भारत में तापमान बढ़ रहा है. समस्या भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के सामने खड़ी है. सोलोमन द्वीपीय देश प्रशांत महासागर में डूबने की कगार पर है. किरिबाती के नागरिक भाग रहे हैं, सरकार ने दूसरे देश में जमीन खरीदी है, ताकि आबादी का विस्थापन होने की दशा में कोई ठिकाना तो उनके पास रहे. मालदीव अगले 35-40 सालों में समंदर में समा जाएगा. हालात भारत के भी अच्छे नहीं हैं. एक संस्था की तरफ से जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर हम इंसान नहीं चेते, तो पूरी दुनिया के साथ ही हमारा भी वजूद खतरे में पड़ जाएगा. भारत में अगले 50 से 60 सालों औसत तापमान इतना बढ़ जाएगा, मानों हम भट्ठियों में झोंक दिए गए हों. रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ दिनों पहले दिल्ली का तापमान 43 डिग्री सेल्सियस था. जो सामान्य से ज्यादा रहा. और जिस तरह से हम जल-जंगल-जमीन का दोहन कर रहे हैं, उस तरह से अगले 50-60 सालों में ही 47 -48 डिग्री सेल्सियस तापमान दिल्ली का हो जाएगा. मुंबई में भी औसतन इतनी ही बढ़ोतरी होगी. हिमालयी क्षेत्र अभी से ग्लेशियर खो रहे हैं. समुद्री जल स्तर खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है. आईलैंड्स डूबेंगे. समंदर के किनारे बसे शहर समंदर में ही समा जाएंगे.
दिल्ली का डराने वाला हाल
इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) एआर6 रिपोर्ट के आधार पर लू के अनुमानों को देखें तो राजधानी में 29 अप्रैल 2022 को तापमान 43 डिग्री दर्ज किया गया था. यह अप्रैल के महीने में औसत अधिकतम तापमान से काफी उपर है. 1970-2020 तक अप्रैल के तापमान बताते हैं कि चार सालों के दौरान अधिकतम तापमान 43 डिग्री के ऊपर पहुंच गया. इस तरह की तेज गर्मी का मतलब भारत लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी और गर्म हवाओं से जूझता रहेगा.
हिंदुस्तान के शहरों का ये रहेगा हाल
रिपोर्ट के सह लेखक अविनाश चंचल का कहना है कि लू सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए घातक है. अगर हम अभी इससे निपटने की तैयारी नहीं करते हैं, तो इस गर्मी की अवधि, उसके परिणाम, तापमान के सालाना बढ़ोतरी में ही वृद्धि होने की संभावना है. तापमान में तेज से वृद्धि की वजह से सबसे अधिक नुकसान दिल्ली, लखनऊ, पटना, जयपुर और कोलकाता जैसे शहरों में गंभीर रूप से प्रभावित होने की उम्मीद है. इन सभी शहरों में गर्मी और उसके प्रभाव का पैटर्न एक समान है. इसी आकलन के अनुसार, 2080 से 2099 की अवधि में मुंबई और पुणे में अब औसत से 5 डिग्री अधिक गर्म होगा, अधिकतम तापमान 4.2 डिग्री सेल्सियस और चेन्नई में 4 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 3.7 डिग्री सेल्सियस के साथ औसत से 4 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होगा. चंचल के मुताबिक दीर्घकालिक उपायों के रूप में शहरी नियोजन को पर्याप्त हरित आवरण प्रदान करना चाहिए, साथ ही इसे बनाए रखने के लिए भी प्रयास करने चाहिए. इनमें छत पर बागवानी, सामुदायिक पोषण उद्यान, पार्क, मिनी वन, सड़क के किनारे के पेड़ के कवर और जल निकाय को बनाना और सुरक्षित रखना शामिल है.
सिर्फ चर्चा होती है, ठोस कदम कब उठेंगे?
इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट पर गौर करें तो अगर समय रहते कार्बन-डाई-ऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह 2050 तक बढ़कर दोगुना हो जाएगा. ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, जिससे समुद्रों का स्तर बढ़ने से एक तरफ तटवर्ती शहरों के डूबने का खतरा बढ़ेगा, दूसरी तरफ मैदानी शहरों में गर्म हवाएं शोले बरसाएंगी. अविनाश चंचल कहते हैं कि यह बेदह अफसोस की बात है कि इस तरह के चरम मौसम की घटनाओं के सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े होने के पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत होने के बावजूद पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन को रोकने अपेक्षित कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे खतरा लगातार बढ़ रहा है.
ग्रीनपीस इंडिया क्या है, क्या काम करती है?
ग्रीनपीस इंडिया का नाम पिछले काफी समय से चर्चा में है. कभी फेरा के मामले, तो कभी केंद्र सरकार की नोटिसों का बवाल. ग्रीनपीस इंडिया एनजीओ है. ये ग्रीनपीस फाउंडेशन की भारतीय इकाई है. दुनिया के 52 देशों में ये एनजीओ काम करती है. भारत में जलवायु परिवर्तन, ग्रीन हाउस उत्सर्जन, जल-जंगल-जमीन की बात करती है. इस संस्था पर कई तरह के आरोप लगते हैं. खासकर विदेशी चंदे और भारत के अंदर कई आंदोलनों से जुड़े होने को लेकर.
HIGHLIGHTS
- शहरों के बढ़ते औसत तापमान पर रिपोर्ट
- सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए घातक है लू
- समंदर के किनारे खतरा ज्यादा बढ़ा
Source : Shravan Shukla