Advertisment

विचारधारा के नाम बगावत करने वाला पहला शिवसैनिक, एकनाथ शिंदे नहीं जानें कौन?

रमेश सोलंकी ने 21 साल तक शिवसैनिक के रूप में काम किया. लेकिन 2019 में शिवसेना के एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर कुछ घंटों में पार्टी के बाहर हो गए.

author-image
Pradeep Singh
New Update
shivshena

रमेश सोलंकी( Photo Credit : News Nation)

Advertisment

शिवसेना के अधिकांश विधायक बागी हो गए हैं. बागी विधायक महाविकास अघाड़ी सरकार के विरोध में हैं. बागी समूह का कहना है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे यदि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाते हैं तो वे उनका साथ देंगे. महाविकास अघाड़ी सरकार को वे शिवसेना और बाला साहब ठाकरे के सिद्धांतों और नीतियों के खिलाफ बताते हैं. बागी विधायक इस लड़ाई को विचारधारा की लड़ाई बता रहे हैं तो शिवसेना बागियों को भाजपा सरकार के इशारे पर पार्टी तोड़ने के कदम के रूप में देख रही है.

ऐसा नहीं है कि शिवसेना का भाजपा छोड़कर कांग्रेस औऱ एनसीपी के साथ सराकर बनाने का विरोध पहली बार हो रहा है. 2019 में जब शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने भाजपानीत एनडीए से अलग होकर विरोधी विचारधारा के कांग्रेस औऱ एनसीपी के साथ हाथ मिलाने का ऐलान किया था, तब भी पार्टी में विद्रोह के स्वर फूटे थे. कुछ विधायक और कार्यकर्ता मुखर हुए ते. लेकिन तब यह संख्या कम थी.

यह भी पढ़ें: शिंदे 'सेना' को SC से बड़ी राहत, महाराष्ट्र सरकार-डिप्टी स्पीकर को नोटिस

रमेश सोलंकी ने 21 साल तक शिवसैनिक के रूप में काम किया. लेकिन 2019 में शिवसेना के एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर कुछ घंटों में पार्टी के बाहर हो गए. तीन साल बाद, एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व को चुनौती देने के साथ ही शिवसेना को विभाजित करने की धमकी दी.

ऐसे में बालासाहेब ठाकरे के सिद्धांतों पर शिवसेना के "समझौता" का हवाला देते हुए पार्टी छोड़ने वाले पहले शिव सैनिक रमेश सोलंकी कहते हैं कि शिवसेना में विभाजन आसन्न है क्योंकि ठाकरे ने बालासाहेब ठाकरे की भगवा विचारधारा को पीछे छोड़ दिया है. उन्होंने कहा कि शिव सैनिक बहुत भावुक होते हैं.  

रमेश सोलंकी पहले शिवसैनिक थे जिन्होंने 26 नवंबर, 2019 को इस्तीफा दिया था. शिवसेना के बागियों को देखकर वह खुश हैं कि  शिवसेना के कई पुराने हाथों ने अपने अलग रास्ते जाने का फैसला किया है. वह बहुत पहले ऐसा होने की उम्मीद कर रहे थे. उनका कहना है कि यदि आप कुछ ऐसा करते हैं जो आपके मूल स्वभाव के विरुद्ध है, तो यह अधिक समय तक नहीं टिकता है.

रमेश सोलंकी कहते हैं कि, मैं उद्धव साहब से ऐसा करने की उम्मीद कर रहा था. मुझे लगा कि तुष्टिकरण को बढ़ावा देने के लिए उद्धव राकांपा और कांग्रेस को बाहर कर देंगे. लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके.

सोलंकी स्वयं को बगावत और एकनाथ शिंदे की बगावत पर कहते हैं कि, "मैंने जो किया और जो वे (शिंदे खेमे) अब कर रहे हैं, वही बात है. एमवीए सरकार आदर्श नहीं थी. बालासाहेब की विचारधारा महाराष्ट्र की राजनीति के लिए हमेशा प्रासंगिक रहेगी. 2019 में हमने जो शिवसेना देखी, वह शिवसेनानहीं थी. यह कैसा दिखेगा, यह नेताओं के निर्णय पर निर्भर करेगा."

सोलंकी कहते हैं कि, "बालासाहेब के बेटे हों या पोते, अगर वे बालासाहेब की विचारधारा के खिलाफ काम करते हैं, तो यह लंबे समय तक नहीं चलेगा. बालासाहेब की हिंदुत्व विचारधारा से प्रभावित होकर हम शिवसेना में शामिल हुए. डिफ़ॉल्ट रूप से विचारधारा से समझौता करने से काम नहीं चलने वाला है. मैं आपको अपने निजी अनुभव से बताता हूं कि किसी भी सैनिक के लिए सेना से अलग होना सबसे कठिन फैसला होता है. मैंने इसे ऑन रिकॉर्ड कह दिया कि यह मेरे लिए दिल तोड़ने वाला पल था. बालासाहेब से जब भी कोई आदेश होता, तो हर कोई अपनी जान दांव पर लगाकर सड़कों पर उतर आता."

वह कहते हैं कि विरोध शिवसेना के खून में है. मैं इसे सही नहीं ठहरा रहा हूं, लेकिन वे लोग सड़कों पर उतरकर विरोध करते. लेकिन दुख की बात है कि कुछ तत्व इसे और भड़का रहे हैं. उन्हें राज्य के लोगों के बारे में सोचना चाहिए.

शिवसैनिकों को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे के भावुक होने के सवाल पर रमेश सोलंकी कहते हैं कि, "शिवसैनिक काफी इमोशनल हैं. लेकिन एक समय के बाद वह कार्ड प्रभावी नहीं होगा. पार्टी बंटने वाली है. विद्रोहियों और उनके समर्थकों ने शिवसेना को नहीं, बल्कि राकांपा और कांग्रेस को खारिज किया है. वे (ठाकरे खेमे) हर घंटे अपना रुख बदलते हैं. कभी-कभी वे कहते हैं कि वे पार्टी छोड़ देंगे, और फिर वे विद्रोहियों को धमकाते हैं."

आदित्य ठाकरे के नेतृत्व के सवाल पर सोलंकी कहते हैं कि, कोई भी शिवसैनिक चाहे उद्धव हो या आदित्य, अगर उन्हें आगे बढ़ना है तो उनके पास बालासाहेब की विचारधारा होनी चाहिए. बालासाहेब की शिवसेना भगवा है, आप इसे हरा-भरा बना सकते हैं. आप प्रगतिशील हो सकते हैं, लेकिन पार्टी के मूल स्वरूप को नहीं बदल सकते. मैं शिवसेना के युवा नेताओं को सलाह दूंगा कि बालासाहेब के बिना हम कुछ भी नहीं हैं. बंटवारे का असर अखिल भारतीय होने जा रहा है. शीर्ष नेतृत्व अन्य रैंक के नेताओं को गंभीरता से लेना शुरू कर देगा. मेरा मानना ​​है कि बालासाहेब की सेना होनी चाहिए.

एकनाथ शिंदे के उद्धव के पास वापस आने के सवाल पर सोलंकी कहते हैं कि,  वे कभी भी वापस आ सकते हैं. अगर विचारधारा तस्वीर में आती है, तो कुछ भी असंभव नहीं है. अगर शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिला सकती है, तो मेरा मानना ​​है कि राजनीति में सब कुछ संभव है.

Advertisment
Advertisment
Advertisment