मौजूदा समय में देश में कई मुद्दों पर बहस चल रही है, रामनवमी और हनुमान जयंती के मौके पर दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में हुई हिंसा इन मुद्दों में एक है. यूक्रेन में रूस के तांडव की चर्चा भी देश में गर्म है. महंगाई और बेरोजगारी पर चर्चा शुरू ही होने वाली थी कि मस्जिदों पर लगा लाउडस्पीकर बीच में आ गया. इस चर्चा के सूत्रधार MNS प्रमुख राज ठाकरे हैं. उन्होंने 3 मई तक का अल्टीमेटम दिया है और कहा है कि 3 मई तक हर हाल में महाराष्ट्र के मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतर जाना चाहिए.
महाराष्ट्र में मांग यूपी में एक्शन
MNS प्रमुख राज ठाकरे की इस चेतावनी पर महाराष्ट्र सरकार का क्या टेक होगा यह देखना अभी बाकी ही था, उधर यूपी में चिट्ठी जारी कर दी गई. सीएम योगी आदित्यनाथ ने मंदिरों-मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकरों पर, ध्वनि प्रदूषण कानून के तहत सख्ती के निर्देश दे दिए. अगले दिन अकेले नोएडा में ही, 900 धार्मिक स्थलों को लाउडस्पीकर के लिए नोटिस थमा दिए गए. इधर नोटिस थमाए गए, उधर एक बार फिर एक्टिव हो चुकीं एमपी की पूर्व सीएम उमा भारती ने दना-दन सात ट्वीट कर सीएम योगी की तारीफ कर दी और एमपी में भी ऐसी ही सख्ती की मांग कर दी.
इससे पहले कि आप क्या सही, क्या गलत की बहस में पड़ें. आप के लिए ये रहे कुछ सवाल, कानून की नजर में या कानून के कान से नॉइस क्या है? नॉइस पॉल्यूशन रेगुलेशन एंड कंट्रोल रूल 2000 क्या है और क्या कहता है? लाउडस्पीकर को लेकर क्या नियम हैं और यह हमारे स्वास्थ्य पर कैसे असर करता है?
कानून में ‘नॉइस’ क्या है?
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक, अनवांटेड साउंड नॉइस की कैटेगरी में आता है. उदाहरण के तौर पर म्यूजिक ट्रैक. कुछ लोग जो इसे पसंद करते हैं, उनके लिए यह म्यूजिक है लेकिन जो इससे परेशान होते हैं उनके लिए यह शोर यानी नॉइस है. कोई भी ऐसा साउंड जिसके चलते लोग परेशान हों या जिसके चलते उन्हें तकलीफ हो, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड उसे नॉइस यानी शोर मानता है.
सवाल अब भी वही है कि कुछ लोगों के लिए जो म्यूजिक है, अगर वही दूसरों के लिए शोर है, तो किसे बैन किया जाना चाहिए? क्या किसी को म्यूजिक न सुनने दिया जाए या म्यूजिक के चलते किसी को शोर में रहने को छोड़ दिया जाए? इसी सवाल को सुलझाने के लिए लाया गया, नॉइस पॉल्यूशन रेगुलेशन एंड कंट्रोल रूल 2000.
नॉइस पॉल्यूशन रेगुलेशन एंड कंट्रोल रूल 2000 क्या कहता है?
नॉइस पॉल्यूशन रेगुलेशन एंड कंट्रोल एक्ट 1981 में नॉइस को एयर पॉल्यूशन की कैटेगरी में रखा गया है. साल 2000 के बाद से नॉइस पॉल्यूशन और इसके सोर्सेस को, नॉइस पॉल्यूशन रेगुलेशन एंड कंट्रोल रूल 2000 के तहत रेगुलेट किया जा रहा है. ये रूल्स एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के तहत बनाए गए थे. इस एक्ट में यह बताया गया है कि किस परिवेश में कितना नॉइस लेवल एक्सेप्टेड है. इसमें जगहों को कई जोन में बांटा गया है जैसे- साइलेंस जोन, लाउडस्पीकर रिस्ट्रिक्टेड जोन और इसके अलावा अलग-अलग जगहों के हिसाब से अलग-अलग साउंड लेवल. बनाए गए रूल के तहत कौन सी जगह किस जोन में आएगी, यह तय करने और इस नियम को एनफोर्स यानी लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों को दी गई है.
किस स्तर तक के साउंड को एक्सेप्टेबल नॉइस माना गया है?
नॉइस पॉल्यूशन रूल में, अलग-अलग जोन में एक्सेप्टेबल नॉइस लेवल को डिफाइन किया गया है. इंडस्ट्रियल एरिया में दिन में 75 डेसीबल और रात में 70 डेसीबल तक के साउंड लेवल को एक्सेप्टेबल नॉइस माना गया है. सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक को डे टाइम और रात 10 से लेकर सुबह 6 तक को नाइट टाइम माना गया है.
कमर्शियल एरिया में दिन में 65 डेसीबल और रात में 55 डेसीबल तक के साउंड लेवल को एक्सेप्टेबल नॉइस माना गया है. जबकि, रिहायशी इलाकों में दिन में 55 डेसीबल और रात में 45 डेसीबल तक के साउंड लेवल को एक्सेप्टेबल नॉइस माना गया है.
साइलेंस जोन में दिन में 50 डेसीबल और रात में 40 डेसीबल तक के साउंड लेवल को एक्सेप्टेबल नॉइस माना गया है. हॉस्पिटल, स्कूल/कॉलेज और कोर्ट के 100 मीटर के दायरे में आने वाले एरिया को साइलेंस जोन के तौर पर डिफाइन किया गया है.
