Advertisment

'सरदार' ने रियासतों का विलय कर साकार किया अखंड भारत का ख्वाब

सरदार पटेल ने भारत की विभिन्न रियासतों का विलय कर देश को एकसूत्र में पिरोना का काम किया. रियासतों का विलय एक ऐसा पेचीदा मसला था, जिसे अंग्रेज भी हाथ लगाने से परहेज कर रहे थे.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
Nehru Gandhi Patel

गांधी, नेहरू संग बनाई प्रभावी रियासतों के विलय की योजना सरदार पटेल ने.( Photo Credit : फाइल फोटो)

Advertisment

सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की आजाद भारत को लेकर दृष्टि बिल्कुल साफ थी. खासकर आजाद भारत के संविधान (Indian Constitution) को लेकर उनके पास एक बेजोड़ फॉर्मूला था. वह सही मायने में राज्यों का एक संघ चाहते थे, जिनकी अपनी-अपनी स्वायत्त राज्य सरकार हो. साथ ही केंद्र में भी एक मजबूत सरकार हो. इतिहास के मुताबिक उनका यह विशिष्ट नजरिये वाला प्रयोग एकबारगी संविधान सभा में पास भी हो गया था, लेकिन बेहद अप्रत्याशित घटनाक्रम में बाद में संविधान सभा ने सरदार पटेल के विचार को ही सिरे से खारिज कर दिया. बाद में पता चला कि इसके पीछे भी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) का ही आखिरी निर्णय था. अगर सरदार पटेल का विचार खारिज नहीं हुआ होता, तो आज भारत भी अमेरिका की तर्ज पर संघीय गणराज्य होता. भारत की राज्य सरकारें केंद्र के नियंत्रण से काफी हद तक आजाद होती और उन्हें केंद्र पर निर्भर नहीं रहना पड़ता.

माउंटबेटन से रियासत को लेकर की बैठक
हालांकि सरदार पटेल ने भारत की विभिन्न रियासतों का विलय कर देश को एकसूत्र में पिरोना का काम किया. रियासतों का विलय एक ऐसा पेचीदा मसला था, जिसे अंग्रेज भी हाथ लगाने से परहेज कर रहे थे. हालांकि सरदार पटेल में इस काम को बखूबी अंजाम दिया और इसके लिए कूटनीति और राजनीति का भरपूर इस्तेमाल किया. हालांकि ये सब इतना आसान भी नहीं था. 9 जुलाई को नेहरू और पटेल ने वायसराय लार्ड माउंटबेटन से मिलकर रियासतों के मुद्दे पर खुलकर बात की. उसी दिन बाद में महात्‍मा गांधी भी वायसराय से मिले. इन मुलाकातों के बाद माउंटबेटन ने आखिरकार इस मोर्चे पर खुलकर मदद का भरोसा दिया, जिसके तहत 25 जुलाई को 'चैंबर ऑफ प्रिंसेज' में माउंटबेटन ने भाषण दिया और विलय पत्र में भारत सरकार से समझौता करने का रियासतों पर जोर डाला. वायसराय ने हथियारों की आपूर्ति, संचार व्यवस्था और विदेशी मामले केंद्र के अधीन होने की बात कही. कहीं पढ़ा कि भाषण देते वक्त माउंटबेटन सेना की अपनी वर्दी में थे, शायद वजह मनोवैज्ञानिक तौर पर डराने की रही हो! बाद में उन्होंने बड़ी रियासतों को पत्र लिखकर 15 अगस्त तक विलय ना करने के बाद 'विस्फोटक नतीजे' झेलने की धमकी भी दी. नतीजतन 15 अगस्त तक लगभग सभी रियासतों ने विलय पत्र पर सहमति दे दी.

यह भी पढ़ेंः नेहरू के लिए सरदार पटेल ने छोड़ दिया था प्रधानमंत्री का पद

पटेल और मेनन की जोड़ी ने किया कमाल
आजादी के बाद कांग्रेस ने विलय को सिर्फ तीन मुद्दों तक सीमित रहने से इंकार किया, तो रियासतों के स्तर पर विरोध दिखा. मैसूर के साथ-साथ कठियावाड़ा और उड़ीसा की कुछ रियासतों में आंदोलन हुआ. बाद में प्रिवी पर्स की पेशकश हुई और मामला शांत हुआ. सरदार के फॉर्मूले का त्रावणकोर रियासत ने सबसे पहले विरोध किया, जिसका सपना स्वतंत्र राज्य बनाने का था. बेशकीमती 'थोरियम' के भंडार वाली इस रियासत ने ब्रिटिश सरकार से समझौता भी कर लिया था. उम्मीद थी कि इंग्लैंड से मान्यता भी मिल जाएगी. जिन्ना ने भी त्रावणकोर का सर्मथन कर दिया था, लेकिन त्रावणकोर को झुकना पड़ा. विरोध भोपाल रियासत ने भी किया, जहां की आबादी तो हिंदू बहुल थी लेकिन शासक मुसलमान था. मुश्किलें जोधपुर के महाराजा ने भी बढ़ाईं, जिनको पाकिस्तान में विलय करने लालच दिया गया था. कहा जाता है कि भोपाल के नवाब ने ही जोधपुर के महाराजा की जिन्ना से बैठक कराई थी. जिन्ना ने कराची में बंदरगाह, हथियार और खाद्यान्न का भरोसा दिया था. सूचना मिलते ही सरदार पटेल ने जोधपुर महाराजा से संपर्क साधकर हर जरूरी मदद देने का एलान किया. बताया जाता है कि विलय के वक्त जोधपुर महाराज ने वायसराय के सचिव पर पिस्तौल तक तान दी थी.

