अफगानिस्तान (Afghanistan) पर लगभग दो दशकों बाद फिर से तालिबान (Taliban) काबिज हो चुका है. इसके साथ ही यह भी लगभग तय हो गया है कि यह देश अब इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान के नाम से जाना जाएगा. पाकिस्तान (Pakistan) ने तालिबान सरकार को समर्थन दे दिया है, तो चीन ने भी इसी लीक पर चलने के संकेत दिए हैं. काबुल से लेकर लगभग सभी प्रांतीय राजधानी में तालिबान के लड़ाके हाथों में अत्याधुनिक हथियार लिए शहर में गश्त कर रहे हैं. जाहिर है तालिबान के पास अपना आतंक का साम्राज्य फैलाने के लिए पैसों की कतई कोई कमी नहीं है. 2016 में फोर्ब्स पत्रिका ने तालिबान को दुनिया का पांचवां सबसे अमीर आतंकी संगठन बताया था. आंकड़ों में तब तालिबान का सालाना टर्नओवर 400 मिलियन डॉलर था. हालांकि 2019-20 में नाटो की गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक चार साल में तालिबान का सालाना टर्नओवर बढ़कर 1.6 बिलियन डॉलर यानी भारतीय मुद्रा में लगभग 1,18,61,62,40,000 करोड़ रुपए हो चुका है.
दुनिया भर के लिए बना बड़ा खतरा
संभवतः इतनी बड़ी धनराशि की मदद से ही तालिबान ने अपने आतंक के साम्राज्य को फहराया है. नाटो की रिपोर्ट तैयार करने वाले लिन ओ डोनेल ने उस वक्त भी आगाह किया था कि तालिबान की आय यदि ऐसे ही बढ़ती रही, तो उस पर लगाम लगाना बेहद मुश्किल हो जाएगा. रिपोर्ट में वैश्विक समुदाय को चेतावनी दी गई है कि अगर तालिबान के खिलाफ समग्र रूप से कार्रवाई नहीं की गई, तो यह एक अमीर आतंकी संगठन बना रहेगा, जो दुनिया के लिए खतरा रहेगा. सामरिक विशेषज्ञ भी अब चेतावनी दे रहे हैं कि अमेरिका सेना के अफगानिस्तान से हटने के साथ ही तालिबान अब न सिर्फ दक्षिण एशिया, बल्कि पूरे विश्व को अस्थिर करने वाली बड़ी आतंकी ताकत बन सकता है. यह चेतावनी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि अफगानिस्तान पर काबिज होते ही तालिबान राज को ईरान, पाकिस्तान, रूस और फिर चीन ने परोक्ष रूप से अपना समर्थन दे दिया है. यह अलग बात है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफगान मसले पर एक आपात बैठक में तालिबान पर अंकुश लगाने की बात की गई है.
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नशे के कारोबार से है मुख्य कमाई
फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक तालिबान की कमाई का मुख्य स्रोत नशे का व्यापार है. इसमें भी अफीम की खेती केंद्रीय स्रोत है. दक्षिणी अफगानिस्तान की हेलमंड नदी के पास दुनिया की 90 फीसदी हेरोइन पैदा होती है. जानकारी के मुताबिक तालिबान अफीम की खेती करने वाले किसानों से वसूली करता है. फिर यही अफीम तस्करी के जरिये दुनिया भर में सप्लाई करता है. फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक नशे के काले कारोबार से भी तालिबान को हर साल लगभग 416 मिलियन डॉलर मिलते हैं. नशे के अलावा तालिबान प्राकृतिक खनिजों के खनन से 464 मिलियन डॉलर कमाता है. विभिन्न सरकारी एजेंसियों, व्यापारियों और औद्योगिक घरानों से वसूली बतौर 160 मिलियन डॉलर मिलते हैं. इसके अलावा कई कट्टर समूहों से भी उसे 240 मिलियन डॉलर मिल जाते हैं. निर्यात से तालिबान को हर साल 240 मिलियन डॉलर, तो रियल एस्टेट से लगभग 80 मिलियन डॉलर हर साल मिलते हैं. और तो और रूस, ईरान, सउदी अरब और पाकिस्तान जैसे देशों से 100 मिलियन डॉलर से 500 मिलियन डॉलर के बीच रकम प्राप्त होती है.
HIGHLIGHTS
- 2016 में फोर्ब्स पत्रिका ने 5वां सबसे अमीर आतंकी संगठन बताया था
- नाटो की रिपोर्ट के मुताबिक अब 1.6 बिलियन डॉलर का है टर्नओवर
- हथियार और वाहनों के बल पर फैला रहा है अपना आतंक का साम्राज्य