साल 2023 के पहले दिन के आगाज के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स (Millets) वर्ष आधिकारिक रूप से शुरू हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की पहल पर भारत ने 2023 को इंटरनेशनल इयर ऑफ मिलेट्स घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में प्रस्ताव पेश किया था, जिसका 72 देशों ने समर्थन किया. इसके बाद 2021 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) महासभा ने 2023 को मिलेट्स का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित कर दिया. जनवरी में खेल और युवा मामलों के मंत्रालय समेत छत्तीसगढ़, मिजोरम और राजस्थान इंटरनेशनल मिलेट्स वर्ष से संबंधित कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन प्रमुखता से करेंगे. गौरतलब है कि भारत ने मिलेट्स की महत्ता को पहचान दिलाने के लिए सतत् प्रयास किए. लोगों को मिलेट्स के रूप में पौष्टिक भोजन प्रदान करने के साथ-साथ इसकी घरेलू और वैश्विक मांग बनाने पर भी जोर दिया.
मिलेट्स होते क्या हैं
छोटे बीज वाली घासनुमा फसलों को वर्गीकृत करने के लिए मिलेट्स एक सामान्य शब्द है, मिलेट्स को अक्सर पोषक अनाज भी कहा जाता है. ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, काकुन, चीना, सावा और कोडोन मिलेट्स में आते हैं. उप-सहारा के अफ्रीकी देशों समेत एशिया के शुष्क भूमि पर उगाई जाने वाले मिलेट्स फसल लाखों लोगों के लिए आहार का मुख्य अनाज होने के साथ-साथ आजीविका का साधन भी है. मिलेट्स पोषण देने के साथ-साथ किसानों को आय और आजीविका प्रदान करते हैं. भोजन के अलावा मिलेट्स बतौर चारा, जैव ईंधन और शराब बनाने के काम भी आते हैं.
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मिलेट्स का महत्व और फायदे
मिलेट्स उच्च प्रोटीन स्तर और कहीं बेहतर संतुलित अमीनो एसिड गुण के कारण पौषण के मामले में गेहूं और चावल से बेहतर हैं. मिलेट्स में विभिन्न फाइटोकेमिकल्स भी होते हैं जो चिकित्सकीय गुणों को बढ़ावा देते हैं. खासकर एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेटिव गुणों के कारण. इसके अलावा जलवायु के अनुकूल होने के साथ-साथ मिलेट्स कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर और अच्छी गुणवत्ता वाले वसा से भी भरपूर होते हैं. मिलेट्स में कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, लोहा, मैंगनीज, जस्ता और बी कॉम्प्लेक्स विटामिन जैसे मिनरल्स भी भरपूर मात्रा में होते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मिलेट्स की फसल रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर नहीं है.
भारत में मिलेट्स की पृष्ठभूमि
भारत में मिलेट्स पारंपरिक रूप से भोजन का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन 1960 के दशक में हरित क्रांति के जरिये खाद्य सुरक्षा पर दिए गए जोर से मिलेट्स कम खाए जाने लगे और लगभग भुला दिए गए. हरित क्रांति से पहले मिलेट्स का कुल खेती वाले अनाज में हिस्सा लगभग 40 प्रतिशत था, जो पिछले कुछ वर्षों में घटकर लगभग 20 प्रतिशत ही रह गया है. न सिर्फ मिलेट्स की खपत में कमी आई है, बल्कि इनकी फसलों का स्थान व्यावसायिक फसलों, तिलहन, दालों और मक्का ने ले लिया है. ये वाणिज्यिक फसलें लाभदायक हैं, जिनके उत्पादन को सब्सिडी, प्रोत्साहन खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करने के रूप में प्रोत्साहित भी किया गया. इसके परिणामस्वरूप आहार पैटर्न में बदलाव आया है, जिसमें कैलोरी से भरपूर अनाज को प्राथमिकता दी गई. भारत 170 लाख टन से अधिक मिलेट्स का उत्पादन करता है, जो एशिया का 80 प्रतिशत और वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत है. भारत में सभी नौ ज्ञात मिलेट्स की फसलें होती हैं और दुनिया में मिलेट्स का सबसे बड़ा उत्पादक और पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक देश है. भारत के अधिकांश राज्य एक या एक से अधिक मिलेट्स फसल उगाते हैं. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरीखे राज्य मिलेट्स के प्रमुख उत्पादक हैं.
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भारत का मिलेट्स व्यापार
भारत ने 2021-22 के दौरान 34.32 मिलियन डॉलर के मिलेट्स का निर्यात किया. 2020-21 में 26.97 मिलियन, तो 20219-20 में 28.5 मिलियन डॉलर के मिलेट्स का निर्यात किया. भारत के प्रमुख मिलेट्स निर्यातक देश संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, सऊदी अरब, लीबिया, ओमान, मिस्र, ट्यूनीशिया, यमन, ब्रिटेन और अमेरिका हैं. दुनिया में मिलेट्स आयात करने वाले प्रमुख देश इंडोनेशिया, बेल्जियम, जापान, जर्मनी, मैक्सिको, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील और नीदरलैंड हैं.
एमएसपी भी अच्छी
आंकड़ों के मुताबिक ज्वार, बाजरा और रागी का न्यूनतम समर्थन मूल्य 73 फीसदी, 65 फीसदी और 88 फीसदी बढ़कर क्रमश: 2,990 रुपये, 2,350 रुपये और 3,578 रुपये हो गया है.
HIGHLIGHTS
- 2021 में अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष का प्रस्ताव यूएनजीए में पेश किया गया
- भारत की पहल पर 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स साल घोषित किया गया
- ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, काकुन, चीना, सावा और कोडोन मिलेट्स हैं