चयनकर्ताओं की ओर से पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को वेस्टइंडीज के खिलाफ मौजूदा और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ T-20 श्रृंखलाओं से बाहर करने के फैसले ने कयासों का दौर शुरु कर दिया है. शुक्रवार देर को रात लिये गए इस फैसले से जहां T20 फॉर्मेट में धोनी के करियर को समाप्त माना जा रहा है वहीं अपने पूरे करियर में पहली बार टीम सेलेक्शन से बाहर हुए धोनी के लिए यह करियर के अंत की शुरुआत माना जा रहा है.
महेंद्र सिंह धोनी की गिनती उन नायाब खिलाड़ियों में से एक है जिन्होंने अपनी किस्मत अपनी मेहनत के दम पर खुद लिखा है, लेकिन चयनकर्ताओं के इस फैसले से उनका अगले साल इंग्लैंड में होने वाले विश्व कप 2019 तक खेल पाना आसान नहीं लग रहा है.
चयनकर्ताओं का यह फैसला काफी चौकाने वाला था हालांकि सवाल यह है कि आगामी श्रृंखलाओं के लिए महेंद्र सिंह धोनी का टीम में चयन न होने के पीछे असली कारण क्या है? धोनी की खराब फॉर्म या मुख्य चयनकर्ता एम एसके प्रसाद की ओर से की गई कोई बदले की कार्रवाई.
दरअसल यह बात किसी से छिपी हुई नहीं रह गई है कि चयनकर्ताओं और खिलाड़ियों के बीच संवादहीनता की समस्या चल रही है. इसको लेकर हाल के कुछ समय में कई खिलाड़ियों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है.
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वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज में करुण नायर और मुरली विजय ने चयन न होने पर कहा था कि इसको लेकर चयनकर्ताओं ने उनसे बात नहीं की.
इसी दौरान विजय हजारे ट्रॉफी के सेमीफाइनल के लिए मुख्य चयनकर्ता एमएसके प्रसाद ने धोनी के खेलने की घोषणा करते हुए कहा कि वह झारखंड की टीम से खेलेंगे. हालांकि धोनी ने कुछ घंटे बाद ही यह साफ कर दिया कि वह विजय हजारे ट्रॉफी के सेमाफाइनल में नहीं खेलेंगे.
धोनी ने टीम कॉम्बिनेशन में छेड़छाड़ से इंकार करते हुए खेलने से इंकार कर दिया, जिसके बाद एमएसके प्रसाद को काफी किरकिरी का सामना करना पड़ा.
प्रसाद और धोनी के बीच हुए इस विवाद ने एक बार फिर खिलाड़ियों और चयनकर्ताओं के बीच संवादहीनता के मुद्दे को गर्म कर दिया. वहीं जब वेस्टइंडीज के खिलाफ बाकी बचे 3 वनडे मैचों के लिए टीम का चयन हुआ तो लिस्ट से नदारद केदार जाधव ने उनके चयन को लेकर किसी तरह की जानकारी दी गई.
इन दोनों मामलों के चलते मुख्य चयनकर्ता एमएसके प्रसाद को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.
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संभवतः जब एमएसके प्रसाद को वेस्टइंडीज के खिलाफ मौजूदा और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ T-20 श्रृंखलाओं के लिए टीम का चुनाव करने की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने विजय हजारे सेमीफाइनल में उनके इंकार का बदला ले लिया हो.
हालांकि उन्हें T-20 टीम में न चुनने को लेकर बीसीसीआई के एक अधिकारी ने सफाई देते हुए कहा कि 2020 के दौरान ऑस्ट्रेलिया में होने वाले T-20 विश्व कप को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है.
उन्होंने कहा कि यह लगभग तय है कि वह 2020 के T20 विश्व कप में हिस्सा नहीं लेंगे तो ऐसे में उन्हें टीम में बनाए रखने से क्या फायदा होगा. वहीं हमारे पास उनकी जगह एक ऐसे खिलाड़ी को ढूंढने की जिम्मेदारी है जो न सिर्फ मध्यक्रम को मजबूती दे बल्कि विकेटकीपिंग में भी माहिर हो.
गौरतलब है कि महेंद्र सिंह धोनी ने अपने करियर की शुरुआत 2004 में बांग्लादेश की खिलाफ की थी. 2007 में उन्होंने भारतीय टीम का नेतृत्व करते हुए साउथ अफ्रीका में खेले गए पहले विश्व कप में जीत हासिल की थी, जिसके बाद से यह पहली बार हुआ है कि उन्हें टीम में नहीं चुना गया है.
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बता दें कि भारत की टी-20 टीम से बाहर होने के बाद संभवत: 2019 की वर्ल्ड कप आखिरी मौका होगा जब कभी ‘कैप्टन कूल’ को हम टीम इंडिया की जर्सी में देखेंगे.
हालांकि साल 2018 में ODI की तुलना में धोनी का प्रदर्शन T20 में ज्यादा बेहतर रहा है. धोनी ने 2018 में 7 टी-20 मैच खेले हैं जिसमें उनकी सर्वश्रेष्ठ पारी साउथ अफ्रीका के खिलाफ 28 गेंद में नाबाद 52 रन की रही. बाकी 6 पारियों में उन्होंने 51 गेंद में 71 रन बनाए.
भले ही विश्व कप उनका आखिरी टूर्नामेंट होगा लेकिन वेस्ट इंडीज के खिलाफ सीरीज के बाद धोनी को घरेलू वनडे मैचों में भी खेलने का मौका नहीं मिल पाएगा क्योंकि देवधर और विजय हजारे ट्रॉफी टूर्नामेंट भी खत्म हो चुका है. ऐसे में उनका ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ होने वाली आगामी सीरीज में चुना जाना बेहद जरूरी हो जाता है.
Source : Vineet Kumar