हर साल 4 जून को चीन की राजधानी पेइचिंग के थियानमेन चौक पर सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी कर दी जाती है. सुरक्षा बलों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने का आदेश रहता है. आज भी ऐसा ही है. थियानमेन चौक पर पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जवान पल-पल नजर गड़ाए हैं. कारण है कि आज थियानमेन चौक पर हादसे के 33 साल पूरे हो गए हैं. लेकिन चीनी शासन पर लगे युवाओं के खून के धब्बे अभी भी ताजा नजर आते हैं. न तो इस घटना का चीन भूला है और न ही बाकी दुनिया. ऐसे में सवाल उठता है कि य़ह थियानमेन चौक घटना है क्या? 33 में एक पूरी पीढ़ी बदल जाती है, और परिवार का मुखिया भी. कई घाव सूख जाते हैं, और लोगों के सोचने-देखने का नजरिया भी बदल जाता है. लेकिन थियानमेन चौक पर देखने-सोचने का नजरिया नहीं बदला है.
क्या है थियानमेन चौक कांड
आज से 33 साल पहले चीन की राजधानी पेइचिंग के थियानमेन चौक पर 3-4 जून 1989 में छात्रों के नेतृत्व में विशाल विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसे नगरवासियों से भारी समर्थन मिला. चीन में आर्थिक बदलाव के बाद राजनीतिक बदलाव की मांग को लेकर छात्र सात सप्ताह से डेरा जमाए बैठे थे. यह प्रदर्शन आम तौर पर शांतिपूर्ण था. लेकिन आखिर में तीन और चार जून को सरकार ने छात्रों पर गोलियां चलवा दीं. चीन की सेना ने बंदूकों और टैंकरों के जरिए शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे निशस्त्र नागरिकों का दमन किया और बीजिंग में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया.
एक राय यह भी है कि ये विरोध प्रदर्शन अप्रैल 1989 में चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के पू्र्व महासचिव और उदार सुधारवादी हू याओबांग की मौत के बाद शुरू हुए थे. हू चीन के रुढ़िवादियों और सरकार की आर्थिक और राजनीतिक नीति के विरोध में थे और हारने के कारण उन्हें हटा दिया गया था. छात्रों ने उन्हीं की याद में मार्च आयोजित किया था.
मृतकों की संख्या पर मतभेद
पश्चिमी मीडिया का मानना है कि 3-4 जून 1989 को इस चौक पर चीन की सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने नरसंहार किया. इन प्रदर्शनों का जिस तरह से हिंसक दमन किया गया ऐसा बीजिंग के इतिहास में कभी नहीं हुआ था. इस प्रदर्शन से चीन के राजनीतिक नेतृत्व के बीच आपसी मतभेद खुलकर बाहर आ गये थे. आज तक इस हिंसक दमन की आलोचना की जाती है और बार बार इस प्रदर्शन में मारे गए छात्रों के परिजनों की आवाज सामने आती है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 200 लोग मारे गए और लगभग 7 हजार घायल हुए थे. किन्तु मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पश्चिमी मीडिया के अनुसार विरोध को दबाने के लिए चीनी सरकार के आदेश पर हुई सैन्य कार्रवाई में 10 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.
बोलुआन फनझेंग और आर्थिक सुधार
1976 में चेयरमैन माओत्से तुंग की मौत के बाद सांस्कृतिक क्रांति का अंत हुआ. माओ द्वारा प्रायोजित उस आंदोलन ने देश के मूल रूप से विविध आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने को गंभीर नुकसान पहुंचाया. देश गरीबी में घिर गया था क्योंकि आर्थिक उत्पादन धीमा हो गया था. राजनीतिक विचारधारा आम लोगों के जीवन के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी के आंतरिक कामकाज में भी सर्वोपरि थी.
सितंबर 1977 में डेंग शियाओपिंग ने सांस्कृतिक क्रांति की गलतियों को सुधारने के लिए बोलुआन फैन्झेंग (अराजकता से आदेश लाने) के विचार का प्रस्ताव रखा. 11 वीं केंद्रीय समिति के तीसरे प्लेनम में, दिसंबर 1978 में, डेंग चीन के वास्तविक नेता के रूप में उभरा. उन्होंने चीनी अर्थव्यवस्था (सुधार और उद्घाटन) में सुधार के लिए एक व्यापक कार्यक्रम शुरू किया. कई वर्षों के भीतर, वैचारिक पवित्रता पर देश के फोकस को भौतिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए एक ठोस प्रयास द्वारा बदल दिया गया.