ट्यूनीशिया फुटबॉल टीम अगले सप्ताह से रूस में होने जा रहे फीफा विश्व कप में 40 साल बाद अपना पहला मैच जीतने के इरादे से मैदान पर उतरेगा।
फीफा रैंकिंग में 21वें नंबर पर काबिज ट्यूनीशिया ने वर्ष 1978 में पहली बार विश्व कप में हिस्सा लिया था जहां टीम ने एक मैच जीता था। इसके बाद वर्ष 1998, 2002 और 2006 में टूर्नामेंट में हिस्सा लिया लेकिन कभी भी ग्रुप चरण से आगे नहीं बढ़ पाई।
ट्यूनीशिया 1978 के बाद से अब तक टूर्नामेंट में एक भी मैच नहीं जीत पाई है। अर्जेटीना में हुए इस विश्व कप में ट्यूनीशिया ने मेक्सिको को 3-1 से हराया था।
कोच नाबील मालौल के मार्गदर्शन में 12 साल बाद विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने वाली ट्यूनीशिया क्वालीफिकेशन दौर में अपने ग्रुप में शीर्ष पर रही थी। टीम ने कोंगो के खिलाफ 2-2 का ड्रॉ खेलकर रूस का टिकट कटाया है।
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पूर्व मिडफील्डर मालौल ने रणनीति के प्रति सचेत रहने को लेकर टीम निर्माण में काफी मदद की है। इससे उसके प्रशंसकों के अंदर नया आत्मविश्वास आया है और उन्हें उम्मीद है कि वे 40 साल बाद कम से कम एक मैच तो जीत ही सकते हैं।
ट्यूनीशिया की सबसे बड़ी कमजोरी टीम में सुपरस्टार का ना होना है जो टीम की जीत का नेतृत्व कर सके। टीम में स्थानीय खिलाड़ियों की भरमार हैं।
लेकिन मिडफील्डर यूसीफ मसाकनी और ट्यूनीशिया लीग के सर्वोच्च स्कोरर ताहा यासिन खेनिसी के न होने से टीम को झटका लगा है। डिफेंडर सियाम बेन यूसीफ से टीम को काफी उम्मीदें होंगी जो एक मीटर मीटर लंबे हैं।
14 जून से शुरू होने जा रहे टूर्नामेंट में ट्यूनीशिया को बेल्जियम, पनामा और इंग्लैंड के साथ ग्रुप जी में रखा गया है। टूर्नामेंट में टीम को अपना पहला मुकाबला 18 जून को इंग्लैंड के खिलाफ खेलना है।
वहाबी खजरी की कप्तानी वाली ट्यूनीशिया में 23 में से 22 खिलाड़ी मुस्लिम हैं। लेकिन मीडिया में ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि ये खिलाड़ी रोजा खोलने के लिए नए बहाने बना रहे हैं।
खबरों के मुताबिक, जैसे ही रोजा खोलने का वक्त आता तो गोलकीपर चोटिल हो जाता और खिलाड़ी ब्रेक के समय रोजा खोलते। हालांकि यह देखना होगा कि टीम पर इसका कितना मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।
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Source : IANS