सोने की लंका कही जाने वाली श्रीलंका इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. हालात इतने खराब हो चुके हैं कि देश के अंदर हेल्थ इमरजेंसी लगानी पड़ी है. लोगों को जीवन जीने के लिए मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है. श्रीलंका में इस वक्त महंगाई आसमान छू रही है. डीजल-पेट्रोल (Diesel-Petrol) और गैस (Gas) की देश में भारी किल्लत है. हालात ये है कि एलपीजी सिलेंडर का दाम 4,119 रुपए , पेट्रोल 254 रुपए प्रति लीटर और डीजल 176 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है. इतना पैसा चुकाने के बाद भी लोगों को इस सभी चीजों को खरीदने के लिए लंबी-लंबी कतारों में लगाकर इंतजार करते हैं, तब जाकर ये सामान खरीद पाते हैं. श्रीलंका की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि चीनी की कीमत 290 रुपये किलो पहुंच गई है. वहीं, चावल की कीमत 500 रुपए किलो हो चुकी है. दरअसल, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक श्रीलंका में इस वक्त महंगाई दर 17 प्रतिशत को भी पार कर चुकी है. यह पूरे दक्षिण एशिया के किसी भी देश में महंगाई का सबसे भयानक स्तर है. श्रीलंका इस वक्त 1948 में मिली आजादी के बाद सबसे गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. छोटे देश की स्थिति की हालत इतनी खराब है कि यहां 1 कप चाय के लिए लोगों को 100 रुपये देने पड़ रहे हैं. इतना ही नहीं, ब्रेड और दूध जैसी रोजमर्रा की जरूरी चीजों के दाम भी आसमान छू रहे हैं. खबरों के मुताबिक इस वक्त श्रीलंका में ब्रेड के एक पैकेट की कीमत 150 रुपये हो चुकी है. वहीं, दूध का पाउडर 1,975 रुपए किलो हो चुका है. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर श्रीलंका में पिछले कुछ दिनों में ऐसा क्या हुआ कि यहां के हालात पूरी तरह बिगड़ गए.
श्रीलंका की बर्बादी की मुख्य तर वजहें
1. बेवजह का कर्ज : दरअसल, श्रीलंका की बर्बादी की की बर्बादी की मुख्य वजह पिछले दो दशकों में चीन की ओर से किया गया निवेश और भारी भड़कम विदेशी कर्ज को बताया जा रहा है. दरअसल चीन ने श्रीलंका को खूब कर्ज बांटा. वर्ष 2021-22 में कोलंबो की चीन को देनदारी 2 बिलियन डॉलर थी. हंबनटोटा पोर्ट पहले ही चीन को 99 साल के लिए लीज पर दिया जा चुका है. इसके अलावा वाहवाही लूटने के लिए की गई टैक्स कटौती, अचानक से 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक खेती का फैसला, पर्यटन इंडस्ट्री का धराशायी होना और सिर्फ कॉफी और रबड़ के निर्यात पर निर्भर बड़ी वजह माना जा रहा है. नतीजा यह हुआ कि श्रीलंका का कर्ज प्रबंधन कार्यक्रम ध्वस्त हो गया. दरअसल, इस छोटे से देश श्रीलंका पर फरवरी तक 12.55 बिलियन डॉलर का कर्ज था, जिनमें से करीब 4 बिलियन उसे इसी साल चुकता करना है. श्रीलंका के विदेशी कर्ज में इंटरनेशनल सॉवरेन बॉन्ड, एशियन डेवलपमेंट बैंक, चीन और जापान का बड़ा हिस्सा है.
2. Populist Financial फैसले : सरकार ने जनता को खुश करने के लिए Income Tax में अप्रत्याशित कटौती की, जिससे सरकार का revenue घटता चला गया. दरअसल, साल 2019 के आधार में राष्ट्रपति राजपक्षे ने टैक्स को काफी कम कर दिया था. रिपोर्ट्स के अनुसार, श्रीलंका में वैट को 15 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी कर दिया था. सरकार के इस फैसले से वाहवाही तो खूब मिली, लेकिन सरकारी खजाने में हर साल 60 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होने लगा. इस वजह से वैश्विक स्तर पर श्रीलंका को काफी नुकसान हुआ और सरकारी खजाना भी लगातार खाली होता चला गया.
