First Day Night Test Match of India : भारत और बांग्लादेश शुक्रवार से अपना पहला दिन-रात का टेस्ट मैच कोलकाता के ईडन गार्डंस स्टेडियम में खेलेंगी. दिन-रात टेस्ट प्रारूप नया है और इसे इसलिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में इसलिए लाया गया है, ताकि खेल के लंबे प्रारूप की गिरती हुई साख को दोबारा स्थापित किया जा सके और दर्शकों को मैदान पर खींचा जा सके. आमतौर पर दिन में खेले जाने वाले टेस्ट मैच में लाल गेंद का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन दिन-रात टेस्ट मैच में गुलाबी गेंद का इस्तेमाल किया जाता है.
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जब दिन-रात टेस्ट मैच की बात चली तो सवाल यह था कि इसमें किस रंग की गेंद का इस्तेमाल किया जाए? लाल गेंद इस्तेमाल इसलिए नहीं की जा सकती थी, क्योंकि इसका रंग अंधेरा में बल्लेबाजों के लिए परेशानी पैदा करता है. वनडे और टी-20 क्रिकेट भी दिन-रात में खेली जाती है और वहां सफेद गेंद का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन लाल गेंद की अपेक्षा सफेद गेंद ज्यादा देर तक टिकती नहीं है. साथ ही टेस्ट में खिलाड़ियों के कपड़े भी सफेद होते हैं इसलिए सफेद गेंद का इस्तेमाल नहीं किया जा सका.
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काफी सोचने के बाद गुलाबी गेंद पर अंतिम फैसला किया गया, जिसका कारण गेंद की ड्यूरेबिलिटी और विजीविलिटी है. गुलाबी गेंद लाल गेंद से कुछ मायनों में भिन्न है जो इसकी बनावट से लेकर चमक तक दिखाई पड़ता है. लाल गेंद को चमकाने के लिए वैक्स का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन गुलाबी गेंद में वैक्स की जगह पोलिश का इस्तेमाल किया जाता है. गेंद बनाने वाले कंपनी एसजी के मार्केटिंग डायरेक्टर पारस आनंद से जब आईएएनएस ने गुलाबी गेंद पर वैक्स की जगह पोलिश का इस्तेमाल करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा, वैक्स का इस्तेमाल गुलाबी गेंद में नहीं होता, क्योंकि अगर वैक्स कर देंगे तो गेंद काली पड़ जाएगी, यह प्रक्रिया ही अलग हो जाएगी इसलिए इसमें पोलिश का इस्तेमाल किया जाता है.
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भारत और बांग्लादेश के बीच खेले जाने वाले टेस्ट में 'एसजी टेस्ट' गेंद का इस्तेमाल होगा. दोनों गेंदों में अंतर क्या है इस सवाल पर पारस ने कहा, लाल गेंद और गुलाबी गेंद में एक बड़ा अंतर यह होता है कि गुलाबी गेंद में रंग की एक अतिरिक्त लेयर होती है. लाल गेंद में आप डाय करते हैं और रंग मिल जाता है लेकिन गुलाबी गेंद में एक प्रक्रिया होती है जिसमें आप लेयर बाय लेयर इसे बनाते हैं. यह दोनों गेंदों में एक बड़ा अंतर है और इसी के कारण गुलाबी गेंद में शुरुआत में ज्यादा चमक होती है जो 5-10 ओवर ज्यादा गेंद पर रहती है. और इसी कारण यह थोड़ा ज्यादा स्विंग करेगी.
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टेस्ट में रिवर्स स्विंग बड़ा रोल निभाती है. तेज गेंदबाज रिवर्स स्विंग के दम पर विकेट निकालते हैं, लेकिन रिवर्स स्विंग कराने के लिए गेंद को बनाना पड़ता है. गेंद को बनाने का मतलब है कि उसकी एक सतह को भारी करना है. गुलाबी गेंद को बनाना थोड़ा मुश्किल साबित होगा? इस पर पारस ने कहा, लाल गेंद में ज्यादा कोट (लेयर) नहीं होता, इसलिए उसे एक तरफ से शाइन करना ज्यादा आसान होता है. गुलाबी गेंद में एक लेयर ज्यादा है तो गेंद को बनाने में ज्यादा मेहनत और समय लगेगा. गेंद को एक तरफ से बनाना गुलाबी गेंद में यह प्रक्रिया थोड़ी लंबी होगी। इसमें थोड़ा समय लगेगा.
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उन्होंने कहा, रिवर्स स्विंग के लिए काफी चीजें भी मायने रखती हैं सिर्फ गेंद ही नहीं. मैदान, पिच काफी चीजें हैं जो रिवर्स स्विंग पर असर डालती हैं. गुलाबी गेंद जब प्रयोग के दौर में थी तब इसकी सीम को लेकर भी कई रंग आजमाए गए. लाल गेंद में सफेद रंग की सीम का उपयोग किया जाता है, लेकिन गुलाबी गेंद में यह कारगर नहीं रही थी और इसके बाद हरे रंग की सीम इस्तेमाल की गई, लेकिन अब गुलाबी गेंद में काले रंग की सीम का इस्तेमाल किया जा रहा है.
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इस पर पारस कहते हैं, इसके पीछे साइंस सिर्फ यही है कि गुलाबी रंग पर काला रंग ज्यादा उभर रहा था और बाकी के रंग उतना ज्यादा नहीं उभर रहे थे इसलिए विजिबिलिटी के हिसाब से यह सही था इसलिए काले रंग की सीम का इस्तेमाल किया गया. लाल गेंद की अपेक्षा गुलाबी गेंद की सीम उभरी हुई होगी. यह सिर्फ तेज गेंदबाजों के लिए मदददार नहीं होगी बल्कि स्पिनर भी इसका फायदा उठा सकते हैं. पारस के मुताबिक, उभरी हुई सीम से स्पिनरों को भी फायदा होगा क्योंकि वह इसे अच्छे से ग्रिप कर सकेंगे और इससे उन्हें ज्यादा रेवेल्यूशन मिलेगा जिससे स्पिनरों को टर्न करने में सफलता मिलेगी ही मिलेगी. पारस कहते हैं कि यह एसजी के लिए भी बड़ी परीक्षा है. उन्होंने कहा कि वह मैच के बाद गेंद की गुणवत्ता पर फीडबैक का इंतजार करेंगे ताकि अगर कोई कमी सामने आए तो भविष्य में उसे सुधारा जा सके.
Source : आईएएनएस