महाराष्ट्र में शिवसेना के अधिकांश विधायक और सांसद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ हैं. कई नगर निगमों के पार्षद भी शिंदे खेमे में ही आ गए हैं. शिंदे गुट संगठन के पदाधिकारियों को अपनी तरफ खींचने में लगा है. पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ अब चंद विधायक और सांसद ही बचे हैं. लेकिन अभी भी वह अपने को शिवसेना का सर्वे-सर्वा बता रहे हैं. अपने साथ के लोगों को असली शिवसेना बताते हुए पार्टी के सिंबल और कार्यालय पर अपना दावा जता रहे हैं.
शिवसेना के सिंबल पर किसका अधिकार होगा. पार्टी और उसका चुनाव चिंह्न उद्धव ठाकरे को मिलेगा या एकनाथ शिंदे को? ये सवाल हर कोई जानना चाहता है. एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे से शिवसेना का पार्टी चिन्ह धनुष और तीर छीनने के करीब पहुंच रहे हैं. शिवसेना के कुल 19 लोकसभा सांसदों में से 12 शिंदे खेमे में शामिल हो गए हैं, जबकि 6 और सांसदों के भी उनके पक्ष में जाने की संभावना है. इससे पहले शिंदे के साथ राष्ट्रीय कार्यकारिणी और संगठन से जुड़े 40 बागी विधायक रह चुके हैं. कुल मिलाकर शिवसेना का चुनाव चिन्ह उद्धव के हाथ से फिसलता नजर आ रहा है. हालांकि, अंतिम निर्णय भारत के चुनाव आयोग के पास है.
शिवसेना के समीकरण में क्या बदलाव आया?
शिवसेना में जो बदलाव हुआ है, उससे उद्धव ठाकरे का पार्टी सिंबल खोना तय है. एकनाथ शिंदे के महाराष्ट्र के सीएम बनने के बाद से शिवसेना के उद्धव गुट और शिंदे गुट के समीकरण में महत्वपूर्ण बदलाव आया है. 2019 में शिवसेना के पास कुल 56 विधायक थे. इनमें से 1 की मौत हो चुकी है. यानी यह संख्या अब 55 हो गई है. 4 जुलाई को हुए फ्लोर टेस्ट में शिंदे गुट के पक्ष में 40 विधायकों ने वोट किया.
सिर्फ विधायक ही नहीं संगठन के अधिकांश लोग भी शिंदे गुट के साथ हैं. 7 जुलाई को ठाणे जिले के 67 नगरसेवकों में से 66 शिंदे गुट में शामिल हो गए हैं. बीएमसी के बाद ठाणे सबसे बड़ा नगर निगम है. इसके बाद डोंबिवली नगर निगम के 55 पार्षद उद्धव ठाकरे को छोड़कर शिंदे में शामिल हो गए. वहीं, नवी मुंबई के 32 पार्षद भी शिंदे गुट में शामिल हो गए हैं.
इसके साथ ही शिंदे गुट ने 18 जुलाई को पार्टी की पुरानी राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भंग कर नई कार्यकारिणी की घोषणा की. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को शिवसेना का नया नेता चुना गया है. हालांकि, शिवसेना ने पार्टी प्रमुख का पद नहीं हटाया है. यानी उद्धव ठाकरे का पद बरकरार है.
शिवसेना के पास 19 लोकसभा और 3 राज्यसभा सांसद हैं. इनमें से शिंदे गुट ने मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष के सामने 12 लोकसभा सांसदों की परेड कराई. इसके साथ ही शिंदे गुट का दावा है कि 19 सांसदों में से 18 उनके साथ हैं. स्पीकर ओम बिरला ने बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे के समर्थक सांसद राहुल शेवाले को भी लोकसभा में शिवसेना का नेता मान लिया है. भावना गवली को शिवसेना की मुख्य सचेतक के रूप में बरकरार रखा गया है.
कांग्रेस और एनसीपी के साथ उद्धव ठाकरे का शिवसेना गठबंधन अभी भी बरकरार है, लेकिन 18 जुलाई को हुए राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना के सभी 22 सांसदों ने बीजेपी उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट किया.
चुनाव आयोग कैसे तय करेगा कि शिवसेना का चुनाव चिन्ह किसे मिलेगा?