कुछ ऐसे इलाके भी होते हैं जो मिक्स कैटेगरी में पड़ते हैं. यानी जो इंडस्ट्रियल, कमर्शियल, रिहायशी और साइलेंस कैटगरी में से, दो या दो से ज्यादा कैटगरी में पड़ते हैं, तो ऐसे इलाकों को कौन से जोन में रखना है, इसकी जिम्मदारी राज्य यानी लोकल अथॉरिटी की है.
लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर क्या कहते हैं नियम?
पब्लिक प्लेस के दायरे में लाउडस्पीकर या किसी भी साउंड सिस्टम के इस्तेमाल के दौरान साउंड लेवल स्टैंडर्ड से 10 डेसीबल से ज्यादा नहीं हो सकता. यानी डे टाइम के लिए अगर किसी जगह का 65 डेसीबल स्टैंडर्ड साउंड लेवल तय किया गया है, तो लाउडस्पीकर या किसी भी बड़े साउंड सिस्टम के इस्तेमाल के दौरान यह 75 डेसीबल से ज्यादा नहीं हो सकता. निर्भर इसपर करता है कि वह एरिया कौन से जोन में आता है और वहां का स्टैंडर्ड साउंड लेवल क्या है, जहां लाउडस्पीकर इस्तेमाल किया जा रहा है. जो उस एरिया का स्टैंडर्ड साउंड लेवल तय किया गया है, लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के दौरान उसे स्टैंडर्ड से 10 डेसीबल से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता.
नियम यह भी कहते हैं कि लाउडस्पीकर या किसी भी पब्लिक एड्रेस साउंड सिस्टम बिना लिखित अनुमति के इस्तेमाल नहीं किए जा सकते. नॉइस पॉल्यूशन रेगुलेशन एंड कंट्रोल रूल 2000 के तहत राज्य सरकारें किसी विशेष अवसर, जैसे- त्योहार और कल्चरल इवेंट के दौरान बगैर अनुमति लाउडस्पीकर या किसी भी पब्लिक एड्रेस साउंड सिस्टम के इस्तेमाल की छूट दे सकती हैं लेकिन इसकी अवधि 15 दिनों से ज्यादा नहीं हो सकती.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा, 12 जून 2020 को फ़ाइल की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, नियमों के अनदेखी करने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
अगर लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस साउंड सिस्टम से जुड़े नियमों को तोड़ा गया तो, 10 हजार के जुर्माने के साथ इक्विपमेंट भी सीज किया जा सकता है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
महाराष्ट्र के स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 2020 की साउंड मॉनिटरिंग रिपोर्ट कहती है कि राज्य में कई जगहों पर नॉइस लेवल बढ़ा है. रिपोर्ट कहती है कि कई जगहों पर स्टैंडर्ड साउंड लेवल के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गई हैं. तेजी से बढ़ रहा ऑटोमोबाइल इसकी सबसे बड़ी वजह है. रिपोर्ट के मुताबिक लोग ट्रैफिक में बेवजह में हॉर्न बजाते हैं और रास्ते में तेज आवाज में गाने सुनते हैं, जिससे पब्लिक प्लेस पर हाई लेवल नॉइस जनरेट होती है.
2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली और मुंबई दुनिया के उन शहरों में से एक हैं, जहां सबसे ज्यादा नॉइस पॉल्यूशन है.
21 और 22 फरवरी 2021 के दौरान, मुंबई के 15 जगहों को मॉनिटर किया गया था, दिन के दौरान सबसे ज्यादा गोरेगांव ईस्ट में स्टैंडर्ड से 77.9 डेसीबल और सांताक्रुज एयरपोर्ट पर स्टैंडर्ड से 76.8 डेसीबल साउंड लेवल रिकॉर्ड किया गया. रात के दौरान सांताक्रुज एयरपोर्ट पर सबसे ज्यादा स्टैंडर्ड से 69.7 डेसीबल और एन्टॉप हिल में स्टैंडर्ड से 65 डेसीबल साउंड लेवल रिकॉर्ड किया गया. रिपोर्ट में किसी मंदिर या मस्जिद का जिक्र नॉइस पॉल्यूशन के प्रमुख वजह के तौर पर नहीं किया गया है.
नॉइस पॉल्यूशन स्वास्थ्य पर कैसे असर डालता है?
नॉइस पॉल्यूशन को उतनी तवज्जो नहीं मिलती जितनी कि वाटर और एयर पॉल्यूशन को मिलती है लेकिन स्वास्थ्य पर इसका असर कम खतरनाक नहीं है. डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया में 12 से 35 साल के 110 करोड़ युवाओं पर, नॉइस पॉल्यूशन के चलते सुनने की क्षमता खो देने का रिस्क है.
डब्ल्यूएचओ कहता है कि, इस बात के पर्याप्त एविडेंस हैं कि रात में होने वाले नॉइस पॉल्यूशन के चलते लोगों को होने वाली स्लीप डिस्टरबेंस, स्लीप डिसऑर्डर जैसी बड़ी स्वास्थय समस्या का रूप ले सकती है. इसके अलावा नॉइस पॉल्यूशन हेडक और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं की वजह भी बन रहा है. अब आप तय करें क्या सही, क्या गलत?
HIGHLIGHTS
- महाराष्ट्र में मांग यूपी में एक्शन, 900 धार्मिक स्थलों को नोटिस
- नॉइस पॉल्यूशन के लिए कितने जिम्मेदार लाउडस्पीकर
Source : Aditya Singh