क्या देश में समय से पहले लोकसभा चुनाव होंगे? पिछले दो दिनों से ये सवाल राजनीतिक गलियारों में घूम रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के एक बयान ने इस आशंका को हवा दी है. दरअसल सोमवार को ममता बनर्जी ने दावा किया कि केंद्र सरकार दिसंबर 2023 में ही चुनाव करा सकती है. ममता बनर्जी ने तो यहां तक दावा कर दिया कि बीजेपी ने चुनाव प्रचार के लिए सारे हेलिकॉप्टर बुक करा लिए हैं. अगले ही दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी ममता बनर्जी के इस दावे पर मुहर लगा दी. नीतीश ने ममता के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार जल्द से जल्द चुनाव करा सकती है, इसलिए विपक्षी दलों का जल्द से जल्द एकजुट होना ज़रूरी है.
ममता बनर्जी और नीतीश कुमार का ये बयान ऐसे वक़्त में आया है कि जब दो दिन बाद मुंबई में विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A की बैठक होने जा रही है. अब जो ममता और नीतीश कह रहे हैं, अगर वो सच हुआ तो फिर विपक्ष की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. तय कार्यक्रम के अनुसार अगले साल अप्रैल-मई के महीने में चुनाव होने हैं. इस लिहाज़ से अभी विपक्षी एकजुटता को बनने और बीजेपी के खिलाफ रणनीति तैयार करने के लिए सात-आठ महीने का समय है, लेकिन, अगर दिसंबर में चुनाव हुए तो फिर विपक्ष के पास सरकार से मुक़ाबले के लिए कोई समय नहीं बचेगा. विपक्ष का प्रधानमंत्री चेहरा तय होना तो दूर अभी तक न कॉमन मिनिमम एजेंडा तैयार हुआ है, न संयोजक चुना गया है. ऐसे में तीन-चार महीने का वक़्त विपक्ष के लिए बहुत कम पड़ जाएगा.
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समय से पहले चुनाव में अटल सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा था
वैसे तो भारत में चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की है. चुनाव आयोग ही चुनाव की तारीख़ और उसका संचालन तय करता है. लेकिन, सरकार के पास ये अधिकार है कि वो चाहे तो तय समय से पहले भी चुनाव की सिफ़ारिश कर सकती है. 1971, 1984 और 2004 में भी समय से पहले लोकसभा के चुनाव हुए थे. पहले दो चुनाव में कांग्रेस ने बंपर सीट से सत्ता में वापसी की, जबकि 2004 में बीजेपी को समय से पहले चुनाव करवाने पर हार का मुंह देखना पड़ा था. अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार ने इंडिया शाइनिंग', 'फील गुड' के नारे और 'भारत उदय' यात्रा के साथ समय से पहले चुनाव करवाने की घोषणा की, लेकिन ये दांव उलटा पड़ गया. 1999 में 182 सीटें पाने वाली बीजेपी इस बार 145 सीटों पर सिमट कर रह गई.
बीजेपी को क्या होगा फायदा
अब सवाल उठता है कि आख़िर बीजेपी को वक़्त से तीन-चार महीने पहले चुनाव कराने से क्या फ़ायदा होगा? बीजेपी अभी सत्ता में है. ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि समय से पहले चुनाव होता है तो बीजेपी के लिए फ़ायदे का सौदा साबित हो सकता है. बीजेपी को ऐसा विश्वास है कि अभी माहौल उसके पक्ष में है और समय से पहले चुनाव हुए तो फ़ायदा ज़्यादा बड़ा हो सकता है. जनवरी में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा भी होनी है, ऐसे में अगर दिसंबर में चुनाव हुए तो बीजेपी को इसका बड़ा माइलेज मिल सकता है. दूसरा दुनिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले भारत की अर्थव्यवस्था अभी बहुत मज़बूत स्थिति में है. प्रधानमंत्री ख़ुद अपने हर भाषण में पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की गारंटी दे रहे हैं. समय से पहले चुनाव हुए तो बीजेपी को इसका बड़ा फ़ायदा मिल सकता है. तीसरा फ़ैक्टर है बीजेपी की लोकप्रियता. 2014 में मोदी लहर चली और पहली बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. 2019 में ऐसा लगा कि पांच साल की सरकार के बाद एंटी इन्कम्बैन्सी का नुक़सान बीजेपी को होगा, लेकिन नतीजे इसके ठीक उलट थे. बीजेपी ने अकेले तीन सौ से ज़्यादा सीटों पर जीत हासिल की. और एक बार फिर 2024 के लिए बीजेपी को वही भरोसा है.
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विपक्ष के पास समय की कमी
इसका एक दूसरा पहलू और भी हो सकता है. समय से पहले चुनाव हुए तो विपक्ष को एकजुट होने और रणनीति बनाने का मौक़ा नहीं मिलेगा. 2024 में बीजेपी को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्ष अभी जो कोशिश कर रहा है, उसे समय से पहले चुनाव होने की स्थिति में बड़ा धक्का लगेगा, क्योंकि अभी भी I.N.D.I.A में बहुत किंतु-परंतु वाली स्थिति है. हालांकि, समय से पहले चुनाव हुए तो बीजेपी के लिए भी बड़ी चुनौती होगी. सबसे बड़ी चुनौती कम समय में अपने चुनाव अभियान को धार देने की होगी. साथ ही वोटर्स के बीच वक़्त से पहले चुनाव का सही मैसेज पहुंचाना भी ज़रूरी होगा.
सरोज कुमार की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau