श्रीलंका (Sri Lanka) के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) ने पिछले महीने कहा था कि कर्ज के बोझ तले दबी इस द्विपीय देश की अर्थव्यवस्था (Economy) ढहने की कगार पर है. विदेशी मुद्रा भंडार में नकदी की कमी से ईंधन समेत जरूरी सामानों का आयात नहीं हो पा रहा है. ऐतिहासिक आर्थिक संकट से उबरने के लिए श्रीलंका भारत-चीन जैसे पड़ोसी देशों समेत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मदद ले रहा है. आलम यह है कि श्रीलंका वासी खाद्यान्नों की कमी की वजह से दो वक्त के भोजन तक से मोहताज हैं. ईंधन (Fuel Crisis) की कमी से कई-कई घंटे पंप स्टेशनों पर लाइन में खड़े रहने को मजबूर हैं, तो इसी कारण स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं. कागज तक की कमी से परीक्षाएं टालनी पड़ी हैं. गैसोलिन, दूध और टॉयलेट पेपर तक के आयात के लाले पड़े हैं. इससे गुस्साए आम लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा (Protest) खोल राजनीतिक अस्थिरता का संकट और बढ़ा दिया है.
सरकार विदेशी कर्ज का ब्याज चुकाने तक में नाकाम
एक लिहाज से श्रीलंका दिवालिया होने के कगार पर खड़ा है. सरकार पर 51 बिलियन डॉलर का भारी-भरकम कर्ज है और सरकार इसका ब्याज तक चुकाने में नाकाम है. हालिया आर्थिक संकट से उबरने के लिए श्रीलंका और कर्ज ले रहा है. श्रीलंका के आर्थिक विकास का इंजन पर्यटन छिन्न-भिन्न हो गया है. कोरोना संक्रमण और 2019 के आतंकी हमलों के बाद से पर्यटकों की रुचि श्रीलंका में कम हुई है. श्रीलंका की मुद्रा का 80 फीसदी अवमूल्यन हो चुका है. इस वजह से आयात और महंगा हो गया है. इस वजह से आसमानी छूती महंगाई पर नियंत्रण नहीं लग पा रहा है. खाद्यान्नों की कीमतों में 57 फीसदी का इजाफा हो चुका है. छोटे और मंझोले कारखानों से उत्पादन पर भी नकारात्मक असर पड़ा है. इसका परिणाम यह है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के कगार पर है. करेला वह भी नीम चढ़ा की तर्ज पर श्रीलंका कुकिंग गैस, गैसोलिन और टॉयलेट पेपर तक का आयात नहीं कर पा रहा है.
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भ्रष्टाचार सुरसा के मुंह की तरह फैला
राजनीतिक भ्रष्टाचार भी सुरसा के मुंह की तरह फैला हुआ है. भ्रष्टाचार ने न सिर्फ श्रीलंका की समृद्धि, अर्थव्यवस्था को फिजूलखर्च की राह पर धकेला, बल्कि आर्थिक बचाव के रास्ते को भी और जटिल बना दिया. वॉशिंगटन के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के फैलो अनित मुखर्जी के मुताबिक श्रीलंका आर्थिक संकट से उबरने के लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के सामने हाथ फैला रहा है. हालांकि वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ बेहद कठिन शर्तों पर ऋण देते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पैसों का दुरुपयोग नहीं हो. हालांकि श्रीलंका विश्व के व्यस्ततम समुद्री मार्गों में से एक है. ऐसे में उसे न सिर्फ आर्थिक संकट से उबारा जा सकता है, बल्कि दिवालिया होने का विकल्प हमेशा के लिए समाप्त भी किया जा सकता है.
इस तरह पड़ा आम लोगों पर संकट का असर
उष्णकटिबंधीय देश होने के नाते श्रीलंका में सामान्यतः खाद्यान्न की कमी नहीं होनी चाहिए, फिर भी उसके नागरिक भूखे रहने को मजबूर हैं. संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के आंकड़े बताते हैं कि 10 में 9 श्रीलंकाई परिवार एक समय का भोजन त्याग रहे हैं. 30 लाख श्रीलंकाई लोगों को मानवीय आधार पर खाद्यान्न सहायता उपलब्ध कराई जा रही है. डॉक्टरों तक को दवाओं और उपकरणों की कमी दूर करने के लिए सोशल मीडिया पर गुहार लगानी पड़ रही है. काम की तलाश में विदेश जाने के लिए पासपोर्ट बनवाने की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है. सरकारी कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश में एक अतिरिक्त दिन की छुट्टी तीन महीने के लिए दी जा रही है ताकि वह अपने लिए खाद्यान्न पैदा कर भोजन की समस्या को दूर करने में मदद कर सकें. संक्षेप में कहें तो लोग भयावह त्रासदी से गुजर रहे हैं और सुधार के लिए व्याकुल हैं.
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संकट के लिए घरेलू कारण कहीं जिम्मेदार
अर्थशास्त्रियों की मानें तो ऐतिहासिक आर्थिक संकट के लिए घरेलू कारण कहीं अधिक जिम्मेदार हैं. सालों के कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार ने श्रीलंका को इस संकट में धकेला है. यही वजह है कि आम श्रीलंकाई वासियों का गुस्सा राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और उनके भाई महिंदा राजपक्षे पर फूटा. 2019 में चर्चों में आतंकी हमलों से पर्यटन पर असर पड़ा, जो कि विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा जरिया था. श्रीलंका सरकार ने आय बढ़ाने के प्रयासों पर जोर देने के उलट इतिहास में सबसे बड़ी कर कटौती कर दी. हालांकि कर कटौती को हाल में वापस लिया गया, लेकिन तब तक कर्ज देने वाली संस्थाओं ने श्रीलंका की रेटिंग कम कर दी थी. नतीजतन विदेशी मुद्रा भंडार रसातल में पहुंच गया और रही सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी, जिसने पर्यटन उद्योग को चौपट कर दिया.
खाद्यान्न की कमी भी राजपक्षे की देन
अप्रैल 2021 में राजपक्षे ने रसायनिक उर्वरकों के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया. ऑर्गेनिक फार्मिंग पर रातों-रात जोर दिए जाने से किसान अचंभित थे. इसका सीधा असर चावल की खेती पर पड़ा, जिसकी कीमतें आसमान छूने लगीं. अब विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए लग्जरी वस्तुओं के साथ-साथ जरूरी सामान का आयात भी न्यूनतम कर दिया. इस बीच यूक्रेन युद्ध से खाद्य और ईंधन की कीमतें बढ़ गई. महंगाई दर 40 फीसद के आसपास थी, तो खाद्य वस्तुओं की कीमतों में मई में 60 फीसदी का इजाफा देखा गया. इस समय श्रीलंका के पास 25 मिलिय़न डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जो आयात के लिए नाकाफी था. इस कारण श्रीलंका में रूपए की कीमतों में जबर्दस्त अवमूल्यन हुआ. एक डॉलर 360 श्रीलंकाई रुपए का हो गया. नतीजतन श्रीलंका सात दशकों के ऐतिहासिक आर्थिक और राजनीतिक संकट में फंस कर फिलवक्त अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है.
HIGHLIGHTS
- विदेशी मुद्रा भंडार न होने से जरूरी वस्तुओं के आयात पर असर
- श्रीलंका की मुद्रा का 80 फीसदी अवमूल्यन से महंगाई और बढ़ी