आज हम (World Animal day) मना रहे हैं. पर क्या आपको पता है देश में सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि पशु भी इसांफ के इंतजार में बूढे होकर दुनिया को अलविदा कह जाते हैं.. जी हां बेजुबानों के लिए बने कानून को शासन-प्रशासन आज भी ठीक से अमल नहीं कर सका है.. यही वजह है कि पशु क्रूरता अधिनियम में जिन मुल्जिमों को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेजती है, उन्हें सजा नहीं मिल पाती है.. जमानत मिलने के बाद ये मुल्जिम कोर्ट में पेश ही नहीं होते.. वारंट जारी होने के बाद भी गिरफ्तारी नहीं होती. देश में ऐसे लाखों मामले हैं..जिनके मुल्जिम सालों से फरार चल रहे हैं.. जमानतदारों के भी वारंट जारी हो चुके हैं. लेकिन मामले को पशु से जुड़ा बताकर वे भी हाजिर नहीं होते हैं..
खबरों के मुताबिक पशु क्रूरता संबंधी फाइलें अधिकारियों के दफ्तर में फाइलों के नीचे दब जाती हैं. इन फाइलों को देखने की अधिकारियों के पास फुर्शत नहीं होती.. जिसके चलते बेजुबान बूढे होकर अपनी जान से चले जाते हैं, लेकिन इंसाफ नहीं मिल पाता. अकेले यूपी में 20 हजार से ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं. देश की बात करें तो आंकड़ा लाखों में पहुंचेगा. साथ ही इतने ही मामलों में वारंट होने के बाद भी अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं हो रही है. जमानती भी चैन की नींद सो रहे हैं, उन्हे कोई पूछने वाला तक नहीं है..
फर्जी होते हैं जमानती
विशेषज्ञ अधिवक्ता अतुल कुमार के अनुसार पशु क्रूरता अधिनियम में ज्यादातर जमानती फर्जी होते हैं.. जो अपराधियों को जमानत पर छुड़ा तो लेते हैं, इसके बाद उन्हे ढूंढ पाना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर होती है. अकेले यूपी में ऐसे जमानतियों की संख्या 5000 के पार होगी, जिनकी जमानत पर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत अपराधी को जमानत मिल चुकी है.. लेकिन अपराधी और जमानती दोनों ही फरार है.. पुलिस और प्रशासन उन्हे गिरफ्तार करने की जहमत तक नहीं उठा रहा है.. अधिवक्ता राजकुमार ने बताया कि पशु क्रुरता अधिनियम के मामलों को न तो विभाग और न ही कोर्ट दोनों ही संजिदा नहीं होते,, जिसके चलते दोषी जुर्म करने के बाद भी चैन की नींद सोते हैं..
क्यों मनाते हैं वर्ल्ड एनिमल डे
.इस दिन पशुओं के अधिकारों और उनके कल्याण आदि से संबंधित विभिन्न कारणों की समीक्षा की जाती है. जानवरों के महान संरक्षक असीसी केसेंट फ्रांसिस का जन्मदिवस भी 4 अक्टूबर को मनाया जाता हैं. ये जानवरों के महान संरक्षक थे. अन्तरराष्ट्रीय पशु दिवस के अवसर पर जनता को एक चर्चा में शामिल करना और जानवरों के प्रति क्रूरता, पशु अधिकारों के उल्लंघन आदि जैसे विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता पैदा करना है.पहली बार विश्व पशु दिवस का आयोजन हेनरिक जिमरमन ने 24 मार्च, 1925 को जर्मनी के बर्लिन में स्थित स्पोर्ट्स पैलेस में किया था. किंतु वर्ष 1929 से यह दिवस 4 अक्टूबर को मनाया जाने लगा. शुरू में इस आंदोलन को जर्मनी में मनाया गया और धीरे-धीरे यह पूरी दुनिया में फ़ैल गया.
HIGHLIGHTS
कई-कई सालों तक नहीं होती कोई कार्रवाई
दफ्तरों में धूल फांक रही पशु क्रूरता अधिनियम की फाइल
4 अक्टूबर को वर्ल्ड ऐनिमल डे मनाकर खुश हो जाता है देश