3. कोविड का झटका
वैसे तो कोविड-19 महामारी का असर हर दुनिया के हर देश पर पड़ा, लेकिन कोरोना ने श्रीलंका को ज्यादा प्रभावित किया. इसकी वजह ये है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था या यू करें कि Earning के sources का diversification नहीं था. श्रीलंगा की पूरी अर्थ व्यवस्था tourism, चाय और रबड़ के एक्सपोर्ट पर आधारित थी, लेकिन कोविड महामारी की वजह से पर्यटन उद्योग पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. वहीं, दुनियाभर में कोविड लॉकडाउन की वजह से उद्योग धंधे भी चौपट होने से रबड़ और कॉफी की निर्यात में बी कमी आई, वहीं, कर्ज चुकाने की वजह से देश का खजाना खोली हो गया, क्योंकि श्रीलंका में 10 फीसदी योगदान पर्यटन उद्योग का था और कोविड से ये क्षेत्र काफी ज्यादा प्रभावित हो गया. इससे बेरोजगारी बढ़ गई और लोगों के बिल्कुल भी पैसा नहीं बचा. इससे उभरने के लिए सरकार ने बड़ी मात्रा में नए नोट छाप दिए. अब चूकि उत्पादन तो बढ़ा नहीं, लिहाजा महंगाई बढ़ती चली गई. इसके साथ ही डॉलर के मुकाबले श्रीलंका की मुद्रा भी काफी गिर गई.
4. Organic Farming का भूत
श्रीलंका सरकार ने अचानक से दुनिया का पहला 100% Organic Farming वाला देश बनने का फैसला कर लिया. इसके साथ ही सरकार ने Chemical Fertilizers का विदेशों से import बन्द कर दिया. सरकार के इस फैसले की शुरुआत में तो खूब वाहवाही मिली. लेकिन फसल में कीड़े लगने शुरू हो गए. ऐसे वर्क में किसानों को कीट मारने वाला केमिकल तक नहीं मिला. जिससे फसलें बर्बाद होने लगी. आज उसी की वजह से श्रीलंका में खाने पीने की किल्लत हो गई है. ऐसा माना जा रहा है कि बिना सोचे समझे शुरू की गई सरकार की Organic Farming policy से कृषि उपज (agriculture Production) काफी कम हो गया.
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5- खराब आर्थिक प्रणाली
बिना सोचे समझे किए गए बड़े फैसलों और कोविड महामारी की वजह से जहां श्रीलंका में उत्पादन काफी घट गया. वहीं, सरकारी ने बेतहाशा नोट छापकर इसकी भरपाई करने की कोशिश की. लिहाजा, माल कम होने और डिमांड ज्यादा बढ़ने की वजह से चीजों के दाम बढ़ने लग गई. हालात ये हो गई है कि एक कप चाय 100 रुपए की मिल रही है. देश में मुद्रास्फीति बढ़ने की वजह से डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई करेंसी की कीमत भी घट गई, जिससे आयात महंगा हो गया.
6- विदेशी भंडार हो गया खाली
पर्यटन और निर्यात चौपट होने की वजह से श्रीलंका की आमदनी कम हो गई और खर्चे पूरे करने के लिए लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता चला गया. जिसकी वजह से पिछले दो-तीन साल में ही विदेशी भंडार एक तिहाई ही रह गया. इसके अलावा विदेश कर्ज 173 फीसदी बढ़ गया है. खबरों के मुताबिक इस वक्त श्रीलंका पर कुल 12.55 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और इसमें चीन का हिस्सा काफी ज्यादा है. वहीं,हीं डॉलर की वैल्यू कम होने से सामान आयात करने में भी देश के काफी पैसे लग रहे हैं.
HIGHLIGHTS
- भारी भड़कम कर्ज में डूबा है श्रीलंका
- कोविड की वजह से पर्यटन हुआ चौपट
- विरोध-प्रदर्शन के बाद देशभर में कर्फ्यू