श्रीलंका (Sri Lanka) ऐतिहासिक आर्थिक-राजनीतिक संकट से उबरने के लिए चहुंओर मदद का हाथ फैलाए हुए है. ईंधन की कमी से स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं, क्योंकि छात्रों और शिक्षकों के लिए आवागमन के साधन नहीं होने से पहुंचना मुश्किल है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी उसे राहत पैकेज नहीं मिल रहा, क्योंकि एक तो उसकी रैंकिंग कम हो गई है. दूसरे ताजा राजनीतिक हालात से जो अस्थिरता पैदा हुई है, वह उसकी राह में रोड़ा बन रही है. हालांकि श्रीलंका की अकेली अर्थव्यवस्था नहीं है जो रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) की वजह से ईंधन, खाद्यान्नों की आसमान छूती कीमतों से कराह रही है. लाओस से पाकिस्तान और वैनेजुएला से पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी की अर्थव्यवस्था भी चरमरा रही है. संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल क्राइसिस रिस्पांस ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार 94 देशों की 1.6 अरब की आबादी खाद्यान्न, ऊर्जा या आर्थिक संकटों को झेल रही है. कई देशों की 1.2 अरब की आबादी बद् से बद्तर हालत में है. विश्व बैंक (World Bank) के एक अनुमान के मुताबिक विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों की प्रति व्यक्ति आय कोरोना महामारी से पहले की तुलना में 5 फीसदी नीचे चली जाएगी. चरमराती अर्थव्यवस्था वाले देशों में इसके लिए एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार, गृह युद्ध, तख्तापलट या अन्य आपदाएं जिम्मेदार हैं. इस कड़ी में ऐसी अर्थव्यवस्थाओं पर नजर डालते हैं, जो गंभीर खतरे में हैं या बैठने की कगार पर पहुंच चुकी हैं.
अफगानिस्तान
दो दशकों बाद अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता स्थापित होने के बाद न सिर्फ अमेरिका और नाटो सैनिकों की वापसी हो गई, बल्कि विदेशी मदद भी रुक गई. तालिबान सरकार फिलवक्त प्रतिबंधों, बैंकों से लेन-देन पर रोक समेत ठप व्यापारिक गतिविधियों से जूझ रही है. बाइडन प्रशासन ने अफगानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में 7 बिलियन डॉलर को फ्रीज कर दिया है. 39 मिलियन में से आधी आबादी जीवन संकट के रूप में खाद्यान्न असुरक्षा से जूझ रही है. डॉक्टरों, नर्सों, शिक्षकों समेत नौकरशाहों को कई-कई महीने वेतन से वंचित रहना पड़ रहा है. हाल ही में आए भूकंप ने इनके संकट को और बढ़ा दिया है.
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अर्जेंटीना
प्रत्येक 10 में से चार अर्जेंटीनावासी गरीब है. इस देश का केंद्रीय बैंक भी आर्थिक संकट से जूझ रहा है. मुद्रा के अवमूल्यन से विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खत्म हो रहा है. इस साल महंगाई की दर 70 फीसदी ज्यादा रहने की आशंका है. लाखों अर्जेंटीनावासी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से सूप पीकर अपना पेट पाल रहे हैं. इन कल्याणकारी योजनाओं को सामाजिक आंदोलनों के बाद लागू किया गया है. अर्जेंटीना को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 44 बिलियन डॉलर का राहत पैकेज मिलने वाला है. विशेषज्ञों की मानें तो इस राहत पैकेज से जुड़ी कठिन शर्तों से इस देश की अपने पैरों पर फिर खड़े होने की संभावनाओं पर और काले बादल छा जाएंगे.
इजिप्ट
अप्रैल में ही इजिप्ट में महंगाई दर 15 फीसदी बढ़ गई थी. 103 मिलियन की आबादी के एक-तिहाई लोग शोषित-वंचित तबके में तब्दील होकर गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं. इन पर सुधारवादी योजनाओं की वजह से पहले ही पहाड़ टूटा हुआ है. खर्च रोकने के फेर में राष्ट्रीय मुद्रा का बार-बार अवमूल्यन हो रहा है. ईंधन, पानी और बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी में कटौती की गई है. इजिप्ट को विदेशी कर्ज चुकाने में दिक्कत आ रही है. विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया है. इजिप्ट के पड़ोसी देशों मसलन सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने 22 बिलियन डॉलर समेत प्रत्यक्ष निवेश के रूप में मदद की है.
