महिला आरक्षण बिल पर अखिलेश और राबड़ी नाराज क्यों?

भारत में महिला आरक्षण बिल की यात्रा काफी लंबी रही है. इतनी लंबी की इसमें 27 साल लग गए और 8 बार पेश करना पड़ा, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका. हालांकि इस बार इसके पास होने का रास्ता आसान जरूर दिख रहा है लेकिन इस मुद्दे को लेकर राजनीति लगातार जारी है

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Prashant Jha
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अखिलेश यादव, राबड़ी देवी और अर्जुन मेघवाल( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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केंद्र सरकार ने संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया है, मंगलवार को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में बिल पेश किया. लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण की गारंटी देने वाले इस विधेयक के लागू होने पर निश्चित रूप से महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और महिला सशक्तीकरण की दिशा में भारत की कोशिशों को बल मिलेगा. आपको बता दें कि भारत में महिला आरक्षण बिल की यात्रा काफी लंबी रही है. इतनी लंबी की इसमें 27 साल लग गए और 8 बार पेश करना पड़ा, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका. हालांकि इस बार इसके पास होने का रास्ता आसान जरूर दिख रहा है लेकिन इस मुद्दे को लेकर राजनीति लगातार जारी है.  समाजवादी पार्टी  के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि महिला आरक्षण लैंगिक न्याय और सामाजिक न्याय का संतुलन होना चाहिए. इसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी की महिलाओं का आरक्षण निश्चित प्रतिशत रूप में स्पष्ट होना चाहिए.

दूसरी तरफ अखिलेश यादव की पत्नी और मैनपुरी से सपा की सांसद डिंपल यादव ने कहा, "मैं महिला हूं और इस बिल का समर्थन करती हूं. लेकिन, मैं चाहती हूं कि अंतिम पंक्ति में जो खड़ी महिला है, उसको भी उसका हक मिलना चाहिए. हम चाहते हैं कि ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण मिले."

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महिला आरक्षण बिल के विरोध में सपा और आरजेडी 

बता दें कि समाजवादी पार्टी और लालू यादव की आरजेडी हमेशा से ही महिला आरक्षण बिल की मुखालफत करती रही है, इन दोनों ही पार्टियों का मानना है कि महिला आरक्षण बिल में ओबीसी महिलाओं के लिए भी अलग से व्यवस्था की जाए. साल 2008 में जब यूपीए सरकार द्वारा ये बिल लाया गया था तो लालू-मुलायम ने ही इसका ये कहते हुए विरोध किया था कि इसका लाभ केवल शहरी और पढ़ी-लिखी महिलाओं को ही मिलेगा. ग्रामीण और पिछड़े वर्ग की महिलाओं को इससे कोई फायदा नहीं मिलने वाला है.  बाद में 9 मार्च 2010 में ये बिल किसी तरह राज्यसभा में पास हो गया. लेकिन उस वक्त की मनमोहन सिंह सरकार इसे लोकसभा में पेश नहीं कर पाई. जानकारों की मानें तो लालू-मुलायम के समर्थन से चल रही सरकार को शायद ये खतरा सता रहा था कि अगर ये बिल लोकसभा में गया तो लालू-मुलायम उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे. 

राबड़ी देवी का सोशल मीडिया पर पोस्ट
महिला आरक्षण बिल पर बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, महिला आरक्षण के अंदर वंचित, उपेक्षित, खेतिहर एवं मेहनतकश वर्गों की महिलाओं की सीटें आरक्षित हो. मत भूलो, महिलाओं की भी जाति है. अन्य वर्गों की तीसरी/चौथी पीढ़ी की बजाय वंचित वर्गों की महिलाओं की अभी पहली पीढ़ी ही शिक्षित हो रही है इसलिए इनका आरक्षण के अंदर आरक्षण होना अनिवार्य है.

अपने अगले पोस्ट में राबड़ी देवी ने लिखा...महिला आरक्षण विधेयक में जो 33% आरक्षण दिया गया है उसमें SC, ST, OBC महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित नहीं की गयी है. SC/ST वर्गों के लिए जो प्रावधान किया है वह उन वर्गों के लिए पहले से ही आरक्षित सीटों में से SC/ST की महिलाओं को 33% मिलेगा। यानि यहाँ भी SC/ST को धोखा.

बता दें कि नए संसद भवन में मंगलवार 19 सितंबर से कामकाज शुरू हो गया. आज लोकसभा में 128वां संविधान संशोधन बिल यानी 'नारी शक्ति वंदन विधेयक' पेश किया गया. इसके मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेंशन लागू किया जाएगा. इस फॉर्मूले के मुताबिक, लोकसभा की 543 सीटों में 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. महिला आरक्षण बिल कानून का रूप लेने के बाद 2029 के लोकसभा चुनाव या इससे पहले के कुछ विधानसभा चुनावों से लागू हो सकता है.

नवीन कुमार की रिपोर्ट

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