यह भी पढ़ेंः Statue Of Unity : देश की एकता के शिल्‍पी थे सरदार पटेल, जानें पूरा जीवन परिचय

गृहराज्य गुजरात में भी बढ़ीं पटेल की मुश्किलें
सरदार पटेल के सामने मुसीबत उनके गृहराज्य गुजरात का जूनागढ़ भी बना, जिसका विरोध जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत के खिलाफ था. जूनागढ़ की करीब 80 फीसदी आबादी हिंदू थी. जूनागढ़ निजाम के विरोध के बीच महात्मा गांधी के भतीजे सामलदास गांधी ने बंबई में वैकल्पिक सरकार के गठन का एलान किया. बढ़ते विरोध के बीच घबराया नबाव अपने दीवान को जिम्मेदारी सौंपकर पाकिस्तान भाग गया. इस बीच 9 नवंबर को जूनागढ़ का भारत में विलय हुआ, लेकिन कहा जाता है कि विलय प्रकिया पर माउंटबेटन नाराज थे! शायद तभी 20 फरवरी 1948 को जूनागढ़ में जनमत संग्रह हुआ, जिसमें 91 फीसदी आबादी ने भारत का साथ दिया. माना जाता है कि कश्मीर को पाकिस्तान को दिए जाने पर पटेल को शुरुआती दिनों में कोई खास आपत्ति नहीं थी, लेकिन जूनागढ़ जैसे हिन्दू बाहुल्य राज्य को पाकिस्तान में मिलाने की जिन्ना की साजिश से बौखलाकर पटेल कश्मीर मोर्चे पर खुलकर नेहरू के साथ आ गए.

यह भी पढ़ेंः  मशहूर शायर मुनव्वर राना का विवादित बयान, फ्रांस में हमले को ठहराया सही

लंबे समय बाद तय हुआ हैदराबाद का भविष्य
सरदार पटेल की मुश्किलें हैदराबाद रियासत ने भी बढ़ाईं. जहां की ज्यादातर आबादी तो हिंदू ही थी, लेकिन शासक मुसलमान. सरदार पटेल का साफ मानना था कि 'आजाद हैदराबाद' भारत के पेट में कैंसर जैसा होगा. दरअसर अलीगढ़ से पढ़ा कट्टर कासिम रिज़वी हैदराबाद निजाम के पक्ष में बने इत्तिहाद उल मुसलमीन संगठन का नेता था. जिन्ना के करीबी रिजवी के नेतृत्व में इत्तिहाद संगठन ने रजाकार नाम से एक हथियारबंद सुरक्षा दल बनाया, जो किसी भी तरह की हिंसा के लिया तैयार था. उधर इंग्लैंड की कंजरवेटिव पार्टी ने निजाम का समर्थन किया था, तो जिन्ना ने हैदराबाद के पक्ष में 10 करोड़ भारतीय मुसलमानों के सड़क पर उतरने की धमकी तक दे दी. भारी गतिरोध के बीच नवंबर 1947 में 'यथास्थिति समझौता' हुआ और भारत सरकार की ओर से के. एम. मुंशी प्रतिनिधि नियुक्त हुए, लेकिन 1948 तक हैदराबाद में तनाव बढ़ने लगा. पाकिस्तान पर हैदराबाद में हथियार गोला बारूद भेजने का आरोप लगा. इस बीच मद्रास ने सरदार पटेल को हैदराबाद के चलते उनके सूबे में बढ़ती शरणार्थी की समस्या पर पत्र लिखा, तो वहीं प्रतिनिधि नियुक्त हुए मुंशी ने भी दिल्ली एक लंबी रिपोर्ट भेजी. उधर जून 1948 में माउंटबेटन ने भी निजाम को खत जिसे निजाम में अनसुना कर दिया. कुछ दिन बाद ही माउंटबेटन ने अपने पद से इस्तीफा दिया, जिसके बाद भारत सरकार ने तुरंत सख्त फैसला लिया और 13 सितंबर को भारतीय सेना की टुकड़ी हैदराबाद में पहुंची. 4 दिन में पूरी रियासत पर कब्जा हो चुका था, जिसमें करीब 2000 रजाकार भी मारे गए. इस सबके साथ ही भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्क के तौर पर वजूद में आ सका. जानकारों का एक तबका मानता है कि पटेल और मेनन की जोड़ी ने अंग्रेजी शासन से सबक लेते हुए अलग नीति को अपनाया और अपने अनुभव और विवेक की बदौलत केवल 2 साल में 500 से ज्यादा रियासतों को इतिहास का हिस्सा बना दिया. 

यह भी पढ़ेंः 1 नवंबर से बदल जाएंगे ये नियम, आपकी जेब पर होगा सीधा असर

ऐसे मिली थी वल्लभ भाई को सरदार की उपाधि 
1928 में गुजरात में बारडोली सत्याग्रह हुआ जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया. यह प्रमुख किसान आंदोलन था. उस समय प्रांतीय सरकार किसानों से भारी लगान वसूल रही थी. सरकार ने लगान में 30 फीसदी वृद्धि कर दी थी, जिसके चलते किसान बेहद परेशान थे. वल्लभ भाई पटेल ने सरकार की मनमानी का कड़ा विरोध किया. सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने की कोशिश में कई कठोर कदम उठाए. लेकिन अंत में विवश होकर सरकार को पटेल के आगे झुकना पड़ा और किसानों की मांगे पूरी करनी पड़ी. दो अधिकारियों की जांच के बाद लगान 30 फीसदी से 6 फीसदी कर दिया गया. बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी.

Statue Of Unity Sardar Vallabhbhai Patel सरदार वल्लभभाई पटेल Unity Day Unification Of India Princly State रियासतों का विलय एकता दिवस
Advertisment
Advertisment
Advertisment