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लाओस
कोरोना महामारी से पहले लाओस तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थी. आज उसका कर्ज श्रीलंका सरीखा हो गया है. लाओस सरकार ऋणदाताओं से बिलियन डॉलर के कर्ज को चुकाने के लिए बात कर रही है. कमजोर सरकार वाले इस देश के लिए कठिन आर्थिक हालात स्थितियां दुरूह करने का काम कर रहे हैं. विदेशी मुद्रा भंडार से हद से हद दो महीने का आयात ही हो सकेगा. लाओस की मुद्रा में 30 फीसदी की गिरावट आई है. करेला वह भी नीम चढ़ा की तर्ज पर आसमानी छूती महंगाई और कोरोना की वजह से आई बेरोजगारी ने गरीबों की संख्या बढ़ने की आशंका प्रकट कर दी है.
लेबनान
जैसे श्रीलंका के लिए मुद्रा का जबर्दस्त अवमूल्यन, चरम पर महंगाई, बढ़ती भुखमरी, आवश्यक वस्तुओं की कमी, गैंस-ईंधन के लिए लंबी-लंबी कतारें आम बात है, कुछ ऐसी ही स्थिति लेबनान की है. हालांकि इसके लिए लंबा चला गृह युद्ध ज्यादा जिम्मेदार है. आतंकी हमले और नाकाम सरकार स्थिति में सुधार आने की गुजाइंश पर पानी फेर रहे हैं. 2019 में थोपे गए भारी-भरकम करों को लेकर सत्ता-प्रतिष्ठान के प्रति लोगों को गुस्से से भर दिया है. उस साल लेबनान पर 90 बिलियन डॉलर का कर्ज था, जो उसकी जीडीपी का 170 फीसद है. जून 2021 में लेबनानी मुद्रा की कीमत 90 फीसदी कम हो गई है. विश्व बैंक का भी मानना है कि बीते 150 सालों में लेबनान का संकट बेहद खराब है.
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म्यांमार
कोरोना संक्रमण और फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद सैन्य शासन से उपजी राजनीतिक अस्थिरता ने म्यांमार की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट की है. तख्तापलट के बाद पश्चिमी देशों ने म्यांमार पर प्रतिबंध और थोप दिए हैं. ये प्रतिबंध अधिकतर कॉमर्शियल होल्डिंग्स पर थोपे गए, जिन पर सैन्य जुंता का कब्जा था. बीते साल म्यांमार की अर्थव्यवस्था में 18 फीसदी का संकुचन देखा गया था. इस साल अर्थव्यवस्था में सुधार के कतई कोई संकेत नहीं हैं. लगभग 7 लाख लोगों को सशस्त्र संघर्ष और राजनीतिक हिंसा के चलते अपना घर-बार छोड़ना पड़ा है. इसकी हालत कितनी संवेदनशील है, इसे विश्व बैंक की वैश्विक अर्थव्यवस्था वाली रिपोर्ट से समझा जा सकता है. इस रिपोर्ट में म्यांमार को शामिल तक नहीं किया है.
पाकिस्तान
पाकिस्तान भी आईएमएफ के सामने हाथ फैलाए खड़ा है. आईएमएफ ने 6 बिलियन डॉलर के राहत पैकेज को इमरान सरकार के जाते ही रोक लिया. कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से ईंधन की कीमतें आम आदमी के हाथों से बाहर हो चुकी हैं. महंगाई 21 फीसदी बढ़ी है. आलम यह है कि इम्पोर्टेड चाय पर खर्च को कम करने के लिए पाकिस्तान के एक मंत्री ने लोगों से कम चाय पीने की अपील करने के लिए बाध्य किया है. एक पाकिस्तानी रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 30 फीसदी गिरी है. इससे इतर आईएमएफ की शर्तों को मानते हुए शहबाज सरकार ने ईंधन की कीमतें बेतहाशा बढ़ाईं और सब्सिडी खत्म कर दी. प्रमुख उद्योगों पर 10 फीसद सुपर टैक्स थोपा है ताकि वित्तीय स्थिति को संभाला जा सके. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 13.5 बिलियन डॉलर रह गया है.
HIGHLIGHTS
- गृह युद्ध, तख्तापलट और अस्थिर राजनीति से कई देशों की हालत पतली
- रूस-यूक्रेन युद्ध से बढ़ी महंगाई से तमाम अर्थव्यवस्था हो रही बदहाल
- कभी भी इन देशों में पसर सकता है श्रीलंका जैसे संकट का आलम