भारत में घरेलू क्रिकेट में जो टीमें हमेशा अपने दबदबे के लिए मशहूर रहीं उनमें मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु का नाम हमेशा ऊपर रहा है, लेकिन बीते दो साल में विदर्भ ने सभी धारणाओं को परे रखते हुए वह कर दिखाया है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. यह टीम 2017-18 में अपना पहला रणजी ट्रॉफी और ईरानी कप खिताब जीतने में सफल रही तो वहीं इस सीजन में बड़ी सफलता से टीम अपने दोनों खिताब बचा भी ले गई. बता दें कि गणेश सतीश (87) और अथर्व टाइडे (72) के अर्धशतकों की मदद से रणजी चैम्पियन विदर्भ ने शेष भारत एकादश को पहली पारी में मिली बढ़त के आधार पर हराकर शनिवार को ईरानी कप का खिताब लगातार दूसरी बार अपने नाम कर लिया.
विदर्भ के कप्तान फैज फजल ने जीत पर मिलने वाली 10 लाख रुपए की रकम को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए CRPF जवानों के परिवारों को समर्पित करने का फैसला लिया है.
विदर्भ की पहले सीजन में हासिल की गई खिताबी जीत को कई लोगों ने तुक्का बताया, तो विदर्भ ने इस सीजन खिताब जीत उन बयानों को अच्छे से मुंह चिढ़ाया. इस जीत के कई नायक रहे. एक टीम जब जीतती है तो कोई एक शख्स उसकी वजह नहीं होता बल्कि पूरे कोचिंग स्टाफ से लेकर मैदान के अंदर खेलने वाले खिलाड़ियों के अलावा मैदान के बाहर रहने वाले खिलाड़ियों का भी बड़ा योगदान रहता है और विदर्भ की दो साल में चार खिताबी जीत इस बात की बानगी है.
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कई लोगों के लिए यह सोचने का विषय हो सकता है कि जो विदर्भ नॉकआउट दौर तक ही रह जाती थी, वह चार खिताब कैसे ले गई. लेकिन इसके पीछे उसके खिलाड़ियों की अथक मेहनत है, जिसे साफ तौर पर देखा जा सकता है. इसकी एक और बड़ी वजह हैं, विदर्भ के मुम्बइया कोच चंद्रकांत पंडित.
भारत के लिए पांच टेस्ट और 36 वनडे खेलने वाला यह खिलाड़ी 2017-18 सीजन में टीम का कोच बना और अपने पहले ही कार्यकाल में विदर्भ को पहली बार रणजी ट्रॉफी विजेता बना दिया. पंडित को क्रिकेट की दुनिया में खडूस कहा जाता है. इसके पीछे वजह उनकी कोचिंग स्टाइल है. वह गेंदबाजों को अभ्यास में नो बॉल फेंकने की सजा 500 रुपये जुर्माने के तौर पर देते हैं तो खिलाड़ी से निजी तौर पर बात कर उसका आत्मविश्वास भी बढ़ाते हैं.
पंडित जब नागपुर आए थे, मुंबई को रणजी ट्रॉफी विजेता बनाकर आए थे. भारत की सबसे सफल घरेलू टीम के बाद पंडित ने विदर्भ में उस जीत के जज्बे को जेहन में डाला. पंडित के आने के बाद विदर्भ बदल चुकी थी.
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इस सीजन रणजी ट्रॉफी के फाइनल में विदर्भ की जीत का अहम हिस्सा रहने वाले आदित्य सरवाटे ने बताया कि हमने हर मैच को करो या मरो की तरह लिया. यही हमारा दो सीजनों में प्लस प्वाइंट रहा. चंदू सर जो हमारे कोच हैं. उनका जो एप्रोच है वह कारगर है क्योंकि वह किसी भी टीम को हल्के में नहीं लेते.
सरवाटे के मुताबिक, कोच के ही सिखाए रास्तों पर चलने का नतीजा है कि विदर्भ दो साल में चार खिताब जीतने में सफल रहा है.
सिर्फ पंडित ही नहीं. विदर्भ की जीत के कई हीरो रहे. उनमें एक और नाम मुंबई से ही इस टीम में आए घरेलू क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी वसीम जाफर का है. भारतीय टेस्ट टीम का हिस्सा रह चुके जाफर 2015-16 में विदर्भ से जुड़े. जाफर मुंबई के साथ रहते हुए रणजी ट्रॉफी का खिताब जीत चुके थे. उनके पास बड़े मैचों का अच्छा-खासा अनुभव था, जो विदर्भ के काम आया.
