Operation False Flag: यूक्रेन पर जैविक रासायनिक हमला कर सकता है रूस

अमेरिका (America) समेत नाटो देश पहले ही कह चुके हैं कि ऑपरेशन फॉल्स फ्लैग की आड़ में रूस यूक्रेन पर केमिकल-बायोलॉजिकल अटैक कर सकता है.

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Nihar Saxena
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Chemical Weapons

अमेरिका समेत नाटो देश जता रहे हैं आशंका.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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रूस-यूक्रेन (Ukraine) युद्ध शुक्रवार को 23वें दिन में प्रवेश कर चुका है. भारी गोलाबारी और हवाई हमलों के बावजूद रूसी (Russia) सेना अब तक कीव-खारकीव पर कब्जा नहीं कर सकी है. उलटे यूक्रेन हर रोज दावा कर रहा है कि उसकी सेना रूसी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दे रही है. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की झुंझलाहट बढ़ती जा रही है. ऐसे में सामरिक विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि रूस खीझ भरी स्थिति में रासायनिक और जैविक हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. गौरतलब है कि विश्व युद्ध और उसके बाद कई बार दूसरे देशों के बीच हुए युद्ध में पहले भी रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल हो चुका है. इस हमले में लाखों लोगों की जान जा चुकी है. इस बार भी अमेरिका (America) समेत नाटो देश पहले ही कह चुके हैं कि ऑपरेशन फॉल्स फ्लैग की आड़ में रूस यूक्रेन पर केमिकल-बायोलॉजिकल अटैक कर सकता है.

पुतिन पहले ही दे चुके हैं चेतावनी
अगर पुतिन के बयानों को देखा जाए तो रूस ने यूक्रेन पर हमले के साथ ही अमेरिका पर यूक्रेन में रासायनिक और जैविक हथियार बनाने का आरोप लगाया था. इसके साथ ही पुतिन ने अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को चेतावनी भी दी थी कि उसके पास परमाणु हथियार भी हैं. यूक्रेन मसले पर किसी किस्म के दुस्साहस की परिणति तीसरे विश्व युद्ध समेत कहीं विध्वंसक रूप ले लेगा. गौरतलब है कि रासायनिक और जैविक शास्त्रागर को रूस ने 2017 में नष्ट करने का दावा किया था. हालांकि 2018 और 2020 में मास्को के दुश्मनों की हत्या के लिए नर्वस सिस्टम पर हमला करने वाले नोविचोक के इस्तेमाल से पता चलता है कि अभी भी उसके पास रासायनिक हथियार बड़ी मात्रा में मौजूद हैं. ऐसे में यूक्रेन पर वह रासायनिक या जैविक हमला कर सकता है और इसके लिए वह ऑपरेशन फॉल्स फ्लैग का सहारा भी ले सकता है.

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इसे कहते हैं ऑपरेशन फॉल्स फ्लैग
सबसे पहले तो समझ लें कि फॉल्स फ्लैग अभियान का अर्थ क्या होता है, जिसका इस्तेमाल अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश कर रहे हैं. फॉल्स फ्लैग अभियान के तहत कोई देश खुद ही अपने देश के किसी हिस्से पर हमला करता है. इसके बाद किसी दूसरे देश पर हमले का आरोप लगाता है. फिर इसी आधार पर जवाबी कार्रवाई करता है. रूस और यूक्रेन के बीच तनातनी का माहौल शुरू होने के बाद से पश्चिम के कई देशों ने इसको लेकर लगातार चेतावनी दी थी. अब सामरिक विशेषज्ञ यह आशंका भी जता रहे हैं कि इसी ऑपरेशन के तहत रूस यूक्रेन में अपने समर्थन वाले किसी हिस्से में छोटे स्तर पर रासायनिक या जैविक हमला कर यूक्रेन पर केमिकल या बायोलॉजिकल वेपंस चला सकता है. 

इस तरह अलग होते हैं रासायनिक-जैविक हथियार
ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस के मुताबिक रासायनिक हथियारों में जहरीले रसायनों का इस्तेमाल जानबूझकर लोगों को मारने या बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के लिए होता है. इसके अलावा ऐसे सैन्य उपकरण जो खतरनाक जहरीले रसायनों को हथियार बना सकते हैं, उन्हें भी रासायनिक हथियार माना जा सकता है. ये इतने घातक होते हैं कि पलक झपकते ही हजारों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं. वहीं बड़े पैमाने पर लोगों को अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित कर तिल-तिल कर मरने पर मजबूर कर सकते हैं. रासायनिक और जैविक हथियार अलग- अलग होते हैं. बायोलॉजिकल हथियार में बैक्टीरिया और वायरस के जरिए लोगों को सीधे मारा या बुरी तरह बीमार कर मरने पर मजबूर किया जाता है. रासायनिक और जैविक हथियार सामूहिक विनाश के हथियारों की श्रेणी में आते हैं.

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रासायनिक हथियार और रूस का दावा
अक्टूबर 2002 में 40 चेचेन्या आतंकियों ने मॉस्को के एक थिएटर में 850 लोगों को बंधक बना लिया था. वे दूसरे चेचेन्या युद्ध के खत्म होने के बाद चेचेन्या से रूसी सेना को हटाने की मांग कर रहे थे. तब रूस ने उनकी मांग ठुकराते हुए थिएटर में जहरीली गैस छोड़ी थी. इस हमले में 40 आतंकियों के साथ ही 130 बंधक भी मारे गए थे. रूस ने ये कभी नहीं बताया कि उसने थिएटर में किस गैस का इस्तेमाल किया था. इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस की काफी लानत मलानत की गई थी.

रूस ने यहां प्रयोग किए थे रासायनिक-जैविक हथियार
केमिकल हथियारों को लेकर फिर से चर्चा में आए रूस का दावा है कि उसने साल 2017 में ही अपने केमिकल हथियारों को नष्ट कर दिया था. उसके बाद से मॉस्को में हुए दो केमिकल हमलों ने इन दावों को सवालों के घेरे में ला दिया है. रूस के दावे के अगले साल यानी 2018 में रूसी खुफिया एजेंसी के पूर्व जासूस सर्गेई स्क्रिपल को उनकी बेटी के साथ नर्व एजेंट नोविचोक जहर दिया गया था. इसमें कथित तौर पर रूस का हाथ था. रूस ने भले इसे कभी नहीं माना. वहीं अगस्त 2020 में पुतिन के प्रमुख विरोधी नेता एलेक्सी नवलनी को नोविचोक जहर दिया गया था. इसमें बहुत मुश्किल से उनकी जान बच सकी थी.

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रासायनिक हथियार और अंतरराष्ट्रीय कानून
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक जिनेवा प्रोटोकॉल 1925 और जिनेवा प्रोटोकॉल 1949 के जरिए 38 देशों के बीच हुई संधि से केमिकल हथियारों पर प्रतिबंध के साथ ही युद्ध में इन हथियारों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगाने के लिए समझौता हुआ था. इन संधियों पर हस्ताक्षर के बावजूद सोवियत रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे सामरिक दृष्टि से ताकतवर देशों ने गुप्त तरीके से केमिकल वेपन बनाना जारी रखा.
 
केमिकल वेपंस कन्वेंशन- 1993
इसके बाद केमिकल हथियारों पर बैन लगाने के लिए पहला वैश्विक समझौता 1993 में हुए केमिकल वेपंस कन्वेंशन यानी CWC के तहत हुआ. CWC का मसौदा 1992 में तैयार हुआ, 1993 में इसे हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया और अप्रैल 1997 से प्रभावी रूप से लागू हुआ. इस समझौते से युद्ध में केमिकल हथियारों के इस्तेमाल, उनके डेवलपमेंट, रखने या उनके ट्रांसफर पर रोक लगा दी गई थी. 2021 तक CWC के 193 सदस्य थे. इनमें से 165 ने इस समझौते पर दस्तखत किए थे. भारत, रूस और अमेरिका ने केमिकल हथियारों पर बैन लगाने वाले CWC पर 1993 में साइन किए थे. वहीं संयुक्त राष्ट्र के चार सदस्य देशों मिस्र, इजराइल, नॉर्थ कोरिया और साउथ सूडान ने CWC पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

HIGHLIGHTS

  • कीव पर कब्जा न होते देख रूस कर सकता है विनाशक हथियारों का इस्तेमाल
  • 2002, 2018 औऱ 2020 में रूस ने इस्तेमाल किए थे केमिकल वेपंस
  • ऑपरेशन फॉल्स फ्लैग का इस्तेमाल करने का पहले भी लगता रहा है आरोप
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