बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है. किसी भी देश के बच्चे अगर शिक्षित और स्वस्थ्य होंगे तो वह देश उन्नति औऱ प्रगति करेगा. और देश में खुशहाली आयेगी. लेकिन अगर बच्चे बचपन से ही किताबों को छोड़कर कल-कारखनों में काम करने लगेंगे तो देश समाज का भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा. महानगरों और शहरों में कान्वेंट स्कूलों में रंग-बिरंगे यूनिफॉर्म पहन कर हंसते-खिलखिलाते हुए बच्चों को देखकर कौन खुश नहीं होगा. लेकिन ये देश के बच्चों की सही तस्वीर नहीं है. ऐसे बच्चों की संख्या बहुत कम है. देश में आज भी करोड़ों बच्चे स्कूलों की बजाए कल-कारखानों, ढाबों और खतरनाक कहे जाने वाले उद्योगों में कार्य कर रहे हैं. जहां दो पेट के भोजन की शर्त पर उनका बचपन और भविष्य तबाह हो रहा है. सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया भर में बच्चे पढ़ाई छोड़कर काम करने को मजबूर हैं.
भारत की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं. इन बालश्रमिकों में से 19 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं, ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में तथा कृषि क्षेत्र से लगभग 80 प्रतिशत जुड़े हुए हैं. शेष अन्य क्षेत्रों में, बच्चों के अभिभावक ही बहुत थोड़े पैसों में उनको ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो अपनी व्यवस्था के अनुसार उनको होटलों, कोठियों तथा अन्य कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं. उनके नियोक्ता बच्चों को थोड़ा सा खाना देकर मनमाना काम कराते हैं. 18 घंटे या उससे भी अधिक काम करना, आधे पेट भोजन और मनमाफ़िक काम न होने पर पिटाई यही उनका जीवन बन जाता है.
केवल घर का काम नहीं इन बालश्रमिकों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना, खेतों में काम करना, कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट उद्योग, दवा उद्योग में तथा होटलों व ढाबों में झूठे बर्तन धोना आदि सभी काम मालिक की मर्ज़ी के अनुसार करने होते हैं. इन समस्त कार्यों के अतिरिक्त कूड़ा बीनना, पोलीथिन की गंदी थैलियां चुनना, आदि अनेक कार्य हैं जहां ये बच्चे अपने बचपन को नहीं जीते, नरक भुगतते हैं परिवार का पेट पालते हैं.
ऐसे बाल श्रमिकों से सम्बंधित एक अन्य समस्या है, बहुत बार इन बच्चों को तस्करी आदि कार्यों में भी लगा दिया जाता है. मादक द्रव्यों की तस्करी में व अन्य ऐसे ही कार्यों में इनको संलिप्त कर इनकी विवशता का लाभ उठाया जाता है. बच्चों को मुस्लिम देशों में बेच देने की घटनाएं भी होती हैं.
हर साल दुनियाभर में 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) के रूप में मनाया जाता है. 19 साल पहले इसकी शुरूआत अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बाल श्रम को रोकने के लिए की गई थी. इस दिन को मनाए जाने का उद्देश्य बच्चों से मजदूरी ना कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने और आगे बढ़ाने के लिए जागरूक करना है.लेकिन कोरोना काल के दौरान 2021 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 16 करोड़ बच्चे बाल श्रम की चपेट में हैं.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि मौजूदा महामारी की वजह से लाखों बच्चों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है. सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों के साथ-साथ दुनियाभर में लाखों लोगों को हर साल बाल श्रमिक को रोकने के लिए जागरूक किया जाता है, फिर इनकी तादाद बढ़ती जा रही है. बच्चों की मदद के लिए कई कैंपेन भी चलाए जाते हैं. कई बच्चे ऐसे हैं जो बहुत छोटी उम्र में अपना बचपन खो देते हैं.
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस से पहले बचपन बचाओ आंदोलन और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन (केएससीएफ) ने बाल मजदूरों को मुक्त कराने और उनके पुनर्वास के लिए विशेष नीति बनाने का आह्वान किया है. साथ ही विशेष नीति के तहत ऐसे बाल मजदूरों के लिए आवासीय स्कूल स्थापित करने और बाल कल्याण योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन को बढ़ाने की भी मांग की गई.
भारत के संविधान में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम
भारत में बालश्रम की समस्या दशकों से प्रचलित है. भारत सरकार ने बालश्रम की समस्या को समाप्त क़दम उठाए हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है. भारत की केंद्र सरकार ने 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित कर दिया. इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई. इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है. 1987 में, राष्ट्रीय बालश्रम नीति बनाई गई थी.
हर साल रखी जाती है अलग थीम
आईएलओ ने बाल श्रम की वैश्विक सीमा और इसे खत्म करने के लिए आवश्यक कार्रवाई और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 2002 में बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस की शुरूआत की थी. विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर हर साल नई थीम रखी जाती है. 2021 में इसकी थीम 'कोरोना वायरस के दौर में बच्चों को बचाना' रखी गई थी. 2020 में 'बच्चों को कोविड-19 महामारी' और 2019 में 'बच्चों को खेतों में काम नहीं, बल्कि सपनों पर काम करना चाहिए' थी.
152 मिलियन बच्चे करते हैं मजदूरी
कोरोना महामारी के कारण कई देशों में लॉकडाउन की स्थिति उत्पन्न हुई. इससे बहुत लोगों की जिंदगी पर असल पड़ा और इस वजह से काफी बच्चों की जिंदगी भी प्रभावित हुई.ऐसी स्थिति में बहुत बच्चों को बाल श्रम में धकेला गया. ILO की एक रिपोर्ट के अनुसार, 152 मिलियन बच्चे मजदूरी करते हैं, जिसमें से 73 मिलियन बच्चे खतरनाक काम करते हैं. इनमें निर्माण कार्य, खेती, माइंस और फैक्ट्रियों में काम करते हैं.
Source : Pradeep Singh