जरूरत पड़ने पर जाफर ने न सिर्फ बल्ले से बेहतरीन योगदान दिया बल्कि रणनीति में भी वह हमेशा टीम की थिंक टैंक का अहम हिस्सा रहे. इस रणजी सीजन में जाफर ने 15 पारियों में 1037 रन बनाए. वह हालांकि ईरानी कप में नहीं खेले, लेकिन जाफर ने पर्दे के पीछे मेंटॉर के रूप में जो काम किया है वह किसी से छुपा नहीं है.
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क्रिकेट जैसे खेल में किसी भी टीम की सफलता उसके कप्तान के इर्द-गिर्द ही घूमती है. फैज फजल कप्तान के रूप में विदर्भ के सबसे सफल कप्तान रहे हैं. उन्हीं की कप्तानी में विदर्भ ने यह सभी खिताब जीते. मैदान पर सफल रणनीतिकार से लेकर सलामी बल्लेबाज के तौर पर टीम को मजबूत शुरुआत देने की दोनों जिम्मेदारियों को फैज ने बखूबी निभाया. सरवाटे भी मानते हैं कि जाफर और फैज के रहने से टीम का बल्लेबाजी क्रम बेहद मजबूत रहा जिससे टीम को बेहद फायदा हुआ.
सरवाटे ने बताया कि वसीम भाई तो लीजेंड हैं। उनका टीम में रहना ही बड़ी बात है. फैज भाई लगातार टीम के लिए अच्छा कर रहे हैं. हमारी बल्लेबाजी इनके रहने से काफी मजबूत है. सफलता का काफी हद तक श्रेय वसीम भाई और फैज भाई को जाता है.
सही मायने में टीम की सफलता इन तीनों के ही इर्द गिर्द घूमती है. इन तीनों की तिगड़ी ने विदर्भ को एक आम टीम से विजेता में तब्दील किया और वह दिग्गजों की परछाई से निकलकर खुद घरेलू क्रिकेट की दिग्गज टीम बन गई.
पंडित, जाफर और फजल ने टीम में जीत की भूख पैदा की और खिलाड़ियों को जीतने का आत्मविश्वास दिलाया. दोनों सीजनों में टीम लगभग एक जैसी थी लेकिन हर जीत के हीरो अलग-अलग थे. इससे साबित होता है कि विदर्भ चुनिंदा खिलाड़ियों के बूते सफलता हासिल करने वाली टीम नहीं हैं.
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बीते सीजन बल्ले से फैज और जाफर के अलावा अक्षय वाडकर ने कमाल दिखाया था तो वहीं गेंद से रजनीश गुरबानी ने टीम को सफलता दिलाई थी. इन दोनों ने इस सीजन में भी अच्छा प्रदर्शन किया और टीम को एक बार फिर खिताब तक लेकर आए.
इस सीजन में कहानी बदली और आदित्य सरवाटे, अक्षय कारनेवार जैसे खिलाड़ी निकल कर सामने आए जिन्होंने विदर्भ को दोनों खिताब बचाए रखने में मदद की. इस फेहरिस्त में अक्षय वघारे, गणेश सतीश, उमेश यादव जैसे नाम भी हैं.
इस सीजन की बात की जाए तो विदर्भ ने शुरुआती तीन मैच ड्रॉ खेले. चौथे मैच में उसने छत्तीसगढ़ को 10 विकेट से मात दी. पूरे सीजन में टीम एक भी मैच नहीं हारी.
बीते दो साल में जो अहम बदलाव विदर्भ की टीम में आया है वो है उसकी अपने आप को साबित करने की जिद. इस जिद ने ही टीम को एकजुट किया और एक विजेता टीम तैयार की जिसे हराना बड़ी से बड़ी टीमों के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ है.
जाफर और उमेश ईरानी कप में टीम में नहीं थे बावजूद इसके विदर्भ ने शेष भारत को परास्त कर साबित किया कि यह टीम बड़े नामों की मोहताज नहीं है. उसके इसी जज्बे ने शेष भारत एकादश के कप्तान अजिंक्य रहाणे को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि बाकी टीमों को विदर्भ से काफी कुछ सीखना चाहिए.
Source : IANS