यदि किसी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तर की पार्टी में विभाजन होता है, तो चुनाव आयोग तय करता है कि असली पार्टी कौन सी है. यानी शिवसेना का मुखिया कौन होगा यह चुनाव आयोग ही तय करेगा. चुनाव आयोग को यह शक्ति चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 15 से मिलती है.
आयोग पार्टी के ऊर्ध्वाधर विभाजन की जांच करेगा. यानी इसमें विधायिका और संगठन दोनों में विभाजन को देखा जाता हैं. चुनाव आयोग विभाजन से पहले पार्टी की शीर्ष समितियों और निर्णय लेने वाले निकायों की सूची लाता है. इससे यह जानने की कोशिश की जाती है कि इनमें से कितने सदस्य या अधिकारी किस समूह के हैं. इसके अलावा किस गुट में कितने सांसद और विधायक हैं?
ज्यादातर मामलों में, आयोग ने पार्टी पदाधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के समर्थन के आधार पर प्रतीक देने का फैसला किया है, लेकिन अगर किसी कारण से यह संगठन के भीतर समर्थन को उचित रूप से सही नहीं ठहरा पाता है, तो आयोग पूरी तरह से पार्टी से स्वतंत्र है. और सांसदों और विधायकों के बहुमत के आधार पर फैसला करता है.
क्या शिंदे गुट शिवसेना का धनुष-बाण चिह्न छीन लेगा?
शिवसेना के 40 विधायक और 12 सांसद अब शिंदे गुट के साथ हैं. सांसदों और विधायकों की संख्या के आधार पर शिंदे ने दावा किया है कि उनके पास दो तिहाई जनप्रतिनिधि हैं, इसलिए असली शिवसेना अब उन्हीं की है. इसके साथ ही शिंदे गुट ने कई जिलों के पदाधिकारियों के साथ होने का भी दावा किया है. यानी शिंदे ने संगठन को भंग करना भी शुरू कर दिया है.
हालांकि, इस विभाजन से पहले, उद्धव ठाकरे शिवसेना के संविधान के अनुसार चुने गए अध्यक्ष हैं. चुनाव आयोग पार्टी के ऊर्ध्वाधर विभाजन की जांच करेगा. यानी इसमें विधायिका और संगठन दोनों ही नजर आते हैं. ऐसे में शिंदे गुट मौजूदा हालात में मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है. यानी वह विधायिका के साथ-साथ संगठन को भी अपनी तरफ खींच रहे हैं.
क्या यह मामला चुनाव आयोग तक पहुंच गया है?
एकनाथ शिंदे गुट की ओर से 19 जुलाई को चुनाव आयोग को एक पत्र सौंपा गया है. पत्र में लिखा गया है कि ''हमारे पास शिवसेना के विधायकों और सांसदों का बहुमत है. हमारी एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी है. ऐसे में हमें असली शिवसेना के रूप में पहचाना जाना चाहिए.
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वहीं, पार्टी पर एकनाथ शिंदे की पकड़ को देखते हुए उद्धव धड़े ने 11 जुलाई को चुनाव आयोग में कैविएट दाखिल किया था. इसमें कहा गया था कि शिंदे गुट की ओर से पार्टी के चुनाव चिन्ह पर की गई किसी भी मांग पर विचार करने से पहले उनकी बातों पर गौर करें. भी सुना जाना चाहिए.
एकनाथ शिंदे शिवसेना पर कब्जा क्यों करना चाहते हैं?
इस पूरे प्रकरण से स्पष्ट है कि भाजपा की मंशा सिर्फ महाराष्ट्र में सरकार बनाने की नहीं है बल्कि वह राज्य में उद्धव ठाकरे को कमजोर करना चाहती है. वहीं, बीजेपी ऐसी शिवसेना चाहती है जो उसका समर्थन करे न कि उसके प्रतिद्वंद्वी. इसलिए बीजेपी चाहती है कि शिंदे गुट को शिवसेना का चुनाव चिन्ह मिले. इसके साथ ही आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को शिवसेना के खिलाफ गुस्से का सामना नहीं करना पड़ेगा.
HIGHLIGHTS
- एकनाथ शिंदे गुट ने19 जुलाई को चुनाव आयोग को एक पत्र सौंपा
- शिवसेना के 40 विधायक और 12 सांसद अब शिंदे गुट के साथ हैं
- सांसदों और विधायकों की संख्या के आधार पर शिंदे का शिवसेना पर दावा