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5 दशकों तक वामपंथी राजनीति की धुरी रहे Sitaram Yechury , जानें भारतीय राजनीति में कैसे छोड़ी अमिट छाप!

Sitaram Yechury Passes Away: CPI (M) महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. आइए जानते हैं कि उन्होंने भारतीय राजनीति में कैसे अमिट छाप छोड़ी.

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Ajay Bhartia
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Sitaram Yechuri News

सीताराम येचुरी

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Sitaram Yechury Passes Away: कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी का आज यानी गुरुवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वह 72 वर्ष के थे. दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे सीताराम येचुरी ने 5 दशकों तक वामपंथी राजनीति की धुरी रहे. उन्होंने अपना पूरा जीवन साम्यवाद के आदर्शों के प्रति समर्पित कर दिया. आइए जानते हैं कि उन्होंने भारतीय राजनीति में कैसे अमिट छाप छोड़ी.

वामपंथी राजनीति के थे बड़े चेहरे

सीताराम येचुरी वामपंथी राजनीति के बड़े चेहरे थे. वह एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने जीवनभर एक कॉमरेड की भूमिका निभाई थी. उन्होंने जीवनभर सीपीआई (एम) के कैडर को मजबूती देने और उसमें रिफॉर्म लाने की दिशा में निरंतर काम किया. येचुरी तेलुगु भाषी राज्य तमिलनाडु से थे, लेकिन उन्होंने उस पार्टी की कमान संभाली जो पश्चिम बंगाल, केरल और उस वक्त त्रिपुरा में भी एक्टिव थी. उन्होंने सीपीएम के उत्थान में बड़ी भूमिका निभाई.

‘राष्ट्रीय राजनीति के लिए बड़ी क्षति’

सीताराम येचुरी के निधन को देश की राजनीति के लिए बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है. लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है. राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, ‘सीताराम येचुरी जी मेरे मित्र थे. भारत के विचार के रक्षक और हमारे देश की गहरी समझ रखने वाले. मुझे हमारी लंबी चर्चाएं याद आएंगी. दुख की इस घड़ी में उनके परिवार, मित्रों और अनुयायियों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना.’

वहीं, सीएम ममता ने सीताराम येचुरी के निधन को राजनीति के लिए क्षति बताया. उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘यह जानकर दुख हुआ कि सीताराम येचुरी का निधन हो गया है. मैं जानता था कि वे एक अनुभवी सांसद थे और उनका निधन राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक क्षति है. मैं उनके परिवार, मित्रों और सहकर्मियों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करती हूं.’

1974 में SFI से जुड़े थे येचुरी

12 अगस्त 1952 को तमिलनाडु में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे सीताराम येचुरी बचपन से पढ़ाई लिखाई में तेज थे. उन्होंने हैदराबाद में शुरुआती पढ़ाई पूरी. 1970 में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन और फिर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से अर्थशास्त्र में ही पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इस दौरान वामपंथी राजनीति की ओर उनका झुकाव था. 1974 में वे भारतीय छात्र संघ यानी स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) ये जुड़े. बता दें कि SFI एक वामपंथी छात्र संगठन है. इसकी स्थापना 30 दिसंबर, 1970 को हुई थी. 

इमरजेंसी के दौरान गए थे जेल

SFI के साथ जुड़ने के बाद देखते ही देखते वामपंथी राजनीति में सीताराम येचुरी का कद बढ़त चला गया. 1975 में वो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने. यही वो समय था जब देश में इमरजेंसी लागू की गई. प्रेस पर पाबंदी से लेकर देश में तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए थे. तब सीताराम येचुरी ने बड़े प्रखर होते हुए इमरजेंसी के विरोध में आवाज बुलंद की. हालांकि उनको इसके लिए जेल भी जाना पड़ा था. साथ कुछ समय के लिए उनको अंडरग्राउंड भी होना पड़ा था.

कुलाधिपति को देना पड़ा इस्तीफा

इसके बाद येचुरी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1977-78 के दौरान उनको जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ का अध्यक्ष चुना गया. इस दौरान उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के आवास तक छात्रों के मार्च का नेतृत्व किया था. उनके बगल में खड़े होकर येचुरी ने यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के पद से उनके इस्तीफे की मांग करते हुए एक ज्ञापन पढ़ा. आखिरकार कुलाधिपति को इस्तीफा से देना पड़ा था.

इसके बाद का उनका राजनीतिक सफर

  • 1978 में स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया का अखिल भारतीय महासचिव चुना गया. 1986 में उन्होंने अध्यक्ष के तौर स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया को छोड़ने का फैसला लिया.
  • 1984 में येचुरी को सीपीआई (एम) की सेंट्रल कमेटी की बैठक में पहली बार निमंत्रित किया गया. 
  • 1985 में सीपीआई (एम) के बारहवें अधिवेशन में सीताराम येचुरी को सेंट्रल कमेटी में शामिल किया गया.
  • 1992 में सीताराम येचुरी को पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया. इसके बाद वे पार्टी के इंटरनेशनल विंग के हेड रहे. 
  • 2005 में येचुरी पहली बार पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के सदस्य के तौर पर चुने गए. इसके बाद वे कई संसदीय समितियों में शामिल रहे हैं. 
  • 2015 उनको प्रकाश करात की जगह सीपीआई (एम) के महासचिव बनाया गया. 
  • 2016 में वो राज्यसभा में सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार से सम्मानित किए गए थे.

सीताराम येजुरी जमीन से जुड़े नेता थे. बीते कुछ सालों में देश में सीपीएम की राजनीति के ग्राफ में लगातार गिरावट आई थी, लेकिन इस दौर में सीताराम येचुरी ने पार्टी को साधने के अहम काम किया. आज जो युवा सीपीआई (एम) के साथ जुड़ पा रहे हैं. उसमें कहीं न कहीं येचुरी का बड़ा योगदान है. भारतीय राजनीति में उनके योगदान को किसी भी तरह से भूलाया नहीं जा सकता है.

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