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'यशस्वी भारत' से हिंदू समाज को अजेय बनाना चाहता है RSS

इस किताब में मोहन भागवत के भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग विषयों पर दिए गए कुल 17 भाषणों का संग्रह है.

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Nihar Saxena
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yashasvi Bharat

प्रतीकात्मक फोटो.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत के प्रमुख भाषणों के संग्रह पर आधारित पुस्तक 'यशस्वी भारत' का 19 दिसंबर को दिल्ली में विमोचन होगा. यह ऐसी पुस्तक है जिसे पढ़कर आरएसएस को समझने में आसानी होगी. इस किताब में मोहन भागवत के भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग विषयों पर दिए गए कुल 17 भाषणों का संग्रह है. खास बात है कि वर्ष 2018 के सितंबर में दिल्ली के विज्ञान भवन में दिए गए दो प्रमुख भाषणों और तीसरे दिन के प्रश्नोत्तरी को भी शामिल किया गया है. संघ के जानकारों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझना इतना आसान नहीं है, फिर भी लोगों को इस पुस्तक से काफी कुछ जानकारी मिलेगी. साथ ही उन्हें यह भी स्पष्ट होगा कि विभिन्न विषयों पर संघ का क्या विचार है? 17 भाषणों के संकलन वाली पुस्तक का प्रकाशन नई दिल्ली स्थित प्रभात प्रकाशन ने किया है.

पुस्तक में शामिल भाषणों की मुख्य बातें 

  • 'यशस्वी भारत' पुस्तक में सरसंघचालक मोहन भागवत के भाषणों के माध्यम से विभिन्न मुद्दों पर संघ के दृष्टिकोण को बताया गया है. पुस्तक के प्रथम प्रकरण का शीर्षक है - 'हिंदू, विविधता में एकता के उपासक'. इसमें कहा गया है कि 'हम स्वस्थ समाज की बात करते हैं, तो उसका आशय संगठित समाज होता है. हम को दुर्बल नहीं रहना है, हम को एक होकर सबकी चिंता करनी है.'
  • किताब में संघ के बारे में कहा गया है, हमारा काम सबको जोड़ने का है. संघ में आकर ही संघ को समझा जा सकता है. संगठन ही शक्ति है. विविधतापूर्ण समाज को संगठित करने का काम संघ करता है.
  • पुस्तक में राष्ट्रीयता को संवाद का आधार बताया गया है. संघ मानता है कि वैचारिक मतभेद होने के बाद भी एक देश के हम सब लोग हैं और हम सबको मिलकर इस देश को बड़ा बनाना है. इसलिए हम संवाद करेंगे.
  • संघ का काम व्यक्ति-निर्माण का है. व्यक्ति निर्मित होने के बाद वे समाज में वातावरण बनाते हैं. समाज में आचरण में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं. यह स्वावलंबी पद्धति से, सामूहिकता से चलने वाला काम है. संघ केवल एक ही काम करेगा-व्यक्ति-निर्माण, लेकिन स्वयंसेवक समाज के हित में जो-जो करना पड़ेगा, वह करेगा.
  • किताब में हिंदुत्व को लेकर कहा गया है, भारत से निकले सभी संप्रदायों का जो सामूहिक मूल्यबोध है, उसका नाम 'हिंदुत्व' है. इसलिए संघ हिंदू समाज को संगठित, अजेय और सामथ्र्य-संपन्न बनाना चाहता है. इस कार्य को संपूर्ण करके संघ रहेगा. प्रस्तावना लिखते हुए एम.जी. वैद्य ने वर्तमान पीढ़ी से इस 'यशस्वी भारत' पुस्तक को पढ़ने की अपील की है.

Source : IANS/News Nation Bureau

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