग में लड़कों को जुआ खेलते देख बहुत दुखी हुए. उसी दिन उन्होंने एक नेट व वॉलीबॉल खरीदी और अगले दिन खाली पड़े मैदान में जुआ खेलने वाले लड़कों को लेकर निकल पड़े. पहले छह फिर आठ और बाद में यह संख्या 20 हो गई.
युवाओं का रुझान बढ़ता देख गांव के इन लड़कों को उन्होंने फिजिकल ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया. पहले साल ही मेहनत रंग लाई. कैंप के दो लड़कों ने आसानी से न केवल फिजिकल टेस्ट पास किया बल्कि सेना में भर्ती भी हुए.
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कैप्टन ने बताया कि गांव के बच्चे गलत दिशा में जा रहे थे. बच्चों के पास अच्छी कदकाठी व डिग्री थी, लेकिन भविष्य के लिए कोई योजना नहीं. लिखित परीक्षा की तैयारी कराने के लिए गोरखपुर में सैकड़ों कोचिंग सेंटर थे, लेकिन फिजिकल की ट्रेनिंग कोई नहीं देता था. सेना, पुलिस या अर्धसैनिक बलों की भर्ती में अधिकतर बच्चे फिजिकल नहीं निकाल पाते थे, लिहाजा उनके सपने बिखर जाते थे.
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कैप्टन बताते हैं कि कैंप में आने वाले अधिकतर बच्चे गरीब परिवार से हैं. गुड़, चना और सूखी रोटी की बदौलत यहां दो घंटे पसीना बहाते हैं और अनुशासन की घुट्टी पीकर सफल होते हैं. कैप्टन का दावा है कि उनके कैंप से करीब साढ़े तीन हजार बच्चों को रोजगार मिला. कैंप से निकलीं सोनी वर्मा सीआरपीएफ व अर्चना जायसवाल सीएसआइएफ में कांस्टेबल हैं, वहीं मीनाक्षी दुबे उप्र पुलिस में हैं. ये लड़कियां बतातीं हैं कि अगर कैप्टन नहीं होते तो इस मुकाम पर वो कभी नहीं पहुंचतीं.
बिहार-झारखंड से प्रशिक्षण लेने आ रहे युवा
पूर्वांचल के युवाओं को सेना में भर्ती के मकसद से खोले सैनिक करियर सेंटर की सफलता के किस्से सुनकर यूपी के कई जिलों के साथ बिहार और झारखंड से भी युवा प्रशिक्षण के लिए आ रहे हैं. गोरखपुर जिले के छोटे से गांव के आसपास किराए का मकान लेकर रह रहे हैं. वह प्रशिक्षण के दौरान पसीना बहाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते. आज की तारीख में भी कैप्टन के इस गुरुकुल में दो सौ से ज्यादा युवा प्रशिक्षण ले रहे हैं.
सरहद से फोन करते हैं यहां से निकले जवान
तीन हजार से ज्यादा युवाओं के नाम, पते के साथ तैनाती स्थल और फोन नंबर रजिस्टर में दर्ज हैं. कैप्टन बताते हैं कि यहां से निकलकर देश की सैन्यशक्ति का हिस्सा बने युवा जब भी मौका पाते हैं तो फोन करके आर्शीवाद लेने से नहीं चूकते. वह कहते हैं कि देश से बढ़कर हर हिंदुस्तानी के लिए कुछ नहीं है. देश है, तो हम हैं. देश के लिए सेना में रहने के बाद भी दूसरे युवाओं को इसके लिए तैयार करके जिया जा सकता
Source : News Nation Bureau